
बुधवार, 23 नवंबर 2011
मैं खुद कविता हूँ अंतहीन- नीलम प्रभा

गुरुवार, 17 नवंबर 2011
निष्पक्ष साथ - संजीव तिवारी

संजीव तिवारी
माता - स्व.श्रीमति शैल तिवारी
पिता - स्व.श्री आर.एस.तिवारी
शिक्षा - एम.काम., एलएल.बी.
संप्रति - वर्तमान में हिमालया ग्रुप, भिलाई में विधिक सलाहकार.
पता - ग्राम- खम्हरिया(सिमगा के पास), पोस्ट- रांका, तहसील- बेरला, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़.
लेखन प्रकाशन - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में 1993 से कविता, लेख, कहानी व कला-संस्कृति पर आधारित आलेख प्रकाशित.
संपादन : छत्तीसगढ़ी भाषा की आनलाईन पत्रिका गुरतुर गोठ डाट काम (http://gurturgoth.com) का विगत 2008 से प्रकाशन व संचालन.
ब्लाग लेखन - छत्तीसगढ पर केन्द्रित हिन्दी ब्लाग 'आरंभ' (www.aarambha.
सम्मान/पुरस्कार - राष्ट्रभाषा अलंकरण, छत्तीसगढ़ राष्ट्र भाषा प्रचार समिति. वर्ष के सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय लेखक, परिकल्पना सम्मान - 2010. रवि रतलामी जी के छत्तीसगढ़ी आपरेटिंग सिस्टम में सहयोग (इस आपरेटिंग सिस्टम को दक्षिण एशिया का प्रसिद्ध मंथन पुरस्कार प्राप्त हुआ)
वर्तमान पता - ए40, खण्डेलवाल कालोनी, दुर्ग, छत्तीसगढ़.
शनिवार, 17 सितंबर 2011
बौद्धिक सूर्य रथ की विनम्र सारथी - डॉ सुधा ओम ढींगरा

नए कलेवर, नए रंग- रूप और नई साज- सज्जा के साथ
उत्तरी अमेरिका की लोकप्रिय त्रैमासिक पत्रिका 'हिन्दी चेतना' का
जुलाई -सितम्बर 2011अंक प्रकाशित हो गया है |
बुधवार, 3 अगस्त 2011
जिजीविषा की झलक - महेश्वरी कनेरी

रश्मि प्रभा जी को बहुत-बहुत धन्यवाद उनके अनुकंपा से मै आप सब के सामने अपना ह्रदय खोल रही हूँ………………
मै महेश्वरी कनेरी …एक साधारण परिवार में जन्मी चार बहनों और एक भाई में सबसे बडी़ हूँ । घर में बडी़ होने के कारण भाई बहनों के प्रति मेरी हमेशा से जिम्मेदारियाँ रही है। मेरे पिता शिक्षा और अच्छे संस्कार पर बहुत ज़ोर दिया करते थे ।अपनी हैसियत के अनुसार हम सभी को उन्होंने अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार दिए । मेरे पिता को मुझ से बहुत आशाएँ और उम्मीदें थीं मुझे हमेशा कहा करते थे “ बेटा ! तू मेरी बेटी नहीं बेटा है “
बचपन से ही मैं बहुत ही संकोची तथा अन्तर्मुखी रही। अपनी मन की बात किसी से कहते घबराती ।बस मन में उठे हर भाव को काग़ज में उतारना अच्छा लगता था। लिखने का सिलसिला वही से शुरु हुआ ।बाबुल के आँगन में भाई बहनों के बीच कब और कैसे बचपन बीत गया और मैं विवाह के बंधन में भी बँध गई पता ही नहीं चला ।
बचपन की एक घटना याद आरही है- जब मैं आठवी पास कर नौवी कक्षा में पहुँची तो मैं संगीत विषय लेना चाहती थी, क्यों कि मुझे संगीत से बहुत लगाव था । लेकिन पता नही क्यों अध्यापिका ने मुझे संगीत लेने ही नही दिया । औरों के मुकाबले मैं इतना बुरा भी नही गाती थी । ये बात मेरे मन को आहत कर गई ।मैंने उसी वक्त फैसला ले लिया कि मैं अपनी बेटी को संगीत जरुर सिखाऊँगी । विधि का विधान देखो आज मेरी बेटी रेडियो आर्टिस्ट होने के साथ- साथ हैदराबाद की जानी मानी गज़ल गायिकाओ मे से एक है ।कभी-कभी दुखी और अबोध मन से लिया, मासूम सा फैसला ईश्वर पूरा कर ही देते हैं।
सन१९७४ में अध्यापि्का के रुप में जब मेरी नियुक्ति केन्द्रीय विधालय में हुई मुझे लगा जैसे आज मेरे पंखो को परवाज़ मिल् गया । छोटे-छोटे बच्चों के बीच रह कर उनके मनोंभाव को समझते हुए उनके रुचि के अनुरुप कुछ गीत और काविताएं लिखने लगी “आओ मिलकर गायें गीत अनेक “ सन १९९४ में ये पुस्तक प्रकाशित हुई । सन१९९६ में गीत नाटिका का एक ओडियो कैसेट निकाला जिसमें छह गीतों भरी कहनियां हैं. सन १९९४ मे मुझे प्रोत्साहन पुरस्कार तथा २००० में राष्ट्र्पति पुरस्कार से सम्मानित कियागया । सन २००९ में सेवानिवृति के बाद ईश्वर की कृपा और आप लोगों की अनुकंपा से मैं फिर से लिखने का प्रयास कर रही हूं ।
जुनून और कुछ् कर गुजरने की चाहत मनुष्य को हमेशा आगे बढ़ाता है। सच्चे मन से किया जाने वाले हर कार्य में ईश्वर का निवास होता है,येसा मेरा विश्वास है । मै सफल हूँ या नहीं लेकिन सन्तुष्ट जरूर हूँ ।
घबराते- घबराते गिरते पड़्ते हम चले डरते-डरते
सोचते थे मंजिल मिलेगी भी या नही
तभी हौंसले ने अंगुली थामी ,विश्वास ने सहारा दिया
और हम चल पड़े, चलते रहे और चलते रहेंगे
क्योंकि आप सब का विश्वास हमारे साथ है
..............................
पंख होने से क्या होता है,हौसलो में उड़ान होती है
जीत उसकी होती है,जिसके सपनों में जान होती है
सच है... इस सच्चाई की जीती जागती तस्वीर है ये -
राष्ट्रपति पुरस्कार
मंगलवार, 2 अगस्त 2011
कभी झरना , कभी बादल - सोनल रस्तोगी

हर बार प्रोत्साहन मिला,वाद विवाद प्रतियोगिता ,नृत्य हर विधा का आनंद लिया ,खेलों में फिसड्डी थी हूँ और रहूंगी ,समय के साथ डायरी भरती गई 12th तक हर विषय पर लिखा ..लोगों के प्रेम पत्रों के लिए शायरी भी लिखी,समय बदला परिस्थितिया बदली पढ़ाई के बोझ के तले कविता कहानियाँ सब खो गई बहित बड़ा शून्य आ गया लेखन में,आगे बढना था ढेर सारी पढ़ाई, होने वाले जीवन साथी से जब मिली तो उनका मन भी एक कविता ने चुराया
"आज दिल ने चाहा बहुत अपना भी हमसफ़र होता
जिससे कहते हालात दिल के जिसके काँधे पर अपना सर होता ..... (बाकी फिर कभी )"
भावनाएं उमड़ी और दिल से फिर फूट पड़ी कविता कहानिया, फर्रुखाबाद ..लखनऊ...मेरठ ...गुडगाँव . शहर बड़े होते गए और मैं इनके साथ बदलती गई, नया रिश्ता , नया शहर और ढेर सारा आत्मविश्वास और सहयोग. बस एक देसीपन आज तक वैसा ही है .. . ब्लॉग्गिंग से परिचय मेरे देवर डा. अंकुर ने करवाया http://gubaar-e-dil.
अभी तो घुटुनो के बल हूँ ,धीरे-धीरे चलूंगी पर दौड़ना नहीं है मुझे, ज़िन्दगी स्लो मोशन में ही भाती है सब देखना है मुझे .
क्या पता किसी दिन ब्लॉग से अखबार और अखबार से किताब की शक्ल ले लूँ ...
शनिवार, 30 जुलाई 2011
एक गहरा वजूद - असीमा भट्ट

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011
अनकहा कहा - मीनाक्षी धन्वन्तरी

मेरा परिचय चाहा आपने इसका आभार
कोशिश करके देती हूँ इसे कुछ आकार...
न मैं रचनाकार नामी, न कोई साहित्यकार
हूँ बस एक आम साधारण सी चिट्ठाकार ...
जो भी है सब कुछ है अपना घर परिवार
होती हैं इनमें छोटी छोटी खुशियाँ साकार ....
चिट्ठा ‘प्रेम ही सत्य’ करता सबका सत्कार
स्वागत करता, नहीं किसी को देता दुत्कार
सरल सहज सा लिखती, हूँ ऐसी कर्मकार
है मेरा लेखन सादा, है सादा ही व्यवहार
यहाँ सभी हैं एक से बढ़कर एक कलाकार
उन सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार
बुधवार, 13 जुलाई 2011
जहाँ गई नज़रें , भाव उमड़े (निलेश माथुर)

मंगलवार, 12 जुलाई 2011
संतुलित व्यवहार के धनी (कैलाश सी शर्मा)

सोमवार, 11 जुलाई 2011
वो कहते हैं ' पिक्चर अभी बाकी है दोस्त' - रश्मि प्रभा की
रविवार, 10 जुलाई 2011
शांत, खामोश - पर बोलता अस्तित्व ! (अविनाश चन्द्र )

शनिवार, 9 जुलाई 2011
शांत नदी सी - (शोभना चौरे)
