मंगलवार, 5 जुलाई 2011

कहो तो किस्मत बदल दूँ ( संगीता पुरी )



संगीता जी .... उनसे मेरी मुलाकात 'हिंदी भवन' में हुई , मुलाकात हमारी मुस्कुराहट की और जाना कि वे तो भविष्य देखती हैं . आधुनिकता की छुवन से दूर संगीता जी के चेहरे पर आत्मविश्वास का जो तेज था , वह किसी के कुछ मानने न मानने का मोहताज नहीं था . सधे क़दमों से मंच की तरफ बढ़ते उनके कदम उनकी प्रखरता को स्थापित कर रहे थे .
लौटकर मैं भी अपनी परेशानी का चिटठा लेकर मेल के माध्यम से उन तक पहुँच गई अपने बच्चों के बारे में जानने की उत्कंठा लिए और इतने स्नेहिल ढंग से उन्होंने जवाब दिया कि बता नहीं सकती.... बस इतना कह सकती हूँ कि आसमान यूँ हीं हर किसी के आगे नहीं झुकता !

होते हैं रूबरू संगीता जी से , मेरी कलम से आगे बढ़कर उनकी कलम तक ...

19 दिसंबर 1963 को बोकारो जिले के पेटरवार नामक एक गांव(तब गिरीडीह जिले
के अंतर्गत था) में सुशिक्षित और महत्‍वाकांक्षी माता पिता (श्री विद्या
सागर महथा और श्रीमती वीणा देवी) की पहली संतान के रूप में मेरा जन्‍म
हुआ , इस कारण बचपन के पालन पोषण में मेरे शारीरिक और मानसिक विकास में
उनका पूरा ध्‍यान होना स्‍वाभाविक था। खासकर इस कारण भी कि उनका कैरियर
माता पिता की अस्‍वीकृति की भेट चढ चुका था और वे दादाजी के व्‍यवसाय को
संभालने के लिए खुद परिवार सहित गांव में निवास करना आरंभ कर चुके थे।
उन्‍हें भय था कि गांव के बच्‍चों के साथ खेल कूद में ही मैं अपना जीवन
बर्वाद न कर दूं , इसलिए वे मेरे क्रियाकलापों पर खास ध्‍यान देते।
हालांकि बचपन में मैं शैतानी करने में गांव के सारे बच्‍चों से कम न थी ,
पर शुक्र था कि पढाई में भी कभी पीछे न रही। पापाजी की महत्‍वाकांक्षा ने
मात्र छह वर्ष की उम्र में मुझे चौथी कक्षा में प्रवेश करा दिया , पर मैं
हर कक्षा की पुस्‍तकों को सही ढंग से समझती , हर विषय की विषयवस्‍तु को
संभालती आगे बढती चली गयी और बहुत जल्‍द 1978 में प्रथम श्रेणी से
मैट्रिक की परीक्षा पास की।

आगे की पढाई के लिए दादाजी मुझे होस्‍टल भेजने को तैयार न थे , गांव में
कॉलेज की सुविधा न थी , मेरा अध्‍ययन बाधित ही हो गया होता , पर अचानक
गांववालों ने एक प्राइवेट कॉलेज खोलने का निश्‍चय किया। पापाजी के पास
उसके प्रिंसिपल बनने का प्रस्‍ताव आया , मेरे लिए पापाजी ने कॉलेज को
सेवा देने का निश्‍चय किया और इस तरह इंटर की मेरी पढाई पूरी हुई। इंटर
पास करने के बाद ग्रेज्‍युएशन में पुन: समस्‍या आयी। प्राइवेट कॉलेजों से
पढाई करने पर ‘ऑनर्स’ नहीं मिलता , इसलिए कहीं एडमिशन लेना आवश्‍यक था ,
पर दादाजी बिल्‍कुल भी तैयार न थे। मेरी पढाई को लेकर मम्‍मी और पापाजी
तनाव में थे ही कि अचानक मामाजी का पत्र आया। वे सी सी एल में सर्विस
करते थे और हजारीबाग के एक छोटी सी सी सी एल की कॉलोनी में रहते थे ,
जहां बच्‍चों की पढाई की सुविधा नहीं थी। बच्‍चों की पढाई के लिए
उन्‍होने हजारीबाग में इसी महीने किराए पर एक घर लिया था और मामी सहित
बच्‍चों को शिफ्ट करा दिया था। उन्‍होने पत्र में मेरा नामांकण भी के बी
महिला कॉलेज , हजारीबाग में कराने का प्रस्‍ताव रखा था । गणित में रूचि
होने के कारण मैने अर्थशास्‍त्र में ऑनर्स करने का निश्‍चय किया , ताकि
इसके माध्‍यम से सांख्यिकी और इकोनोमैट्रिक्‍स को पढते हुए मुझे कुछ
संतोष हो सके। इस तरह मेरी पढाई की निरंतरता बनती गयी।

पढने पढाने में मेरी शुरू से ही रूचि रही है , छोटे तीन भाइयों और दो
बहनों में से किसी की भी कोई परीक्षा होती , मैं उन्‍हें पढाने में
व्‍यस्‍त हो जाया करती थी। महिलाओं के लिए कैरियर के रूप में शिक्षा का
क्षेत्र मेरे लिए शुरू से ही पसंदीदा भी रहा है। कॉलेज करते वक्‍त महिला
लेक्‍चररों के जीवन से मैं खासी प्रभावित हुई। इसलिए एम ए करने का
निश्‍चय किया। पर एम ए करने से ही क्‍या हो , तब लेक्‍चररों की स्‍थायी
नियुक्ति नहीं हो रही थी। शहरी क्षेत्र के युवा अस्‍थायी तौर पर क्‍लासेज
ले लिया करते थे , धीरे धीरे उनकी स्‍थायी नौकरी भी हो गयी। गांव में
निवास करनेवाली मेरे लिए यह संभव नहीं था , 1988 में विवाह के बाद भी एक
छोटी कॉलोनी में ही मेरा रहना हुआ। यहां भी कैरियर का कोई विकल्‍प न था ,
मन मसोसकर ससुराल में अपने पारिवारिक दायित्‍वों को निभाती चली गयी।

विद्यार्थी जीवन से ही मेरी रूचि ज्‍योतिष की ओर गयी , जिसमें पापाजी को
दिन रात उलझे हुए देखा था। पापाजी बहुत सी ऐसी बातें पहले बताते , जो बाद
में घटित होती थी। विभिन्‍न ज्‍योतिषीय पत्र पत्रिकाओं में पापाजी के लेख
प्रकाशित होते और उन्‍हें तरह तरह की उपाधियां मिलती , जिसे देखकर मैं
प्रभावित हुआ करती थी। ज्‍योतिष के अध्‍ययन के क्रम में उन्‍होने इसकी कई
कमजोरियां महसूस की थी और उसे दूर करते हुए ज्‍योतिष की एक शाखा के रूप
में ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ का विकास 1975 से 1987 के दौरान कर लिया था।
विवाह के बाद अपनी पहचान को खोते देख मैने भी ज्‍योतिष का अध्‍ययन आरंभ
किया। पति के भरपूर सहयोग के कारण दोनो बेटों के पालन पोषण की
जिम्‍मेदारियों के बावजूद भी 1991 से ही विभिन्‍न ज्‍योतिषीय पत्र
पत्रिकाओं में मेरे आलेख प्रकाशित होने शुरू हो गए और दिसंबर 1996 मे ही
मेरी पुस्‍तक ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष: ग्रहों का प्रभाव’ प्रकाशित होकर आ
गयी। इसे पाठकों का इतना समर्थन प्राप्‍त हुआ कि प्रकाशक को शीघ्र ही
1999 में इसका दूसरा संस्‍करण प्रकाशित करना पडा।

वर्ष 2002 में पापाजी के सिद्धांतों को कंप्‍यूटराइज्‍ड करने की इच्‍छा
ने मुझे कंप्‍यूटर क्‍लासेज जाने को प्रेरित किया। एम एस ऑफिस सीखकर ही
मैने ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ के सिद्धांत की कुछ प्रोग्रामिंग कर ली थी।
एक्‍सेल की शीट पर सारी गणनाएं और एम एस वर्ड के मेल मर्ज का सहारा लेकर
हर ग्रह स्थिति की भविष्‍यवाणी के लिए प्रोग्रामिंग कर लिया था , पर उससे
मुझे संतोष नहीं हो सका और पुन: वी बी सीखने का मन बनाया। वी बी सीखने के
बाद ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ के सिद्धांतों पर आधारित एक सॉफ्टवेयर
‘प्रीडेस्‍टीनेशन’ तैयार कर चुकी हूं , जो अभी मेरे पीसी में ही इंस्‍टॉल
है। इस सॉफ्टवेयर में जन्‍मतिथि , जन्‍मसमय और जन्‍मस्‍थान भरने पर
जन्‍मकालीन ग्रहों के आधार पर यह व्‍यक्ति के पूरे जीवन के उतार चढाव ,
महत्‍वाकांक्षा और सफलता का जीवनग्राफ निकालने के साथ साथ व्‍यक्ति के
चरित्र तथा छह छह वर्षों की परिस्थितियों के बारे में जानकारी देता है।
इस सॉफ्टवेयर में हिंदी में काम करने में कई बाधाएं आयी थी।

अब ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ के प्रचार प्रसार के कार्यक्रम को अंजाम देने
की बारी थी , पर मेरे घर से बाहर कदम रखने से बच्‍चों के पढाई लिखाई में
व्‍यवधान आता , इसलिए मैने घर में रहकर ही 2003 में ‘गत्‍यात्‍मक
ज्‍योतिष’ को इंटरनेट के माध्‍यम से प्रचारित प्रसारित करने का कार्यक्रम
बनाया। बी एस एन एल ने अपने ग्राहकों को कुछ वेब पर कुछ पन्‍ने दिए थे ,
मैने उसमें ही इससे संबंधित जानकारी डाली। उस समय वेब पर हिंदी लिखने के
बारे में मुझे जानकारी नहीं थी , इसलिए अंग्रेजी में ही सारे लेख डालें।
2004 में पहली बार ब्‍लॉग बनाकर उसमें हिंदी के कृतिदेव फॉण्‍ट में अपना
एक प्रकाशित करने की कोशिश की , पर हिंदी प्रकाशित नहीं हो सकी। 2007 में
रजनीश मंगला जी के कृतिदेव से यूनिकोड में परिवर्तित करने के टूल की
जानकारी होते ही मैने सफलतापूर्वक अपने आलेखों को ब्‍लॉग में प्रकाशित
किया। उस समय मैं वर्डप्रेस में लिखा करती थी , एक वर्ष बाद 2008 में
ब्‍लॉगस्‍पॉट पर लिखना आरंभ किया। शीघ्र ही कई ब्‍लॉग बना लिए और उसमें
लगातार लिखती रही। ज्‍योतिष से जुडे लेखों के अलावे मैने कुछ कहानियां भी
लिखी हैं।

इतने वर्षों से ज्‍योतिष के अध्‍ययन मनन के बाद अपने विचारों को
अभिव्‍यक्‍त करने के लिए ब्‍लॉगिंग का एक आधार पाकर बहुत खुशी मिली ,
अपने ब्‍लॉग में जहां एक ओर पाठकों को ज्‍योतिष की इस नई शाखा से परिचय
करवाया गया है , वहीं दूसरी ओर समय समय पर कुछ सटीक भविष्‍यवाणियां क‍र
लोगों को ज्‍योतिष के प्रत विश्‍वास को बढाया गया है। जनसामान्‍य में
ज्‍योतिष और धर्म से जुडी भ्रांतियों को दूर करना ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’
का मुख्‍य लक्ष्‍य है और इसमें मुझे सफलता मिलती दिखाई दे रही है। बहुत
सारे पाठकों से विचारों का आदान प्रदान , तर्क वितर्क करना अच्‍छा लगता
है। ‘गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष’ के दोनो ब्‍लोगों ने एक एक लाख की विजिटर्स
संख्‍या को पार कर लिया है , पाठकों के इस प्रकार सहयोग मिलने से मैं
बहुत खुश हूं। इसी दौरान दोनो बेटे अपनी इंजीनियरिंग की पढाई में
व्‍यस्‍त हो चुके हैं , इसलिए आनेवाले दिनों में मैं ब्‍लॉगिंग को अधिक
समय दे सकूंगी , उम्‍मीद करती हूं कि पाठकों का पूर्ण सहयोग मुझे
प्राप्‍त होगा और समाज से ज्‍योतिषीय भ्रांतियों को दूर करने के प्रयास
में मुझे सफलता मिलेगी।


21 टिप्‍पणियां:

  1. संगीता पुरी ji ka naam to suna hi tha, aaj dekha aur padha bhi inhe...aur to kya kahu aapko sangeeta ji bas Pranaam sweekaare...! :)

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  2. संगीता जी को कौन नहीं जानता .आभार उनसे विस्तृत परिचय कराने का.

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  3. यह विस्‍तृत परिचय संगीता जी का पढ़कर उनके बारे में बहुत कुछ जानने का अवसर आपकी कलम ने दिया जिसके लिये उन्‍हें बहुत-बहुत बधाई आपका आभार ...।

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  4. जीवन के विभिन्न सोपानो के लोग अपने विचार ब्लॉग में बाँट रहे है , यह अच्छा माध्यम है . संगीता जी की टीप्पणीयों से परिचय था , अब उनके व्यक्तिव की जानकारी भी हुई . धन्यवाद रश्मि जी का .

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  5. संगीता जी से मुलाकात हिन्दी भवन मे हुई और जैसा सोचा था वो तो उससे बिल्कुल अलग ही लगीं उनकी फ़ोटो देखकर और लेख पढकर लगता था शायद काफ़ी गंभीर किस्म की होंगी मगर जब मिले तो लगा ही नही ऐसा लगा ना जाने कितने वर्षों से एक दूसरे को जानते हैं बल्कि उस दिन तो ऐसा लगा जैसे वक्त कम है और बा्ते बहुत ज्यादा………मुझे तो उनसे मिलकर एक आत्मीयता का अहसास हुआ और उनके लेख और उनके बारे मे जानकारी पाकर और अच्छा लगा।

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  6. संगीताजी के बारे में आपकी कलम से जानना भी सुखद लगा..

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  7. संगीता जी का जीवन परिचय पढ़कर लगा ..प्रतिभा को किसी भी दायरे में बांध नही सकते ...लाजबाब ..

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  8. संगीता जी के लेखों से काफी प्रभावित रही ... हिंदी भवन में मिलने का सौभाग्य भी मिला ..हांलांकि बात तो ज्यादा नहीं हो पायी फिर भी वो मिलना बहुत आत्मीयता से भरा था ... आपके माध्यम से उनके बारे में विस्तार से जानना अच्छा लगा ..आभार

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  9. संगीता जी ने अपने हुनर के माध्यम से बहुतों का संबल बढाया है। प्राची्न ज्योतिष विद्या के वैज्ञानिक स्वरुप के प्रचार प्रसार में वे साधनारत हैं, इस विषय में तो उन्हे मैं गुरु ही मानता हूँ। उन्हे शत शत नमन।

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  10. संगीता जी की लेखनी से तो परिचित हूँ ही....आज यहाँ विस्तार से उनका परिचय मिला...शुक्रिया

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  11. संगीता जी का जी का परिचय पाना अच्छा लगा...शुभकामनायें आपको ...और
    आभार रश्मि दी ...

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  12. कल भी देखा पढ़ा आज़ फ़िर से
    आपने तो गज़ब ढा दिया.. कमाल की प्रस्तुतियां दे रहीं हैं
    आभार मिसफ़िट पर देर रात प्रस्तुत वार्ता आपकी ही प्रेरणा
    है.

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  13. ज्योतिष का अथाह ज्ञान और विपरीत प्रतिक्रियाओं से विचलित ना होकर डटे रहना उन्हें याद रखने के लिए पर्याप्त है ...
    आभार !

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  14. संगीता पुरी जी के बारे में आपकी कलम से जानना सुखद और सुन्दर लगा दीदी

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  15. संगीता पुरी जी के जीवन में निरंतरता एवं प्रतिभा के मुखरित होने के विभिन्न सोपान आपकी कलम से जानना अत्यंत ही सुखद एवं प्रेरक लगा....आपका कोटि कोटि आभार...

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  16. संगीता जी जाना-माना नाम हैं....अच्छा लिखा है....

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  17. संगीता जी के बारे में कौन नहीं जानता . बहुत ही अच्छी शख्सियत हैं ..इनका कहा मुझे बहुत सहारा देता है .इनसे मिलने की बहुत इच्छा है देखते हैं कब पूरी होती है

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  18. sangeeta ji se meri mulakat wahi hindi bhawan mei rashmi ji ne karwayi thi....tab tam mai anjaan thi sab bato se.......par aaj sangeeta ji ko didi ki kalam se padha ka us se bhi accha laga.........aabhar

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  19. आपकी जीवनी पढकर फिर से एक बात साबित हुई कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती , बस एक बेचैनी काफी है |

    सादर

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