हर अगला कदम पीछे होता है,और पीछेवाला आगे आता है ..... पिछले कदम की यह अनवरत यात्रा है, स्वाभाविक दृढ़ प्रयास ! हिमालय हो या कैलाश पर्वत ..... ऊँचाई विनम्र होती है,पर नीचे नहीं उतरती - उसे पाने के लिए उसमें रास्ते बना उसपर चढ़ना होता है ... यदि कल को कोई नन्हा सूरज आ जाये आकाश में तो निःसंदेह उसे अपनी पहचान के लिए सदियों से उगते सूरज से सामंजस्य बिठाना होगा,उसके ताप को सहना होगा अपने भीतर ऊर्जा जगाने के लिए .
शख्स - मेरी कलम से
बुधवार, 17 अप्रैल 2013
Sanjay Pal: Researcher and Link Writer
हर अगला कदम पीछे होता है,और पीछेवाला आगे आता है ..... पिछले कदम की यह अनवरत यात्रा है, स्वाभाविक दृढ़ प्रयास ! हिमालय हो या कैलाश पर्वत ..... ऊँचाई विनम्र होती है,पर नीचे नहीं उतरती - उसे पाने के लिए उसमें रास्ते बना उसपर चढ़ना होता है ... यदि कल को कोई नन्हा सूरज आ जाये आकाश में तो निःसंदेह उसे अपनी पहचान के लिए सदियों से उगते सूरज से सामंजस्य बिठाना होगा,उसके ताप को सहना होगा अपने भीतर ऊर्जा जगाने के लिए .
शनिवार, 26 जनवरी 2013
अचानक एक सागर मिला -सौरभ रॉय
मैं शब्द हूँ, स्याही हूँ, कलम हूँ, पन्ना हूँ ...... या भावनाओं की यायावर
सोमवार, 5 नवंबर 2012
योजना के यज्ञ में शक्ति जिसे समिधा बनाती है, उसके क़दमों के निशाँ गहरे होते हैं ... आकाश मिश्रा
आकाश के उस पार क्या होगा ? निःसंदेह एक आकाश और - जो सितारों की सौगात लिए चाँद और सूरज के संग हमारे लिए छत बनकर हमारे लिए ही प्रतीक्षित होगा . उस आकाश के आगे भी कवि बच्चन ने कहा होगा -
मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012
परिवर्तन की इक मंद हवा - रश्मि तारिका
यायावर मन रुकता कहाँ है !!! हर दिन नई प्रत्याशा में सृष्टि मंथन करने निकल पड़ता है . आँखें क्षितिज से आगे ढूंढती हैं उन निशानों को , जो मन की गहराईयों से उभरते हैं . झुरमुट से एक किरण ने बाहें पकड़ लीं और मैं आदतन किरणों के पृष्ठ पलटने लगी . सम्पूर्णता के क्रमिक प्रकाश के बीच - एक किरण सी रश्मि तारिका मुझे मिलीं http://www.catchmypost.
''हाँ ,आजकल आसमान में उड़ने लगी हूँ !जैसे किसी ने मेरे पंखो को उड़ान दे दी हो !बताऊँ क्यों? दरअसल ,अपने ख्यालों को जो ताबीर दी थी ,कुछ करने की चाह जो दिल में बरसों से ज़िम्मेवारियों और फर्जो की किसी गहरी खाई में दबी पड़ी थी अब उन्हें निकलने का वक़्त मिला तो कुछ अपनों और दोस्तों की प्रेरणा रुपी रस्सी से निकाला तो जल रुपी भावों की मटकी भरी हुई पाई !उस मटकी से छलकते जल की शीतलता का एहसास ही जैसे प्यासे को उस जल की उपयोगिता जतलाता है वैसे ही मेरे भावों को भी शब्दों की उपयोगिता का आभास हुआ !तब से ये भावरूपी मटकी अब भरती जा रही है !अब शायद ये कभी खाली न हो !'' ये एहसास मुझे रश्मि दीदी ने करवाया कि अपनी लेखनी में से चंद शब्दों का लेख द्वारा इज़हार उनकी पुस्तक के लिए करू !यह सुनकर तो मेरी ख़ुशी का पारावार न था !मानो बहुत कुछ पा लिया हो मैंने !
कभी सोचती हूँ , अपने माता पिता और भाई बहनों में एक भोली छवि वाली लड़की ,गर्ल्स कॉलेज ,(हिसार हरियाणा ) में भी अपने आप में सिमटी रहने वाली ,अपने शर्मीले स्वाभाव के साथ ही बी.ऐ पूरी होते ही केवल इन्ही गुणों के साथ ससुराल '' सहारनपुर'' आ गई और खो गई अपने परिवार में !उस वक़्त देवरों ,ननदों में ही अपना दोस्त मिला और प्यारे पति के साथ ज़िन्दगी बिताना ही मात्र एक पूर्णता का एहसास था और इसे बेटी और एक बेटे के जनम ने चार चाँद लगा दिया !मायके में पत्र पत्रिकाओं , कहानियां उपन्यास पढने का शौक था तो ससुराल में एक अखबार की भी कमी खलती !किसी को शौक नहीं था इन सब का ! मेरे शौक ज़िम्मेवारियों में दब गए और मुझे पता भी न चला !पर जैसे समय ने ही करवट ली और हम सहारनपुर (उ.प) से सूरत(गुजरात) में आ गए !उस वक़्त कम्पुटर का 'स्विफ्ट ज्योति ' का बेसिक कोर्स महिलाओं के लिए शुरू हुआ था जो मेरी भी करने की चाह थी परन्तु किन्ही कारन वश मुझे घर में मना कर दिया गया !अपना खाली समय उस वक़्त केवल बच्चो की स्कूल मैगज़ीन में बच्चो के लिए कुछ न कुछ लिख कर या उनके चार्ट्स बना कर अपने लिखने की हसरत पूरी कर लेती !धीरे धीरे ये एहसास हुआ कि मन बहुत कुछ लिखने को मचलता है !सोचती थी ,कि आखिर अपने भावों को शब्दों में पिरोने की ललक क्यों ? कॉलेज में हिंदी को (ऐच्छिक और वैकल्पिक) विषय चुनना और उस में उच्चतम नंबर लाना ही लिखने का कारण नहीं हो सकता !यद्यपि ये कारक सहयोगी अवश्य हो सकता है लेखनी में ! फिर ये लिखने की अनुभूति हुई कैसे ?... मन स्वत: ही इन 'भावों की जननी अपनी माँ '' की तरफ जाने लगा जिन्होंने अपनी लिखने की कला को ईश्वर भक्ति को समर्पित अपने स्वरचित और स्व लिखित भजनों द्वारा किया और मेरे मानस पटल पर भी अंकित कर दिया! उनका ईश्वर प्रेम प्रतिदिन एक नया भजन बन कर दृश्यमान और गुंजायमान होता !कुछ ऐसे ...
'' धूल बनके तेरे चरणों से लिपटना अच्छा लगता है
साँसों कि लय से तझे सिमरना अच्छा लगता है !''
घर के कार्यो में व्यस्त होने के बावजूद माँ ने अब तक खुद के ही २०० भजन बना लिए और एक बार १०८ भजनों की माला हमारे गुरुओं के चरणों में समर्पितकी !उनकी इस सात्विक सोच का हमारे जीवन पर भी प्रभाव रहा !
''मेरी आँखें तलाशती रहती हैं हर इंसान में हर रूप तेरा
उनका मानना था कि.मुश्किलों का घबराकर नहीं ,उनका समाधान ढूँढ़ कर निवारण करो और फिर भी कोई रास्ता न सूझे तो बजाये चिंता करने के वो वक़्त प्रभु सिमरन में लगा दो और उस मालिक पर छोड़ दो ''
सच पूछिये तो इन दो वाक्यों का मुझ पर हमेशा प्रभाव रहा है !फलस्वरूप मैंने परिस्थितियों से हार न मानते हुए अपने व्यस्त पलों से कुछ पल अपने लिए निकाल कर अपनी लेखनी को देने प्रारम्भ किये !पहली बार अपने स्कूल के विद्यार्थियों और अध्यापिकाओं को समर्पित करते हुए एक कविता लिखी जब शादी के काफी वर्षो बाद अपने विद्यार्थी काल की सखी को अपने ही शहर में पाया तो उस ख़ुशी को भी शब्द दे दिए ,https://www.facebook.com/
बहुत गहरा सागर है यह जिसमें ज्ञान के सीप भरे पड़े हैं !मेरी लेखनी का रूख कहानियों ,कविताओं ,लेख,शाएरी और भजन की तरफ भी है जैसे ....
'' कागज़ में जो लिखा नाम तेरा,वो लगे मुझे तस्वीर तेरी
वो पूजा मेरी हो जाए वो बन जाए तकदीर मेरी
यही प्रेम और भक्ति यही ,कुछ और मुझे नहीं आता
जब जहाँ भी तेरा ख्याल करू सर श्रधा से झुक जाता ...!''
भरे पलों में एक कविता का आगाज़ हो जाता है !
उतर जाती हूँ तब उनके भावों की गहराई के समुन्द्र में और कल्पनाशील होकर मंथन करने लगते हैं विचार उन पात्रों के साथ !
बाकि सब रचनायें मेरे ब्लॉग http://www.catchmypost.com/
पर आप पढ़ सकते हैं!
बुधवार, 23 नवंबर 2011
मैं खुद कविता हूँ अंतहीन- नीलम प्रभा
गुरुवार, 17 नवंबर 2011
निष्पक्ष साथ - संजीव तिवारी
संजीव तिवारी
माता - स्व.श्रीमति शैल तिवारी
पिता - स्व.श्री आर.एस.तिवारी
शिक्षा - एम.काम., एलएल.बी.
संप्रति - वर्तमान में हिमालया ग्रुप, भिलाई में विधिक सलाहकार.
पता - ग्राम- खम्हरिया(सिमगा के पास), पोस्ट- रांका, तहसील- बेरला, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़.
लेखन प्रकाशन - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में 1993 से कविता, लेख, कहानी व कला-संस्कृति पर आधारित आलेख प्रकाशित.
संपादन : छत्तीसगढ़ी भाषा की आनलाईन पत्रिका गुरतुर गोठ डाट काम (http://gurturgoth.com) का विगत 2008 से प्रकाशन व संचालन.
ब्लाग लेखन - छत्तीसगढ पर केन्द्रित हिन्दी ब्लाग 'आरंभ' (www.aarambha.
सम्मान/पुरस्कार - राष्ट्रभाषा अलंकरण, छत्तीसगढ़ राष्ट्र भाषा प्रचार समिति. वर्ष के सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय लेखक, परिकल्पना सम्मान - 2010. रवि रतलामी जी के छत्तीसगढ़ी आपरेटिंग सिस्टम में सहयोग (इस आपरेटिंग सिस्टम को दक्षिण एशिया का प्रसिद्ध मंथन पुरस्कार प्राप्त हुआ)
वर्तमान पता - ए40, खण्डेलवाल कालोनी, दुर्ग, छत्तीसगढ़.
शनिवार, 17 सितंबर 2011
बौद्धिक सूर्य रथ की विनम्र सारथी - डॉ सुधा ओम ढींगरा
नए कलेवर, नए रंग- रूप और नई साज- सज्जा के साथ
उत्तरी अमेरिका की लोकप्रिय त्रैमासिक पत्रिका 'हिन्दी चेतना' का
जुलाई -सितम्बर 2011अंक प्रकाशित हो गया है |