आकाश के उस पार क्या होगा ? निःसंदेह एक आकाश और - जो सितारों की सौगात लिए चाँद और सूरज के संग हमारे लिए छत बनकर हमारे लिए ही प्रतीक्षित होगा . उस आकाश के आगे भी कवि बच्चन ने कहा होगा -
इस पार प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा !... उस पार का रहस्य,संभावनाएं हमेशा बनी रहती है और अनुसन्धान को विचरता मन उस दिशा में बढ़ता है,चिंतन करता है ...
जीवन, जीवन को जीने के लिए आजीविका,उसके लिए शिक्षा-कर्मठता .... उस रास्ते से अपनी विशेष रूचि के लक्ष्य के आगे बढ़ना विशेष शक्ति की विशेष योजना है . इस योजना के यज्ञ में शक्ति जिसे समिधा बनाती है, उसके क़दमों के निशाँ गहरे होते हैं .
लिखना और उतनी ही उत्कंठा से पढना - ऐसा अगर ना हो तो ना लिखे के अर्थ सर्वव्यापी होते हैं, ना उनका कोई मूल्य अपने ही भीतर होता है . अपनी इस विचारधारा के रास्ते पर मैंने गौर से देखा एक शक्स को .... आकाश मिश्रा का - आकाश के उस पार ब्लॉग है . अभी बहुत समय नहीं हुआ लिखते हुए, पर जो भी लिखा है उन्होंने, वह लीक से हटकर अपनी पहचान देती है, पहचान आकाश के विस्तार का, उसमें भरे चाँद सितारों का, उल्का,नक्षत्र,ग्रहों की विशेष योजनाओं का ... और यह तभी मिलता है जब विनम्रता साथ चलती और रहती है .
आकाश नहीं कहता की मैं आकाश हूँ, क्षितिज का आधार,सितारों का घर,न जाने कितने धरतीवासियों की छत ..... कभी नहीं कहता आकाश ऐसा कुछ भी, ना ही वह दिखावे की भाषा बोलता है - आकाश आकाश है और इस गरिमा को वह खोता नहीं . छोटे छोटे सितारे भी उसकी आगोश में एक अस्तित्व रखते हैं .... सच भी है, जहाँ आकाश है,वहीँ तो जमीन है !
कल यानी 30 अक्तूबर 2012 को आकाश मिश्रा ने मेरे एक ब्लॉग की यात्रा की .... सम्पूर्णता उनकी टिप्पणी की समग्रता में थी, एक एक शब्द धैर्य,रूचि,समझ के परिचायक थे . टिप्पणियों को देखते हुए मैंने माना कि शिव धनुष सी क्षमता है इस युवा में, मात्र हिंदी को लेकर नहीं ... विचारों के ओजस्वी धरोहर की तरह जीवन के समुचित वेग के संग !!!
अभी तो अगस्त से लिखना शुरू ही किया है , कुल 22 पोस्ट हैं आज की तारीख तक और हर पोस्ट के माध्यम से कुछ विशेष सन्देश दिया है आकाश ने ....
मैं अगर मिली होती तो मेरी कलम चलती ही जाती,पर एक दिन में जो सच मैंने पाया,वह पूरी तरह आपके सामने है . आगे की बागडोर तो आकाश के हाथों में है ... स्वभाव से शर्मीला,बड़ों के समक्ष नत आकाश कुछ नहीं कहना चाहता, पर कुछ नहीं के क्रम में शब्द,अर्थ मिल ही जाते हैं -
आकाश ने कहा -
यकीन मानिए कोई विशेष घटना नहीं हुई | बचपन से बहुत दब्बू और शर्मीले किस्म का था , तो कुछ खास घटित नहीं हुआ | पिता जी से बहुत डर लगता था तो पढ़ाई के अलावा कोई चाह या विशेष रूचि भी नहीं रही , इसी वजह से कैरम तक ढंग से नहीं खेल पाता हूँ , और लिखने के लिए तो मैंने आपको पहले ही बताया कि मुझे हिंदी विषय कभी पसंद नहीं रहा और न घर में कोई साहित्यिक माहौल था जो लिखता , शायद जब पहली बार वक्त ने मुझे कुछ सिखाने के लिए पटखनी दी , तभी से लिखना शुरू किया (शायद , पक्का याद नहीं )
और आपके ब्लॉग में इतनी बड़ी बड़ी हस्तियाँ हैं , उनके बीच में मेरा आना शोभा नहीं देगा , मेरी और आपकी दोनों की आलोचना होगी |
मेरा आपसे फिर से विनम्र निवेदन है कि कृपया मेरे ऊपर इतना भार न डालें , मुझे एक अच्छे पाठक होने का ही आशीर्वाद दें |........
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फिर भी मैं आकाश लेकर आई हूँ - आकाश के ही शब्दों में
१ जुलाई १९९२ को कानपुर के एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में उसका जन्म हुआ | उसकी माँ श्री मती विजय श्री मिश्रा एक कुशल गृहणी थीं और कला में विशेष रूचि रखती थीं और उसके पिता श्री सुधीर कुमार मिश्र कोषागार , औरैया(कानपुर और इटावा के बीच एक छोटा सा जिला) में कार्यरत थे | उसका एक छोटा भाई भी था-सागर | घर का सबसे बड़ा लड़का होने के कारण सभी उसे ‘अंकुर’ बुलाते थे | उसके छोटे से सफर में तीन बातें हैं , जिन्होंने उस पर खास असर डाला –
१.) बचपन से ही उसे हिंदी विषय में कोई खास रूचि नहीं थी | वो पीछे वाली सीट पर सो कर हिंदी की कक्षा का भरपूर उपयोग करता था | लेकिन फिर भी उसे कभी किसी कविता की व्याख्या करने में कोई खास परेशानी नहीं होती थी , जिसका कारण सिर्फ उसकी माँ थीं | उन्हें दोहे-चौपाई वगैरह काफी आते थे , जिन्हें वो यूँ ही घर का काम करते हुए गुनगुनाया करतीं थीं | बस इससे ज्यादा उसके घर में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था | लेकिन उसकी माँ ने उसमें बीज डालने का सबसे जरूरी काम कर दिया था |
२.) १०वीं में पहली बार उसने जगजीत सिंह जी को सुना , ‘हे राम’ में | फिर उनकी कुछ और गजलें भी सुनीं और कुछ पुरानी फिल्मों के गीत सुने | तब पहली बार उसका रुझान गजल/कविता कीओर हुआ लेकिन ये शौक सिर्फ सुनने तक ही सीमित था |
३.) पढ़ाई-लिखाई में औसत से कुछ अच्छा था तो सब दोस्तों की देखा देखी इंजीनियरिंग में कूद गया(छोटी जगहों में ज्यादा विकल्प भी कहाँ होते हैं) | कोचिंग के लिए कानपुर आया तब कहाँ सोचा था कि जिंदगी बदलने वाली है | प्रवेश परीक्षाओं का नतीजा उसके लिए एक सौगात ले कर आया , उसने पहली बार असफलता का मुंह देखा | एक दिन में ही सब कुछ बदल गया | उसका सारा घर इस बात से टूट चुका था , वो भी | ढाई महीना बहुत बुरागुजरा | फिर एक दिन उसके पिता जी ने उसे दोबारा तैयारी के लिए कोटा भेजा(हालाँकि वो इसके लिए तैयार नहीं था , लेकिन उसके पिता जी को उस पर उस से ज्यादा भरोसा था) | कोटा में एकदम अकेले बिताए उन दस महीनों ने उसे वो बनाया जो वो आज है | वहाँ कुछ अधूरी कवितायेँ भी लिखीं , लेकिन सब की सब दुखियारी , फ्रस्ट्रेट करने वाली , पकाऊ | उसने कभी उनका संग्रह नहीं किया | अंततः कोटा का नतीजा सुखद रहा | जिंदगी वापस पटरी पर लौट आयी लेकिन उस एक हार और उस एक साल ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया |
मैं ‘आकाश’(आसमान) हूँ , मैंने इस धरती के हर प्राणी को बहुत करीब से देखा है | मैं आपको कहानी सुना रहा था धरती पर रहने वाले एक और आकाश की जिसको ये नाम उसकी बुआ ने दिया और वो इस नाम को ही अपना शक्ति-स्रोत मानता है |आज पीछे पलटकर देखता होगा तो सोचता होगा कि अगर जीवन में वो असफलता न मिली होती तो उसके पास कितना कुछ नहीं होता और अगर उस असफलता से लड़ने की ताकत उसके माता-पिता ने उसे न दी होती तो शायद वो भी टूटकर भीड़ में शामिल हो गया होता |
उसके २० साल के सफर को जितना भी खींच-तान कर कहूँ , बात सिर्फ इतनी है –
आँखों में एक नमी सी बची है , बस ,
मेरे आंसुओं को इस कदर पिया है तुमने |
जिसे लोग गलती से मेरा मानते हैं , वो
नाम तक चेहरे को मेरे , दिया है तुमने |
मुझपे दुनिया का स्याह रंग चढ़ता ही नहीं ,
मेरी तस्वीर को कुछ ऐसा रंग दिया है तुमने |
मैं आईना तो हूँ , मगर बिखरा नहीं अब तक ,
मेरे माथे को दुआ बन के छू लिया है तुमने |
- मेरी माते और पापा(यही कहता हूँ मैं उन दोनों को) के लिए
मेरी कलम आशीर्वाद ही है ... उस पार का रहस्य भी तुम जान लो, शिखर को छुओ .... पर एक बात सकारात्मक रूप में जानो की वक़्त की पटखनी ईश्वर की विशेष कृपा होती है, पटखनी यानी जीत के लिए
विस्तृत आकाशीय धरातल .
जवाब देंहटाएंआकाश जिसका कोई किनारा ना हो ....
आपकी लेखनी सार्थक कर रही है ,आपके नाम को ..... परिचय पाकर अच्छा लगा ....
शुभकामनायें !!
मुझपे दुनिया का स्याह रंग चढ़ता ही नहीं ,
जवाब देंहटाएंमेरी तस्वीर को कुछ ऐसा रंग दिया है तुमने |
मैं आईना तो हूँ , मगर बिखरा नहीं अब तक ,
मेरे माथे को दुआ बन के छू लिया है तुमने |
बहुत ही सहज़ता एवं सरलता से हर बात का जिक्र किया है आकाश जी ने आपके लेखन में भी विशेषता है जो निश्चित रूप से प्रभावित करती है ..
आपकी कलम से आकाश जी को पढ़ना एवं जानना ''एक दिन के सच में'' बहुत बड़ी उपलब्धि है
आभार आपका इस प्रस्तुति के लिए
... आकाश जी को बधाई
इस अनोखे परिचय के लिए आपका बहुत बहुत आभार दीदी!
जवाब देंहटाएंआकाश को बहुत बहुत बधाइयाँ,शुभकामनायें और ढ़ेरो स्नेहाशिश !
भुने काजू की प्लेट, विस्की का गिलास, विधायक निवास, रामराज - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आकाश जी का बहुत सुन्दर परिचय दिया आपने ! मिल कर अच्छा लगा उनसे ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंआकाश जी का बहुत सुन्दर परिचय दिया आपने ...आभार
जवाब देंहटाएंमेरा बच्चा है और मुझे बाऊजी बुलाता है.. मेरे ढाई-तीन साल के (ब्लॉग) लेखन में सबसे बड़ा सम्मान और पुरस्कार मुझे इसी बालक ने दिया.. (न किसी परिकल्पना ने, न हिंद-युग्म ने, न किसी प्रकाशन ने).. इस बालक ने दो दिनों में दिन-रात एक करके मेरी कुल १३९ पोस्टों को पढ़ा और न सिर्फ पढ़ा बल्कि सबपर विस्तार से टिप्पणी की.. इसके लेखन में संभावनाएं हैं.. आवश्यकता हि तो बस ज़रा सा आकर देने की.. और इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ग्राह्यता है.. इसकी एक कविता पर मैंने आपत्ति की, तो इसने एक घंटे मुझसे बहस करके अपनी बात समझाने और मेरी बात समझने की चेष्टा की.. मेरी बात मानी और कविता में आवश्यक परिवर्तन किये.. मैं सिर्फ स्माइली लगाकर आ गया था.. लेकिन इस बालक की जिद के आगे जब कविता अपने अंतिम स्वरुप में सामने आयी तो मुझे भी वुस्तार से लिखना पड़ा!!
जवाब देंहटाएं.
इस बालक के लिए तो बस यही आशीर्वाद है:
.
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।
हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
- दुष्यंत कुमार
आकाश ने अपनी शुरुआती पोस्ट के बाद ही मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट किया की मुझे आपसे व्यक्तिगत रूप से बात करनी है और ये कमेन्ट पब्लिश न करियेगा प्लीस...
जवाब देंहटाएंमुझे बच्चे जैसी जिद्द लगी उसमे...फिर कुछ मेल का आदान प्रदान हुआ तो लगा सीखने को उतावला हुआ जा रहा है.....मेरी १०० रचनाएँ पढीं और सभी बहुत प्रेम से....जितना प्यारा पाठक है उतना ही प्यारा लेखक भी....और इंसान भी...
उसका ब्लॉग कभी अनदेखा रह जाए तो लड़ता भी है...
ढेर सी शुभकामनाएँ और स्नेह आकाश को....
जल्द ही ये हम सबको सिखायेगा.....
:-)
अनु
अभी उसके ब्लौग से घूमकर आ रही हैँ...ब्लौग को फौलो भी कर लिया है...मन की गहराई से लिखा है भविष्य में अच्छी रचनाएँ सामने आएँगी...आकाश को शुभकामनाएँऔर आपका आभार!!
जवाब देंहटाएंआकाश की विनम्रता उसके नाम के सामान ही विस्तृत नजर आती है ...
जवाब देंहटाएंयश भी हो , शुभकामनायें !
जब ढाई महीने पहले ब्लॉग लिखना शुरू किया था तब कुछ नहीं जानता था कि क्या किया जाता है , कैसे किया जाता है , और इतने कम समय में ही आप लोगों ने इतना सारा प्यार और आशीर्वाद दिया है कि निशब्द हूँ |
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार |
ईश्वर से यही प्रार्थना है-
इतनी मुहोब्बत दी है तो , एक और करम करना ,
जहाँ महफ़ूज इनको रख सकूँ , दिल भी ऐसा दो |
सादर
-आकाश
आकाश जी के बारे में जान कर अच्छा लगा !असफलता के बाद भी हिम्मत नही हारी और फिर से प्रयतन किया और सफल हुए ! उनके परिचय से ही उनकी लेखनी का आभास हो रहा है ! यही दुआ है कि अपने नाम के अनुसार ही आकाश की ऊँचाइयों को छू लो तुम ...
जवाब देंहटाएंआकाश तुमसे मिलकर अच्छा लगा ...खूब तरक्की करो ...माते पापा का हर वह सपना पूरा करो जो उन्होंने तुम्हारे माध्यम से देखा ...आशीष :)
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