सोमवार, 5 नवंबर 2012

योजना के यज्ञ में शक्ति जिसे समिधा बनाती है, उसके क़दमों के निशाँ गहरे होते हैं ... आकाश मिश्रा


आकाश के उस पार क्या होगा ? निःसंदेह एक आकाश और - जो सितारों की सौगात लिए चाँद और सूरज के संग हमारे लिए छत बनकर हमारे लिए ही प्रतीक्षित होगा . उस आकाश के आगे भी कवि बच्चन ने कहा होगा -
इस पार प्रिये मधु है तुम हो, 
उस पार न जाने क्या होगा !... उस पार का रहस्य,संभावनाएं हमेशा बनी रहती है और अनुसन्धान को विचरता मन उस दिशा में बढ़ता है,चिंतन करता है ... 
जीवन, जीवन को जीने के लिए आजीविका,उसके लिए शिक्षा-कर्मठता .... उस रास्ते से अपनी विशेष रूचि के लक्ष्य के आगे बढ़ना विशेष शक्ति की विशेष योजना है . इस योजना के यज्ञ में शक्ति जिसे समिधा बनाती है, उसके क़दमों के निशाँ गहरे होते हैं . 
लिखना और उतनी ही उत्कंठा से पढना - ऐसा अगर ना हो तो ना लिखे के अर्थ सर्वव्यापी होते हैं, ना उनका कोई मूल्य अपने ही भीतर होता है . अपनी इस विचारधारा के रास्ते पर मैंने गौर से देखा एक शक्स को .... आकाश मिश्रा का  -  आकाश के उस पार   ब्लॉग है . अभी बहुत समय नहीं हुआ लिखते हुए, पर जो भी लिखा है उन्होंने, वह लीक से हटकर अपनी पहचान देती है, पहचान आकाश के विस्तार का, उसमें भरे चाँद सितारों का, उल्का,नक्षत्र,ग्रहों की विशेष योजनाओं का ... और यह तभी मिलता है जब विनम्रता साथ चलती और रहती है . 
आकाश  नहीं कहता की मैं आकाश हूँ, क्षितिज का आधार,सितारों का घर,न जाने कितने धरतीवासियों की छत ..... कभी नहीं कहता आकाश ऐसा कुछ भी, ना ही वह दिखावे की भाषा बोलता है - आकाश आकाश है और इस गरिमा को वह खोता नहीं . छोटे छोटे सितारे भी उसकी आगोश में एक अस्तित्व रखते हैं .... सच भी है, जहाँ आकाश है,वहीँ तो जमीन है !
कल यानी 30 अक्तूबर 2012 को आकाश मिश्रा ने मेरे एक ब्लॉग की यात्रा की .... सम्पूर्णता उनकी टिप्पणी की समग्रता में थी, एक एक शब्द धैर्य,रूचि,समझ के परिचायक थे . टिप्पणियों को देखते हुए मैंने माना कि शिव धनुष सी क्षमता है इस युवा में, मात्र हिंदी को लेकर नहीं ... विचारों के ओजस्वी धरोहर की तरह जीवन के समुचित वेग के संग !!!
अभी तो अगस्त से लिखना शुरू ही किया है , कुल 22 पोस्ट हैं आज की तारीख तक और हर पोस्ट के माध्यम से कुछ विशेष सन्देश दिया है आकाश ने ....

मैं अगर मिली होती तो मेरी कलम चलती ही जाती,पर एक दिन में जो सच मैंने पाया,वह पूरी तरह आपके सामने है . आगे की बागडोर तो आकाश के हाथों में है ... स्वभाव से शर्मीला,बड़ों के समक्ष नत आकाश कुछ नहीं कहना चाहता, पर कुछ नहीं के क्रम में शब्द,अर्थ मिल ही जाते हैं -

आकाश ने कहा - 

यकीन मानिए कोई विशेष घटना नहीं हुई | बचपन से बहुत दब्बू और शर्मीले किस्म का था , तो कुछ खास घटित नहीं हुआ | पिता जी से बहुत डर लगता था तो पढ़ाई के अलावा कोई चाह या विशेष रूचि भी नहीं रही , इसी वजह से कैरम तक ढंग से नहीं खेल पाता हूँ , और लिखने के लिए तो मैंने आपको पहले ही बताया कि मुझे हिंदी विषय कभी पसंद नहीं रहा और न घर में कोई साहित्यिक माहौल था जो लिखता , शायद जब पहली बार वक्त ने मुझे कुछ सिखाने के लिए पटखनी दी , तभी से लिखना शुरू किया (शायद , पक्का याद नहीं )
और आपके ब्लॉग में इतनी बड़ी बड़ी हस्तियाँ हैं , उनके बीच में मेरा आना शोभा नहीं देगा , मेरी और आपकी दोनों की आलोचना होगी | 
मेरा आपसे फिर से विनम्र निवेदन है कि कृपया मेरे ऊपर इतना भार न डालें , मुझे एक अच्छे पाठक होने का ही आशीर्वाद दें |........ 
...............

फिर भी मैं आकाश लेकर आई हूँ - आकाश के ही शब्दों में 

१ जुलाई १९९२ को कानपुर के एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में उसका जन्म हुआ | उसकी माँ श्री मती विजय श्री मिश्रा एक कुशल गृहणी थीं और कला में विशेष रूचि रखती थीं और उसके पिता श्री सुधीर कुमार मिश्र कोषागार , औरैया(कानपुर और इटावा के बीच एक छोटा सा जिला) में कार्यरत थे | उसका एक छोटा भाई भी था-सागर | घर का सबसे बड़ा लड़का होने के कारण सभी उसे ‘अंकुर’ बुलाते थे | उसके छोटे से सफर में तीन बातें हैं , जिन्होंने उस पर खास असर डाला –
१.) बचपन से ही उसे हिंदी विषय में कोई खास रूचि नहीं थी | वो पीछे वाली सीट पर सो कर हिंदी की कक्षा का भरपूर उपयोग करता था | लेकिन फिर भी उसे कभी किसी कविता की व्याख्या करने में कोई खास परेशानी नहीं होती थी , जिसका कारण सिर्फ उसकी माँ थीं | उन्हें दोहे-चौपाई वगैरह काफी आते थे , जिन्हें वो यूँ ही घर का काम करते हुए गुनगुनाया करतीं थीं | बस इससे ज्यादा उसके घर में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था | लेकिन उसकी माँ ने उसमें बीज डालने का सबसे जरूरी काम कर दिया था |
२.) १०वीं में पहली बार उसने जगजीत सिंह जी को सुना , ‘हे राम’ में | फिर उनकी कुछ और गजलें भी सुनीं और कुछ पुरानी फिल्मों के गीत सुने | तब पहली बार उसका रुझान गजल/कविता कीओर हुआ लेकिन ये शौक सिर्फ सुनने तक ही सीमित था |
३.) पढ़ाई-लिखाई में औसत से कुछ अच्छा था तो सब दोस्तों की देखा देखी इंजीनियरिंग में कूद गया(छोटी जगहों में ज्यादा विकल्प भी कहाँ होते हैं) | कोचिंग के लिए कानपुर आया तब कहाँ सोचा था कि जिंदगी बदलने वाली है | प्रवेश परीक्षाओं का नतीजा उसके लिए एक सौगात ले कर आया , उसने पहली बार असफलता का मुंह देखा | एक दिन में ही सब कुछ बदल गया | उसका सारा घर इस बात से टूट चुका था , वो भी | ढाई महीना बहुत बुरागुजरा | फिर एक दिन उसके पिता जी ने उसे दोबारा तैयारी के लिए कोटा भेजा(हालाँकि वो इसके लिए तैयार नहीं था , लेकिन उसके पिता जी को उस पर उस से ज्यादा भरोसा था) | कोटा में एकदम अकेले बिताए उन दस महीनों ने उसे वो बनाया जो वो आज है | वहाँ कुछ अधूरी कवितायेँ भी लिखीं , लेकिन सब की सब दुखियारी , फ्रस्ट्रेट करने वाली , पकाऊ | उसने कभी उनका संग्रह नहीं किया | अंततः कोटा का नतीजा सुखद रहा | जिंदगी वापस पटरी पर लौट आयी लेकिन उस एक हार और उस एक साल ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया |
मैं ‘आकाश’(आसमान) हूँ , मैंने इस धरती के हर प्राणी को बहुत करीब से देखा है | मैं आपको कहानी सुना रहा था धरती पर रहने वाले एक और आकाश की जिसको ये नाम उसकी बुआ ने दिया और वो इस नाम को ही अपना शक्ति-स्रोत मानता है |आज पीछे पलटकर देखता होगा तो सोचता होगा कि अगर जीवन में वो असफलता न मिली होती तो उसके पास कितना कुछ नहीं होता और अगर उस असफलता से लड़ने की ताकत उसके माता-पिता ने उसे न दी होती तो शायद वो भी टूटकर भीड़ में शामिल हो गया होता |
उसके २० साल के सफर को जितना भी खींच-तान कर कहूँ , बात सिर्फ इतनी है –
आँखों में एक नमी सी बची है , बस ,
मेरे आंसुओं को इस कदर पिया है तुमने |
जिसे लोग गलती से मेरा मानते हैं , वो 
नाम तक चेहरे को मेरे , दिया है तुमने |
मुझपे दुनिया का स्याह रंग चढ़ता ही नहीं ,
मेरी तस्वीर को कुछ ऐसा रंग दिया है तुमने |
मैं आईना तो हूँ , मगर बिखरा नहीं अब तक ,
मेरे माथे को दुआ बन के छू लिया है तुमने |
- मेरी माते और पापा(यही कहता हूँ मैं उन दोनों को) के लिए



मेरी कलम आशीर्वाद ही है ... उस पार का रहस्य भी तुम जान लो, शिखर को छुओ .... पर एक बात सकारात्मक रूप में जानो की वक़्त की पटखनी ईश्वर की विशेष कृपा होती है, पटखनी यानी जीत के लिए 
विस्तृत आकाशीय धरातल . 

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

परिवर्तन की इक मंद हवा - रश्मि तारिका



यायावर मन रुकता कहाँ है !!! हर दिन नई प्रत्याशा में सृष्टि मंथन करने निकल पड़ता है . आँखें क्षितिज से आगे ढूंढती हैं उन निशानों को , जो मन की गहराईयों से उभरते हैं . झुरमुट से एक किरण ने बाहें पकड़ लीं और मैं आदतन किरणों के पृष्ठ पलटने लगी . सम्पूर्णता के क्रमिक प्रकाश के बीच - एक किरण सी रश्मि तारिका मुझे मिलीं http://www.catchmypost.com/Blogs/rashmi.html पर . 
सहज सोच की सहज अभिव्यक्ति,दृढ़ता के ओज से परिपूर्ण . बगावत,विरोध,परिवर्तन की मांग में भी एक सौम्यता ... सौम्यता ना हो तो विचारणीय नहीं रहते कथन ! 

आप इनको इनके ब्लॉग पर मेरे शब्दों के अनुरूप पा सकते हैं, उससे पहले उनके शब्दों में उन्हें जानिए - 


 अपने बारे में क्या कहूँ? मुझे जब रश्मि दी ने अपने दृष्टिकोण से खुद का परिचय लिखने को कहा तो समझ नहीं पाई! मुझे तो इतना मालूम था कि.... 

दिल  में  कुछ  हसरतों  को समेटे  जिए जा रहे  थे 
पलकों  में  कुछ  खवाब  सजाये  जिए  जा  रहे  थे
अपनी  ख्वाइशों का  भी  कुछ  अता पता  नहीं  था  
हम  खुद  में  सिमटे  ज़िन्दगी  जिए   जा  रहे  थे.
ख़ामोशी  से  बेरंग  हुई  उमंगों  को  दबाये  जा  रहे थे 
चाहतों  के  टूटने  पर अश्कों  को  खुद   पिये  जा  रहे  थे,
न  मालूम  था  ज़िन्दगी  को कैसे  देखना  अब  मयस्सर  होगा
हम  खुद  से  ही  पूछते  खुद  ही  जवाब  दिए  जा  रहे  थे ...
   
         एक सीधी साधी गृहणी , जो अपनी छोटी सी बगिया को अपने फ़र्ज़,कर्तव्यों से सींचती हुई खुश  रहती है और कभी खाने की तारीफ या परिवार वालों से दो शब्द प्यार के  भी सुनती है तो अपने आत्मसम्मान के लिए अपना इजाफा समझती है ! लेकिन अब ....
  ''हाँ ,आजकल आसमान में उड़ने लगी हूँ !जैसे किसी ने मेरे पंखो को उड़ान दे दी हो !बताऊँ क्यों? दरअसल ,अपने ख्यालों को जो ताबीर दी थी ,कुछ करने की चाह जो दिल में बरसों से ज़िम्मेवारियों और फर्जो की किसी गहरी खाई में दबी पड़ी थी अब उन्हें निकलने का वक़्त मिला तो कुछ अपनों और  दोस्तों की प्रेरणा रुपी रस्सी से निकाला तो जल रुपी भावों की मटकी भरी हुई पाई !उस मटकी से छलकते जल की शीतलता का एहसास ही जैसे प्यासे को उस जल की उपयोगिता जतलाता है वैसे ही मेरे भावों को भी शब्दों की उपयोगिता का आभास हुआ !तब से ये भावरूपी मटकी अब भरती जा रही है !अब शायद ये कभी खाली न हो !''  ये एहसास मुझे रश्मि दीदी ने करवाया कि अपनी लेखनी में से चंद शब्दों का लेख द्वारा  इज़हार उनकी पुस्तक के लिए करू !यह सुनकर तो मेरी ख़ुशी का पारावार न था !मानो बहुत कुछ पा लिया हो मैंने !
 कभी सोचती हूँ ,  अपने माता पिता और भाई बहनों में एक भोली छवि वाली लड़की ,गर्ल्स कॉलेज ,(हिसार हरियाणा ) में भी अपने आप में सिमटी रहने वाली ,अपने शर्मीले स्वाभाव के साथ ही  बी.ऐ पूरी होते ही  केवल इन्ही गुणों के साथ ससुराल '' सहारनपुर'' आ गई और खो गई अपने परिवार में !उस वक़्त देवरों ,ननदों में ही अपना दोस्त मिला  और प्यारे पति के साथ ज़िन्दगी बिताना ही मात्र एक पूर्णता का एहसास था और इसे बेटी और एक बेटे के जनम ने चार चाँद लगा दिया !मायके में पत्र पत्रिकाओं , कहानियां उपन्यास पढने का शौक था तो ससुराल में एक अखबार की भी कमी खलती !किसी को शौक नहीं था इन सब का ! मेरे शौक ज़िम्मेवारियों में दब गए और मुझे पता भी न चला !पर जैसे समय ने ही करवट ली और हम सहारनपुर (उ.प) से सूरत(गुजरात) में आ गए !उस वक़्त कम्पुटर का 'स्विफ्ट ज्योति ' का बेसिक कोर्स महिलाओं के लिए शुरू हुआ था जो मेरी भी  करने की चाह थी परन्तु  किन्ही कारन वश मुझे घर में मना कर दिया गया !अपना खाली समय उस वक़्त केवल  बच्चो की स्कूल मैगज़ीन में बच्चो के लिए कुछ  न कुछ लिख कर या उनके चार्ट्स बना कर अपने लिखने की हसरत पूरी कर लेती !धीरे धीरे ये एहसास हुआ कि मन बहुत कुछ लिखने को मचलता है !सोचती थी ,कि आखिर अपने भावों को शब्दों में पिरोने की ललक क्यों ? कॉलेज में हिंदी को (ऐच्छिक और वैकल्पिक) विषय चुनना और उस में उच्चतम नंबर लाना ही लिखने का कारण नहीं हो सकता !यद्यपि ये कारक सहयोगी अवश्य हो सकता है लेखनी में ! फिर ये लिखने की अनुभूति हुई कैसे ?... मन स्वत: ही इन 'भावों की जननी अपनी माँ '' की तरफ जाने लगा जिन्होंने अपनी लिखने की कला को ईश्वर भक्ति को समर्पित अपने स्वरचित और स्व लिखित भजनों द्वारा किया और मेरे मानस पटल पर भी अंकित कर दिया! उनका  ईश्वर प्रेम प्रतिदिन एक नया भजन बन कर दृश्यमान और गुंजायमान होता !कुछ ऐसे ...
                              '' धूल बनके तेरे चरणों से लिपटना अच्छा लगता है
                                 साँसों कि लय से तझे सिमरना  अच्छा लगता है !''
  घर के कार्यो में व्यस्त होने के बावजूद माँ ने अब तक खुद के ही २०० भजन बना लिए और एक बार १०८ भजनों की माला हमारे गुरुओं के चरणों में समर्पितकी  !उनकी इस सात्विक सोच का हमारे जीवन पर भी प्रभाव रहा !
                                 ''मेरी आँखें तलाशती रहती हैं हर इंसान में हर रूप तेरा
                                  सारी दुनिया 'रब' लगती है  यह हाल मेरा
                                  तेरा सिमरन कर लेती हैं मेरी साँसे चलते चलते
                                  मुझे प्रेम हो गया है तुझसे तेरे चर्चे करते करते ...!''
 उनका मानना था कि.मुश्किलों का घबराकर नहीं ,उनका समाधान ढूँढ़ कर निवारण करो और फिर भी कोई रास्ता न सूझे तो बजाये चिंता करने के वो वक़्त प्रभु सिमरन में लगा दो और उस मालिक पर छोड़ दो ''
 सच पूछिये तो इन दो वाक्यों का मुझ पर हमेशा प्रभाव रहा है !फलस्वरूप मैंने परिस्थितियों से हार न मानते हुए अपने व्यस्त पलों से कुछ पल अपने लिए निकाल कर अपनी लेखनी को देने प्रारम्भ किये !पहली बार अपने स्कूल के विद्यार्थियों और अध्यापिकाओं को समर्पित करते हुए एक कविता लिखी जब शादी के काफी वर्षो बाद अपने विद्यार्थी काल की सखी को अपने ही शहर में पाया तो उस ख़ुशी को भी शब्द दे दिए ,https://www.facebook.com/notes/rashmi-tarika/campus-school-ki-yaadein/207428335935860जो बेहद पसंद की  गई !सबने उत्साहित किया तो लिखती चली गई !अपने मन की  ख्वाइशों को http://www.catchmypost.com/kavita/2011-10-02-22-02-23.htmlशब्दों का जामा  पहनाया और उन्हें कविता में ढालकर ,''catchmypost ''पर प्रतियोगिता हेतु भेजा !उसका चयनित होना ही एक बड़ी उपलब्धि थी मेरे लिए ! लेकिन इसका श्रय मैं अपनी दीदी शील निगम जी को देती हूँ ! इस तरह मैं लेखनी के अथाह सागर में धीरे धीरे पांव जमाती हुई उतर पड़ी !ये एहसास हुआ कि.
बहुत गहरा सागर है यह जिसमें ज्ञान के सीप भरे पड़े हैं !मेरी लेखनी का रूख कहानियों ,कविताओं ,लेख,शाएरी और भजन की  तरफ भी है जैसे ....
                      '' कागज़ में जो लिखा नाम तेरा,वो लगे मुझे तस्वीर तेरी
                          वो पूजा मेरी हो जाए वो बन जाए तकदीर मेरी
                          यही प्रेम और भक्ति यही ,कुछ और मुझे नहीं आता
                          जब जहाँ भी तेरा ख्याल करू सर श्रधा से झुक जाता ...!''
                                                             कभी कभी लौंग ड्राइव पर जाते हुए ,बारिश की रिमझिम और चेहरे पर पड़ती बुँदे और हमसफ़र का साथ ,रास्ते में  कहीं गाडी रोक कर चाय की चुस्कियों का या गरम गरम भुट्टे का आनंद मेरे मन में एक तरंग पैदा कर देते हैं और इन्ही रूमानियत
भरे पलों में एक कविता का आगाज़ हो जाता है !
                                                                 कभी कभी ट्रेन  में बैठे बैठे अपने  मन पसंद लेखको की कृत्तियों को पड़ना एक सुखद एहसास देता है !
उतर जाती हूँ तब उनके भावों की गहराई के समुन्द्र में और कल्पनाशील होकर मंथन करने लगते हैं विचार उन पात्रों के साथ !
                                                                  कभी कभी छोटी छोटी बातें भी बड़ी ख़ुशी दे जाती हैं !कभी लिख कर खुद ही खुश हो जाया करती थी  पर आज इन छोटी खुशियों में परिवार का सहयोग और प्यार नज़र आता है जब पति मुझे ''मेरी लेखिका पत्नी ''कहकर पुकारते हैं और बच्चे ,''keep it mom '' कहकर उत्साह बढ़ाते हैं!यही मेरी  सबसे बड़ी उपलब्धि है !
                                                                 अंत में इतना ही कहूँगी कि २ बच्चो और पति के साथ अपने छोटे से परिवार के साथ खुशियों  के पल समेटते हुए कुछ पल निकालकर अपनी कलम से चंद शब्दों को कभी कविताओं ,कभी कहानिओं या लेखों में बाँध देती हूँ !भावनाओं को,अपने आसपास हो रही हर गतिविधि को अगर शब्दों में ढाल कर उचित तरीके से एक अच्छे सन्देश के साथ किसी भी आम इंसान तक पहुंचा सकू तो मुझे ख़ुशी होगी !इसी कोशिश के साथ अब तक अपनी कहानिया ,कवितायेँ और लेख आदि ई पत्रिका ..लेखनी,प्रवासी  दुनिया ,रचनाकार,म्हारा हरयाणा ,,मैथिलिप्रवाहिका पत्रिका जो छतीसगढ़ से  छपती है, में भेज चुकी हूँ और छपती रही हैं !अभी कुछ दिन पूर्व ही मेरे कहानी "आत्मसम्मान'' राष्ट्रीय समाचार पत्र ''rajasthan पत्रिका"में प्रकशित हुई जिसका लिंक है http://epaper.patrika.com/63713/Indore-Patrika/21-10-2012#page/37/2
बाकि सब रचनायें मेरे ब्लॉग http://www.catchmypost.com/rashmi/
पर आप पढ़ सकते हैं!
                                  मित्रो ,आप की प्रतिक्रिया ही मेरी अग्रिम रचना के लिए शुभकामना है !
                                                इसलिए इंतज़ार में ...
                                                                                     आपकी दोस्त ...रश्मि तरीका