बुधवार, 23 नवंबर 2011

मैं खुद कविता हूँ अंतहीन- नीलम प्रभा




नीलम प्रभा , नाम से क्या परिचय दूँ ..... इस नाम से मेरा भी संबंध है . जी , नीलम प्रभा मेरी बड़ी बहन हैं , ... पर इस रिश्ते से अलग वह एक अलाव है - जिसमें भावनाओं की तपिश है . कलम में उसकी सरस्वती भी हैं , दुर्गा भी हैं ... नहीं ज़रूरत उसे आकृति लिए पन्नों की , मुड़े तुड़े, बेतरतीबी से फटे हुए पन्नों को भी वह जीवंत बना देती है , जब उसमें से कृष्ण का बाल स्वरुप दिखता है इन शब्दों में -

" हैं कृष्ण किवाड़ों के पीछे
और छड़ी यशोदा के कर में
क्या करूँ हरि ये सोच रहे
फिर पड़ा हूँ माँ के चक्कर में ...."

सच तो ये है कि उसके पास ख्यालों के कई कमरे हैं ... तिल रखने की भी जगह नहीं , पर महीनों गुजर जाते हैं ... कमरे की सांकल खुलती ही नहीं ! उसे कहना पड़ता है - " खोलो तो द्वार , ख्याल सिड़ न जाएँ ..." बेतकल्लुफी से वह कहती है , " ख्याल नहीं सिड़ते... और फिर मैं तो अलाव हूँ , जहाँ सूरज ठहरता है खोयी गर्मी वापस पाने के लिए ..." ( ऐसा कुछ वह कहती तो नहीं , पर उसके तेवर यही कहते हैं !)
उसे आप कुछ भी लिखने को कहिये , वह यूँ लिखकर देती है - जैसे पहले से लिखा पड़ा था .
आप उसे खूबसूरत से खूबसूरत कॉपी दीजिये , पर फटे पन्नों पर ही वह आड़े तिरछे लिखती है ....... ऐसा करके शायद वह इन एहसासों को पुख्ता करती है कि " ज़िन्दगी कभी सीधे समतल रास्ते से मंजिल से नहीं मिलती ..."

यह परिचय जो आपके सामने है , वह भी बस पुरवा का एक झोंका है .... ' लो लिख दिया - खुश ?' मैं तो खुश हूँ ही , क्योंकि मैं उसे जानती हूँ , उसकी हर विधा से वाकिफ हूँ ....

अब उसकी कलम में आप देखिये - वह क्या है !


क्या कहकर परिचय दूँ अपना!
कि मैं पैदा हुई कहाँ और कहाँ पढ़ी ?
खड़ी थी कब ऊँचे शिखरों पर कब उतरी ?
कितनी किताबें हुईं प्रकाशित , मिले हैं कितने पुरस्कार ?
किन लम्हात ने मेरी कलम में शब्दों में पाया आकार ?

इस परिचय की मुझको है दरकार नहीं
ऐसा कुछ मेरे मैं को स्वीकार नहीं।

माँ से केवल नाम नहीं पाया मैंने
कलम भी मेरे हिस्से विरासत में आई
पिता से यह सुनकर मैं बड़ी हुई
’मेरी बेटी ने असाधारण प्रतिभा है पाई'

अपने सभी निज़ामों को खुसरो की तरह मैं प्रिय रही
इसीलिए गर्दिश में भी, जीवन की सुंदर कथा कही

जायदाद ’ग़र कलम की हाथ नहीं आती
तो मैं निश्चित बरसों पहले मर जाती

घर और घर के रिश्तों का हावी होना
तय था जो भी कुछ था सब भावी होना

बेशक! सब अपनों ने देखा भाला था
पर बिना शर्त जिन्होंने मुझे सँभाला था
वह मेरी कलम, कविता थी मेरी - ये क्या न बनीं मेरी खातिर!
आब बनीं, आहार बनीं, आधार बनीं, अधिकार बनीं,
हर मौके का इज़हार बनीं, मेरा पूरा परिवार बनीं
अब क्या कहना कि क्या है कलम और कविता क्या है मेरे लिए!

है कलम मेरी मेरा वजूद, मैं खुद कविता हूँ अंतहीन
ये दीन मेरा, मेरा यक़ीन
मेरे ख्वाबों की सरज़मीन
ये आफ़रीन, मैं आफ़रीन
हो इनसे अलग मैं कुछ भी नहीं, हो इनसे अलग मैं कुछ भी नहीं।

नीलम प्रभा
डी पी एस , patna

31 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कलम से आदरणीय नीलम जी का परिचय विस्‍तार से जाना ... इनकी शख्सियत और लेखन दोनो ही प्रभावित करते हैं, जब ये कहती हैं ...है कलम मेरी मेरा वजूद, मैं खुद कविता हूँ अंतहीन,

    हो इनसे अलग मैं कुछ भी नहीं, हो इनसे अलग मैं कुछ भी नहीं।
    खुद को शब्‍द देना यूं ... अच्‍छा लगा, जिसके लिए आपका बहुत - बहुत आभार ।

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  2. आपकी कलम से बड़ी बहन का परिचय अच्छा लगा .. अंतहीन कविता सा ..

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  3. नीलम प्रभा जी से मिलकर अच्छा लगा... उनकी कविता उनके प्रतिभा का परिचायक है... बहुत सुन्दर ....

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  4. ज़ोरदार परिचय ...अमिट छाप छोड़ता हुआ सा ...
    बहुत अच्छा लगा पढ़कर और जानकर ...

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  5. आब बनीं, आहार बनीं, आधार बनीं, अधिकार बनीं,
    हर मौके का इज़हार बनीं, मेरा पूरा परिवार बनीं
    वाह!अद्भुत!सुन्दर!
    कविता ही उनका परिचय है!
    बहुत अच्छा लगा उन्हें जानना... उनकी और रचनाओं से भी परिचय हो, प्रतीक्षा रहेगी!

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  6. आपकी कलम से बड़ी बहन का परिचय अच्छा लगा …………प्रतिभायें कहाँ छुपती हैं? सूरज उगेगा तो दिखेगा ही फिर वो कैसे खुद को छुपा सकती हैं देखिये आज आपने हम सबको उनसे परिचित करा ही दिया ना………बहुत सुन्दर भावो का बीजारोपण करती हैं।

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  7. आदरणीय नीलम जी के बारे में जानकर अच्छा लगा .....!

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  8. di ki bahan yaani ek aur di.......... beshak kabhi jayda jana nahi.......par achchha laga:)

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  9. नीलम जी नमस्कार, आपका परिचय काव्य मे बहुत अच्छा लगा।

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  10. Bahut khub... Ur parents r really very lucky to have two of u... :)

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  11. "है कलम मेरी मेरा वजूद, मैं खुद कविता हूँ अंतहीन"

    प्रणाम! आपको भी!

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  12. Congratulations and thanks for sharing this info to all your visitor… Btw how did you get a clean site like this? Once again thanks a lot.From everything is canvas

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  13. जायदाद ’ग़र कलम की हाथ नहीं आती
    तो मैं निश्चित बरसों पहले मर जाती

    250% sahi bat...

    http://harsinngar.blogspot.com/

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  14. वही ताब और वही तेज है और वही प्रभा भी। शुभकामनाएं।

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  15. है कलम मेरी मेरा वजूद...
    ......अब इसके आगे कोई क्या बोल पायेगा ..सादर !

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  16. बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद। ।

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  17. नीलम जी से परिचय करने के लिए आपका आभार
    लेखनी के विषय में कुछ कहने कि हिम्मत ही नहीं ...बहुत ही सुन्दर

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  18. इस परिचय की मुझको है दरकार नहीं
    ऐसा कुछ मेरे मैं को स्वीकार नहीं।

    bahut khub :)

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  19. apni badi bahan ke parichay ka aapka yah andaj prbhavshali hae aapki shalinta vsanskarspasht parilakshit hote haen.

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  20. कलम है मेरा वजूद । कितना सही कहा यह हर लिखने वाले के लिये है ।

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  21. ▬● बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने... शुभकामनायें...
    दोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइयेगा...
    Meri Lekhani, Mere Vichar..
    http://jogendrasingh.blogspot.com/2012/01/blog-post_23.html
    .

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  22. सुन्दर प्रस्तुति...

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  23. है कलम मेरी मेरा वजूद, मैं खुद कविता हूँ अंतहीन
    ये दीन मेरा, मेरा यक़ीन
    मेरे ख्वाबों की सरज़मीन
    ये आफ़रीन, मैं आफ़रीन
    हो इनसे अलग मैं कुछ भी नहीं, हो इनसे अलग मैं कुछ भी नहीं।...सुन्दर प्रस्तुति...

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  24. क्या तारीफ़ करूँ आपकी पोस्ट की , कर भी नहीं सकता क्यूंकि सारी तारीफ ये चंद पंक्तियाँ चुरा ले गयीं -
    " हैं कृष्ण किवाड़ों के पीछे
    और छड़ी यशोदा के कर में
    क्या करूँ हरि ये सोच रहे
    फिर पड़ा हूँ माँ के चक्कर में ...."
    मैं हमेशा से यही मानता हूँ कि भगवान और कुछ नहीं बस असीम प्यार और विश्वास है और यही बात इन पंक्तियों में है |
    आप दोनों प्रणाम स्वीकार करें |

    सादर

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  25. आपने नीलम जी के ब्लॉग का लिंक नहीं दिया (अगर वो लिखती हैं तो) , मेरे विचार से वो भी देना उचित होता |

    सादर

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  26. लिखतीं तो अवश्य देती ... ब्लॉग बनाया ,पर लिखा नहीं . डीपीएस पटना से उन्हें फुर्सत नहीं,और कुछ बातें उनकी आदतों में नहीं :)

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    1. जी ,
      माफ़ी मांगता हूँ |
      लेकिन मेरा सम्मान और प्रणाम उन्हें अवश्य कहियेगा , उन्होंने जो कृष्ण के ऊपर पंक्तियाँ लिखीं हैं , लाजवाब हैं |
      धन्यावाद

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  27. काश यह परिचय यहाँ ख़त्म न होता ...थोडा और पढ़ने और जानने को जी हो रहा है ...बहुत अच्छा लगा लगा उनके विषय में पढ़कर ..जानकार ...:)

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