
अविनाश .... उससे परिचय ऑरकुट पर हुआ , रचनाओं के माध्यम से - इससे अधिक महत्पूर्ण बात ये है कि मैं इस बच्चे से बहुत प्रभावित रही . 'माँ' के प्रति जो प्यार, श्रद्धा , निष्ठा शब्दों में लिपटे रहते थे , उसे मैं अपनी माँ , अपने बच्चों को पढकर सुनाती . कभी पापा , कभी भाई ...... कई बार शब्द धूमिल हो जाते , आँखों से आशीष बहता .
लम्बी हुई होती. .......... यदि मैं अविनाश के इन एहसासों को यहाँ नहीं लिखती तो निःसंदेह उसके साथ न्याय नहीं करती , क्योंकि यह उसके जीवन का आधार है, पहला सच है .
अविनाश से भी मैं मिली अनमोल संचयन के विमोचन में ... संस्कार तहजीब उसके पूरे वजूद से टपक रहा था . शांत, खामोश - पर बोलता अस्तित्व ! ... मेरी कलम अगर अविनाश को नहीं लिखती तो शख्सियत का यह ग्रन्थ अधूरा होता , क्योंकि इतनी कम उम्र में वह ख़ास ब्लॉगर्स के बीच अपनी पहचान रखता है . उसकी इन पंक्तियों की मासूमियत और अनुभव की प्रखरता पर गौर कीजिये ...
'अम्मी अम्मी
सुपर स्टार कैसा होता है
'जा देख ले अपने अब्बू को '
तब नहीं समझा
सच नहीं माना
अब दस गुनी तनख्वाह में
आधा घर नहीं चलता,
तब जाना.
तुम सच कहती हो अम्मी.'
कितने नम एहसास ... अविनाश के साथ मैं भी मुड़ मुड़के देखती हूँ , मुझे यकीन है आप भी देखेंगे -
बडबडाता हूँ जाने कैसे,
रोकने के लिए आँसू.
जो होते हैं आमादा,
अम्मा के पास रहने को.
नहीं रुकते पर माँ से,
वो गिरा देती है नमक.
चख लेता हूँ उन्ही को,
कुछ कहने को बचता नहीं.
हर कदम कदम पर,
देखता हूँ मुड़ के.
वो भरी भारी आँखें,
वो हिलता हाथ उनका.
उफ़ यह तल्ख़ एहसास,
मुश्किल से चलना मुड़ना.
उस वक़्त वो गली जाने,
कितनी लम्बी लगती है.
गली मुड़ते ही एहसास,
माँ से चिपक जाते हैं.
काश ये गली थोड़ी,
अब अविनाश की कलम से अविनाश -
सच कहूँ ...बीते एक घंटे से सोच रहा हूँ कि क्या लिखूँ?
कारण, किसी इंटरव्यू के अलावा "अपने बारे में" जैसे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है। और वो कहानियाँ यहाँ नहीं सुना सकता।
सीधे शब्दों में ,
नाम: अविनाश चन्द्र
जन्म: 18 जून, 1986, वाराणसी
शिक्षा: अभियांत्रिकी स्नातक
अनुभव: एक निजी संस्थान में ३ वर्षों से कार्यरत
रुचियाँ: क्रिकेट खेलना, खाना पकाना, बागवानी और जो कुछ मिले सब सीखना
ब्लॉग:
1) मेरी कलम से http://penavinash.blogspot.com/ (यहाँ कवितायें लिखता हूँ, हिंदी में)
2) NEON SIGN http://talebyavi.blogspot.com/ (यहाँ कुछ भी लिखता हूँ, अंग्रेज़ी में)
प्रकाशित:
काव्य संग्रह: अबाबील की छिटकी बूँदें
काव्य संग्रह: अनमोल संचयन (प्रतिभागी कवि)
पूरी ईमानदारी से बात करूँ तो बताने लायक कुछ भी नहीं है मेरे पास, बनारस के एक साधारण से दम्पति कि साधारण सी संतान हूँ और उनका अज्रस प्रेम ही मेरी सबसे बड़ी थाती।
उस अतुल स्नेह और अदम्य ज्ञान में किलकता यही सीखा कि सब सीखना है इसी पार।
साहित्य पढ़ा हो या उसमे रूचि रही हो, ऐसा कहूँगा तो झूठ होगा स्वयं से ही। हाँ, ये कहूँगा कि पढ़ा है, और हमेशा पढ़ा है।
बचपन संभवतः गायत्री मन्त्र से शुरू हुआ होगा या सुन्दरकाण्ड से, ठीक से नहीं कह सकता लेकिन जो सामने आया सब पढ़ा है।
छोटा था तो पिता जी स्कूल खुलने के २-३ दिन पहले किताबें ले आते थे, जिल्द वगैरह बराबर करने के लिए और उन्हें पढने में तो १ दिन ही लगना था, अब आगे?
बड़ी कक्षा वालों की किताबें, यहाँ तक कि गणित की भी, माँग के पढ़ीं हैं।
देखना, सुनना और चुप रहना, बचपन से ऐसे ही व्यसन लगे हुए हैं इस कारण गति तो नहीं ही रहती थी, पर किसी न किसी विधि शिक्षकगण धक्का दे दे के कुछ न कुछ गतिविधि करवा लेते थे।
बचपन से ही हर हफ्ते 'भविष्य में क्या बनना है?' इसका उत्तर बदलता रहता था। आठवीं तक आते-आते चित्रकार, गायक, कवि, पुलिस अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी यह सब बन के उतर चुका था मैं। इसके बाद क्रिकेट से लम्बा प्रेम रहा, लेकिन कभी न कभी उतरना था ही और फिर मैं एक इंजिनियर बन गया। आजकल ३ वर्षों से गुडगाँव में हूँ।
ज्ञान नहीं है पर आम रूचि की तरह भाषाओँ में भी रूचि है इसलिए जहाँ जाता हूँ वहाँ की भाषा और लिपि सीखने का यत्न करता हूँ, कितना सीख पाता हूँ इस पर बात करना अपनी पोल खोलने जैसा है।
लिखना कब शुरू किया ये याद नहीं, पर हाँ ऐसा दिन होगा जब चित्रकारी नहीं कर पा रहा होऊंगा और कोई एक तरफ से सादा कागज़ हाथ में होगा।हमारी हिंदी की शिक्षिका जो हमें आठवीं में पढ़ाने आयीं थी, उन्होंने संभवतः अधिक कविताई कराई मुझसे। अब जो मैं लिखता हूँ उसे कुछ तो कहना ही पड़ेगा, कविजनों से क्षमा-याचना सहित।
उन्होंने पूरे साल वार्षिक पत्रिका के नाम पर हमें कवितायें लिखने को कहा, और साल ख़त्म होते होते बस मैं था जिसने तीसेक कवितायें दी थीं। नतीजा, कोई पत्रिका नहीं निकली। :)
पर उनके आशीष के शब्द आज भी छाँव करते हैं।
रश्मि जी को तब से जानता हूँ जब मेरा या इनका ब्लॉग नहीं था, बहुत कुछ बदला है लेकिन अब तक एक चीज जो सबसे अच्छी थी, वो अब तक वैसी ही है। जब ये आशीष में कहती हैं, "खुश रहो बेटा!" मन सचमुच खुश हो उठता है। जब से इन्होने मुझसे कहा है परिचय देने को तब से सोच रहा हूँ, मेरा क्या परिचय दूँ?
और ऊपर की लीपा-पोती पढ़ कर कुछ-कुछ तो सब समझ गए होंगे कि बताने भर कुछ है नहीं मेरे पास। फिर भी...
मुठ्ठियाँ भींचें,
मुस्कान लपेट,
बातें करें अनेक।
इससे अच्छा है,
तुम खिसियाओ,
हम चुप रहें।
खोल दें मुठ्ठियाँ,
उड़ा दें जुगनू,
सन्नाटा रौशन हो,
आहिस्ता-आहिस्ता।
अविनाश जी जैसी शख्सियत से रु-ब-रु कराने के लिये आपके आभारी हैं ……उनका ब्लोग देखा अच्छा लगा मगर उसमे फ़ोलअर का लिंक नही है इसलिये फ़ोलो नही कर पाई।
जवाब देंहटाएंइस अविनाश को हम सिर्फ और सिर्फ किशोर के ब्लॉग पर टिप्पणियों के माध्यम से जानते हैं ...........और वही से पता लग गया था की ये "छोरा गंगा किनारे वाला है "विचारों की सादगी ,और ईमानदारी ने हमे खासा प्रभावित किया है ,इनका परिचय और इतिहास तो हम सबने पढ़ ही लिया है .भविष्य के लिए शुभकामनाएं .............
जवाब देंहटाएंअविनाश ... सच ही बहुत शांत और सौम्य है ... मेरी मुलाक़ात भी अनमोल संचयन के विमोचन पर हुयी थी और उसके बाद करीब २-३ घंटे साथ ही बीते थे ... पहला परिचय ऑरकुट पर ही हुआ ...रिश्तों की गहरी समझ है ... अविनाश को मेरी शुभकामनायें और आशीर्वाद .
जवाब देंहटाएंअविनाश जी का परिचय बेहद साफ और सटीक लगा ..मेरा तो परिचय नही हैं ..आज आपने करा दिया ...धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंman ko atut shanti mili padh kar ...aaj aapki kalam se sach mei shabd shabd bol raha hai
जवाब देंहटाएंअविनाश को ब्लॉग के माध्यम से ही जाना है.अब परिचय से भी यही लगता है कि एक सीधा,सच्चा इंसान है.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ुशी हुई एक बहुत ही अच्छे लेखक और व्यक्ति को पढ़कर!
जवाब देंहटाएंरश्मि दी आभार ...आप की कलम से अविनाश के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा ...!!इनका लेखन मुझे बहुत पसंद है ....!!उत्कृष्ट लेखन,शांत स्वाभाव ...बहुत अच्छा लगा जान कर ...अविनाश के लिए शुभकामनाएं एवं आशीष ...
जवाब देंहटाएंअविनाश सरल , सुलझा और मिट्टी से जुडा हुआ है , कोई शक नहीं ...
जवाब देंहटाएंआज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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गली मुड़ते ही एहसास,
जवाब देंहटाएंमाँ से चिपक जाते हैं.
काश ये गली थोड़ी,
लम्बी हुई होती. .........
परिचय की कड़ी में यह पंक्तियां निश्चित ही एक सच कह रही हैं आपके शब्दों में ..अविनाश जी को बधाई के साथ शुभकामनाएं, परिचय अच्छा लगा .. आभार ।
शुक्रिया एक समझदार युवा ब्लागर से मिलवाने के लिए।
जवाब देंहटाएं'अम्मी अम्मी
जवाब देंहटाएंसुपर स्टार कैसा होता है
'जा देख ले अपने अब्बू को '
...
तुम सच कहती हो अम्मी.'
बहुत सुन्दर कविता |
सादर