सोमवार, 20 जून 2011

निर्भीक , निडर , संतुलित (रश्मि रविजा )



रश्मि रविजा ... बस कुछ फर्क और एक नाम एक अर्थ यानि मैं भी रश्मि और वो भी . फर्क ये कि मैं भावनाओं का सार लेती हूँ , रश्मि रविजा उसकी व्याख्या करती हैं , जहाँ एक कवि को लोग कई बार अबूझ निगाहों से देखते हैं वहाँ कहानीकार सबकुछ स्पष्ट करता है .. मेरी कलम रश्मि जी के करीब तब आई जब उनकी कहानियों का सम्मोहन मुझे कभी मुट्ठी भर पारले की तरह बुलाता , कभी भागीरथ की तरह , कभी ओस की मानिंद , तो कभी संवेदित पुकार की तरह ....मुझे रश्मि जी एक निर्भीक , निडर , संतुलित , स्पष्ट महिला लगीं .... मित्रता अपनी जगह , सच अपनी जगह . स्वाभिमान की निर्द्वंद अग्नि .... कहानी के कई पात्रों की गुप्त परतें .

अपनी कलम की यात्रा में सामनेवाले शक्स को भी मैंने पूरा पूरा मौका दिया है सहयात्री बनने का , क्योंकि खुद की पहचान अपनी कलम से मायने
रखती हैं हैं और यह भी तय है कि एक ख़ास मंच पर स्व पंच परमेश्वर होता है .
तो इसकी निष्पक्ष भूमिका में हम रश्मि जी को उनसे जानें -

"जब से समझ आई किताबों का साथ पाया....नन्दन,पराग,चंदामामा से गुजरते हुए धर्मयुग,हिन्दुस्तान,सारिका तक पहुंची...हिंदी -कहानी उपन्यास का पठन भी शुरू हो गया...जाहिर था..इतना पढ़ते-पढ़ते लिखने की इच्छा भी जागी. किसी भी सामयिक घटना पर मेरे मन की त्वरित प्रतिक्रिया होती...और धीरे-धीरे ये प्रतिक्रिया कब शब्दों का रूप ले..पत्रिकाओं में छपने लगी...पता भी नहीं चला...सोलह साल की उम्र से धर्मयुग..साप्ताहिक हिन्दुस्तान,मनोरमा जैसी पत्रिकाओं में आलेख छपने लगे..

पर लेखन को आजीविका बनाने का ख्याल तब भी नहीं था. बारहवीं में 'गणित' लिया था और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहती थी...पर उन दिनों लड़कियों को ज्यादातर इंजीनियरिंग वगैरह की शिक्षा का प्रचलन नहीं था...सो बी.ए. में विज्ञान का 'पल्लू' छोड़ 'कला' का दामन थाम लिया. विषय लिया 'राजनीति शास्त्र' . अब लक्ष्य बदल गया था और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना चाहती थी. राजनीति शास्त्र में ही एम.ए भी किया और लगन से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगी थी .
इसी बीच टाइम्स ऑफ इण्डिया में एक विज्ञापन देख ' ट्रेनी जर्नलिस्ट' के लिए आवेदन किया था...लिखित परीक्षा उत्तीर्ण भी कर ली थी...कि शादी तय हो गयी. शादी की तैयारियों में इंटरव्यू का डेट निकल गया...किसी को ध्यान ही नहीं रहा.
उन दिनों टेलीफोन और नेट की सुविधा नहीं थी. पत्र का ही सहारा था. जब पहली बार ससुराल से लौटी तो पता चला...टाइम्स ऑफ इण्डिया से पत्र आया था...पर इंटरव्यू का डेट बीत चुका था..

शादी के बाद दिल्ली आ गयी और गृहस्थी और दो पुत्रों की देखभाल में लगी रही. पिछले पंद्रह साल से मुंबई में हूँ. लिखना तो छूट गया था पर पढना जारी रहा. इतने दिनों में शायद ही अंग्रेजी की कोई मशहूर किताब ना पढ़ी हो.
पेंटिंग भी चलती रही...फैब्रिक, ग्लास, निब...हर तरह की पेंटिंग करती हूँ ..पर ख़ास रूचि आयल पेंटिंग में है.
पिछले कुछ सालों से मुंबई आकाशवाणी से जुड़ी हुई हूँ..जहाँ से कहानियाँ और वार्ताएं प्रसारित होती हैं. बच्चों की एक संस्था 'हमारा फुटपाथ' के लिए भी काम करती हूँ.जहाँ 'स्ट्रीट चिल्ड्रेन ' को एक अच्छी जिंदगी जीने की राह दिखाने की कोशिश की जाती है.

2009 सेप्टेम्बर में ब्लॉग जगत में शामिल हुई और यहाँ कुछ इतनी रम गयी हूँ...कि अब पत्र-पत्रिकाओं..अखबारों में लिखने के आमंत्रण मिलते रहते हैं...पर सारा समय ब्लॉग्गिंग ही ले लेता है...और संतुष्टि भी यहीं मिल जाती है. बस एक दुविधा है.. मेरे अंदर के पत्रकार और कहानी की आत्मा में लगातार संघर्ष चलता रहता है...और स्पष्ट नहीं हो पाता कि किसे मुझे ज्यादा तरजीह देनी चाहिए या किसका वर्चस्व होना चाहिए. :(

यही कह सकती हूँ कि जिंदगी, जैसी भी मिली है..जिस रूप में मिली है...उसके हर रूप से प्यार है..कोई शिकायत नहीं.
भरपूर जीवन जीने की तमन्ना और कोशिश रहती है. बस जिंदगी से मीठा-मीठा हप्प और कड़वा -कड़व थू :)
परिवार-रिश्तेदार-मित्र...आप सबका प्यार भरा साथ हो...और दिन गुजरते रहे...और हम कह सकें

"दिन सलीके से उगा...रात ठिकाने से रही...
दोस्ती कुछ रोज़ हमारी भी जमाने से रही " {हर रोज़ :)}

40 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी शख्सियत से रू-ब-रू करवाया आपने।

    रश्मि जी, जितनी अच्छी पत्रकार हैं उतनी ही अच्छी कथाकार भी। फ़िल्म की समीक्षा पढ़ते वक़्त फ़िल्म के हर दृश्य आंखों के सामने जीवन्त हो जाते हैं। पता नहीं फ़िल्म देखने के बाद इतना कुछ कैसे याद रख लेती हैं।

    कहानियां उनकी हमारे जीवन के इर्द-गिर्द घूमते पात्रों को लेकर बुनी होती है और वो बड़े ही रोचक तरीक़े से पेश किया गया होता है।

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  2. मेरा ख्याल था कि आप रश्मि रविजा जी के व्यक्तित्व का परिचय और उस पर कोई प्रतिक्रिया देने वाली हैं लेकिन आपने तो सब कुछ उनकी ही ज़ुबानी कहला डाला :)

    इस आलेख में आपने अपनी ओर से सिर्फ हेडिंग ही उन्हें समर्पित की है तो हम भी इसी तर्ज़ पर कुछ शब्द कह गुजरें :)

    रश्मि रविजा जी के विवाह पूर्व और बाद के जीवन के उतार चढाव तथा नामुकम्मल / मुकम्मल सपनों के दरम्यान कैरियर के बदलाव जो भी रहे हों , वे एक संवेदनशील ,सुस्पष्ट / साफ़ सुथरे पारिस्थतिकीय बोध ,सकारात्मक चिंतन की परसोना के रूप में विकसित हुई हैं और ऐसा हर कोई नहीं हो पाता !

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  3. भरपूर जीवन जीने की तमन्ना और कोशिश रहती है. बस जिंदगी से मीठा-मीठा हप्प और कड़वा -कड़वा थू :)
    परिवार-रिश्तेदार-मित्र...आप सबका प्यार भरा साथ हो...और दिन गुजरते रहे...और हम कह सकें

    "दिन सलीके से उगा...रात ठिकाने से रही...
    दोस्ती कुछ रोज़ हमारी भी जमाने से रही "

    बहुत सही लिखा है रश्मि जी आपने ’रश्मि जी’ के लिए. लेखन में अपनी विशिष्ट शैली से वे पाठकों को प्रभावित करने का हुनर रखती हैं.

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  4. वाह जी, बड़ा अच्छा लगा इनसे मिल कर...हम तो वैसे ही इनके बहुत बड़े वाले फैन हैं.. :)

    आभार आपका!

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  5. आपका प्रोफाइल पढ़ा। आपके मन की, लिखने की, कल्‍पनाओं के आरोह-अवरोह में हिलोरें लेने की स्‍थितियॉं स्‍पष्‍ट हुईं। रही सही दोऊ कहि दीन हिचकीन सौं--आपके भीतर शब्‍दोंकोबॉंधने की क्षमताहे। पर आपने अपने को अद्भुत संयम से बॉंध लिया है। एक सुखद संतोष चेहरेपर दिखता है वरना 100किताबों के लेखको के भीतर 101वीं किताब परचर्चा की आकांक्षा बलवती दिखती हे या कुंठा का अतिरेक छलकनेलगता हे। बधाई आपके लेखन से छन कर आती मस्‍ती और कैनवस पर लालित्‍यपूर्ण रचने के लिए। ईश्‍वर से फुर्सत से रचा है आपकेा। परिवार में पतिदेव,बच्‍चों सभी केनाम यथायोगय अभिवादन। ओम निश्‍चल,पटना/ दिल्‍ली

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  6. रश्मि रविजा जी को तो ब्लॉग जगत में पिछले साल से ही जाना है. उनकी कहानियों में एक रवानगी रहती है जो पाठकों को बांधे रखती है. इस पोस्ट का शीर्षक एकदम उनपे सटीक बैठता है. विस्तृत परिचय के लिए आभार.

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  7. दो रश्मियाँ मिलीं ...दिखी दोनों की प्रभा..आभा... हम उस उजाले का अक्स पाकर खिल रहे हैं :)

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  8. अरे वाह...ममा... आपका भी जवाब नहीं... कितनी सुंदर समीक्षा की है आपने... रश्मि जी को भला मुझसे अच्छा कौन जानेगा... रश्मि जी और मैं लखनऊ में जब मिले थे.. घर पर.... तो ऐसा लगा ही नहीं था कि पहली बार मिले हैं... ऐसा लगा था कि जैसे कई जन्मों से जानते हैं एक दूसरे को..... मैं उनकी बहुत रिस्पेक्ट करता हूँ... रश्मि जी तो मेरे लिए प्रॉब्लम सौल्वर हैं... हर साइकोलॉजिकल सौल्युशन उनके पास है.. बहुत ग्रेट हैं वो.. उनकी बहुत तारीफ़ करने का मन कर रहा है.. .. लेकिन शब्द कम पड़ रहे हैं..

    अभी फ़िर आऊंगा.

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  9. रश्मि रविजा जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा ! उनका परिचय उनकी प्रखर लेखनी और उनके अपने ब्लॉग पर चुनिन्दा विषयों पर उनकी संवेदनशील नज़र बहुत कुछ दे जाती है ! उनके लेखन का हर पहलू आकर्षक है और पाठकों पर उनकी लेखनी का जादू अच्छी तरह चल जाता है ! उनका इतना अच्छा परिचय देने के लिये आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद !

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  10. निर्भीक , निडर , संतुलित रश्मि चारों तरफ अपनी रश्मियाँ बिखेर रहीं हैं. बहुत सुंदर परिचय बेहतरीन शख्शियत से.

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  11. रश्मि से जब रश्मि मिलती है तो एक अलग ही चकमक, चकाचौंध, रौशनी मिलती है, बस वही यहां दिखी। बाकी रश्मि रविजा जी के बारे में कुछ कहना…इसके लायक अभी हुआ नहीं मैं।

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  12. रश्मि दी..रश्मि जी के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ...!!इतनी प्रतिभा है उनमे ...कमाल का लेखन है ...!!मेरी ढेरों शुभकामनाएं .....!!

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  13. उड़नभाई फैन हम भी कम छोटे नहीं हैं। बस बात ये है कि मोटे नहीं हैं। खूब अच्‍छा लगा। इनकी इनकी और सिर्फ इनकी ही बातें।

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  14. रश्मि रविजा को काफी समय से इस आभासी माध्यम से जानती हूँ , यहाँ जो कुछ लिखा गया है , उसके अतिरिक्त भी ...
    कौन जाने कभी वास्तविक जीवन में भी जाना हो करीब से ....
    रश्मि ऊर्जा से भरपूर हैं , लगन व धुन की पक्की ...जो जम जाये कर ही लेती हैं , किसी भी तरह ...
    कहानियों और सिनेमा पर इनकी लेखनी की पकड़ बहुत मजबूत है ...बड़े- बड़े फैनों के साथ हम भी इनके लेखन के अदना से फैन हैं !

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  15. ब्‍लागिंग की उपलब्धि के रूप में मैं लेती हूँ रश्मि रविजा का नाम। यहाँ कुछ नाम हैं जिनको पढना हमेशा ही सुकून देता है। उनके बारे में और कुछ लिखा जाता तो बेहतर था। ऐसी बाते जो ब्‍लाग जगत नहीं जानता हो। रश्मि द्वय की लेखनियां खूब चले और विस्‍तार लें यही शुभकामनाएं हैं।

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  16. रश्मि जी यूँ रूबरू होना बहुत बहुत अच्छा लगा .. अच्छी श्रृंखला शुरू की है आपने यह रश्मि जी

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  17. "दिन सलीके से उगा...रात ठिकाने से रही...
    दोस्ती कुछ रोज़ हमारी भी जमाने से रही "

    बहुत सी बातें जिनसे अंजान थे हम..आपने उनसे परिचित कराया अच्‍छा लगा यह परिचय ... आभार ।

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  18. ्रश्मि की खूबियाँ आपने रश्मि की तरह ही फ़ैलायी है जिससे हर कोना आलोकित हो गया……………परिचय पाकर बहुत अच्छा लगा…………आभार्।

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  19. ..मुझे रश्मि जी एक निर्भीक , निडर , संतुलित , स्पष्ट महिला लगीं .... मित्रता अपनी जगह , सच अपनी जगह . स्वाभिमान की निर्द्वंद अग्नि ....

    बिलकुल सच कहा आप ने रश्मि जी ,मैं ने जितना रश्मि रवीजा जी को वंदना और आज आप के माध्यम से जाना है
    ये धारणा मज़बूत होती गई कि ये सारे गुण उन में हैं

    यही कह सकती हूँ कि जिंदगी, जैसी भी मिली है..जिस रूप में मिली है...उसके हर रूप से प्यार है..कोई शिकायत नहीं.
    "दिन सलीके से उगा...रात ठिकाने से रही...
    दोस्ती कुछ रोज़ हमारी भी जमाने से रही " {हर रोज़ :)}

    इसी की तो ज़रुरत है रश्मि जी वर्ना ज़िंदगी मुश्किल हो जाए ,,और सच भी यही है कि जितना कुछ मालिक ने दिया है हम तो उस का
    शुक्र भी अदा नहीं कर पाते
    शुक्रिया दोनों rashmiyon का :)

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  20. समय और परिस्थितियों में से अपने लिए जगह बनाने और अपनी प्रतिभा तथा सामर्थ्य का भरपूर उपयोग करते चले जाने वाले व्यक्तित्व मुझे बहुत प्रभावित करते हैं...ऐसे शख्सियत समाज को बहुत कुछ दे कर जाते हैं...अपना होना सार्थक कर जाते हैं...

    बहुत सुख मिला व्यक्तित्व के विषय में विस्तार से जानकार...
    आभार इस सद्प्रयास के लिए.
    रश्मि जी का भविष्य सुखमय हो,इसकी अभिलाषा है....

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  21. जल में उतरी उन्ही गोपियों में से एक गोपी है रश्मि!

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  22. काफी दिनों से रश्मि जी को मैं नियमित पढती हूं .. उनका लेखन प्रभावित करता है !!

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  23. दी, रश्मी जी को पढ़ती हूँ ....अब उनके बारे में जान कर भी अच्छा लगा .... सादर !

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  24. रश्मि जी की नज़र से रश्मि की शख्सियत का परिचय अच्छा लगा..

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  25. दिन सलीके से उगा...रात ठिकाने से रही...
    दोस्ती कुछ रोज़ हमारी भी जमाने से रही "
    बहुत सुन्दर.
    बेहतरीन श्रृंखला शुरू की है रश्मि जी ने .

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  26. रश्मि जी के फैन तो हम भी हैं । उनका धाराप्रवाह लिखना मन को बहुत भाता है । उनके लेखन में एक आम आदमी से जुड़े होने का अहसास होता है जो तभी हो सकता है जब लेखक ने जिंदगी को बहुत करीब से देखा हो ।

    शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई रश्मि जी ।

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  27. रश्मि रविजा के बारे में बहुत कुछ तो उनका ब्‍लाग और उस पर आने वाली पोस्‍ट पढ़कर ही जान लिया था। जितना रश्मिप्रभा जी ने अपनी भूमिका में रश्मि रविजा बारे में लिखा है वह सब उनकी पोस्‍ट और बीच बीच में उनसे चैट पर होती बातचीत में झलकता रहता है। बहरहाल यहां इस आत्‍म परिचय में एक दो और नई बातें पता चलीं।
    उन्‍होंने लिखा है कि -'बस एक दुविधा है.. मेरे अंदर के पत्रकार और कहानी की आत्मा में लगातार संघर्ष चलता रहता है...और स्पष्ट नहीं हो पाता कि किसे मुझे ज्यादा तरजीह देनी चाहिए या किसका वर्चस्व होना चाहिए।'

    मेरा मानना तो यह है कि कहानीकार ज्‍यादा स्‍थायी होता है,पर अच्‍छा कहानीकार वही हो सकता है,जिसके अंदर एक पत्रकार की नजर हो। तो तरजीह तो कहानीकार को ही देनी चाहिए। कहानीकार पत्रकार के नजरिए से अपने समकालीन मुद्दों को उठाकर कहानी का जामा पहनाता है और उसे एक व्‍यापक और सार्वजनिक अर्थ देता है।
    *

    रश्मिप्रभा जी को भी बधाई, इस अनोखे ब्‍लाग को शुरू करने के लिए। उम्‍मीद है कि यहां आ रहे परिचय व्‍यक्तियों के कुछ नए पहलुओं को भी उजागर करेंगे।

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  28. रश्मि रविजा जी को ज्यादा तो नहीं पढ़ा, पर हा आज यहाँ इनके बारे में बहुत कुछ जाना...अच्छा लगा...मौका मिला तो जरुर मिलना चाहूंगी...!

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  29. "दिन सलीके से उगा...रात ठिकाने से रही...
    दोस्ती कुछ रोज़ हमारी भी जमाने से रही " .अच्छा लगा..

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  30. रश्मि रविजा नहीं , मैं तो रश्मि जी को जांता हूं , यह पढने के बाद अधिक जान सका .......... आप के इस लिखे में आपका संघर्ष है .... याद आता है अपने वडिल कवि त्रिलोचन जी ने कहा था जैसे ...हिन्दी कविता उनकी कविता है जिनकी सांसों में आराम नहीं ..... वैसे ही इस पंक्ति में कविता के साथ साथ मैं रश्मि जी आपको भी शामिल करता हूं...... और कहता हू आप भी वह हैं ....जिनकी सांसों में आराम नहीं .......बधाई अपना प्रोफाईल आपने अच्छा लिखा

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  31. एक रश्मि ने दूसरी रश्मि को विस्तार दिया |
    साधुवाद |
    बहुत अच्छा लगा रश्मिजी को जानना |बाकि उनकी बिना लाग लपेट की जिन्दगी के करीब की पोस्ट पढ़करउनके और करीब हो गये है |
    आभार |

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  32. आप सब का बहुत बहुत आभार...इतनी अच्छी-अच्छी बातें लिखीं हैं, मेरे बारे में...मैं तो जमीन से दो इंच ऊपर चल रही हूँ...:)
    रश्मि जी का शुक्रिया....उन्होंने इतने प्यार से मेरा परिचय करवाया आप सब से.

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  33. Swapna Shail to me
    show details 4:52 PM (0 minutes ago)
    असंख्य कीर्ति रश्मियाँ जब मिल जाएँ तो चमत्कार होना ही है....शायद ऐसा ही कुछ इस ब्लॉग जगत में भी हुआ है...
    मेरी खुशकिस्मती ये है कि दोनों ही रश्मियाँ बहुत अजीज़ हैं मुझे..परन्तु आज इस मंच की शोभा हैं रश्मि रविजा...कुछ लोगों की तारीफ़ करना कितना कठिन होता है...ख़ास कर जो सर्वगुण संपन्न हों...रश्मि को ईश्वर ने अनेक गुणों से सँवारा है..वो न सिर्फ़ एक अच्छी कहानीकार है, एक बहुत अच्छी चित्रकार भी है...रश्मि की निर्भीक लेखनी ने बहुतों को संबल दिया है...एक जिम्मेदार नागरिक की हर जिम्मेदारी वह निभाती हैं...फिर चाहे वह, उनका अपना घर संसार हो, या आवाज़ की दुनिया या फिर नुक्कड़ नाटक...उनके बारे में और थोड़ा जानना बहुत-बहुत अच्छा लगा...
    मेरी ढेर सारी शुभकामनायें इस बहुत ही प्यारी शख्शियत के लिए है...

    अफ्रीका से 'अदा'..

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  34. रश्मि जी की लेखन कला के तो फैन हैं हम वैसे ही ... आज उनके बारे में विस्तार से जानना बहुत अच्छा लगा ... शुक्रिया इस परिचय का ..

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  35. rashmi di ko unke aalekho se hi janti hun...bahut fan hun unki lekhni ki...bahut ahchci lagti hai wo mujhe...yahan aapne unki personal life se ru-b-ru karaya wo bhi itne pyare andaj me...bahut bahut shukriya...bahut ahccha laga padh kar...

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  36. बच्चों की एक संस्था 'हमारा फुटपाथ' के लिए भी काम करती हूँ.जहाँ 'स्ट्रीट चिल्ड्रेन ' को एक अच्छी जिंदगी जीने की राह दिखाने की कोशिश की जाती है.
    क्या बात है रश्मि! बहुत सुकून देने वाले काम से जुड़ी हो तुम. जितना मिला उसी में खुश और संतुष्ट रहने वाली शख्सियत है तुम्हारी, जानती हूं मैं. तुमने PET का टेस्ट दिया होता तो सफ़ल अभियंता होतीं, अखबार में होतीं तो सफ़ल पत्रकार होतीं, ठीक उसी तरह जैसे अभी लेखन के क्षेत्र में सफ़ल लेखिका हो :)
    अनन्त शुभकामनाएं. देर से आने के लिये माफ़ी भी :)

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  37. "दिन सलीके से उगा...रात ठिकाने से रही...
    दोस्ती कुछ रोज़ हमारी भी जमाने से रही " {हर रोज़ :)}

    बहुत अच्छी

    सादर

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