शुक्रवार, 24 जून 2011

देख लूँ तो चलूँ' (नीरज गोस्वामी )



लिखा समीर जी ने 'देख लूँ तो चलूँ' और किसी किताब के पास ठिठके नीरज जी का दिल बोलता है ' देख लूँ तो चलूँ ' ... तो जब मैं इनके ब्लॉग पर पहुंची तो मेरी पसंद ने भी कहा - 'देख लूँ तो चलूँ ' !
ग़ज़ल , कविता , कहानी .... लिखना खुद तक सीमित एक प्रक्रिया है . डायरी , खूबसूरत कॉपियों में इन्हें सहेजना जीने की एक कला है ! ब्लॉग ने इस जीवन्तता को पंख दे दिए , इस मुंडेर से उस मुंडेर तक जाने का बेटिकट मौका . चाय अपनी अपनी , पर साथ पीने का मज़ा , कोई ज़बरदस्ती नहीं - शौक से कहो, सुनो, सुनाओ ....... नीरज जी ने अपनी मुंडेर पर कुर्सियों के साथ एक बुकशेल्फ भी लगाया और अपनी पसंद की किताबों की पसंदीदा पंक्तियों से उसके आकर्षण से हमें रूबरू करवाया .
पढ़ने का शौक ना हो तो लिखना बहुत सफल नहीं होता , सही लेखक पढ़ने की आदमी लालसा से भरा होता है और यही लालसा उसके पंखों की ताकत बनती है . नीरज की इस ताकत से मैं शुरू से प्रभावित रही हूँ , उनके माध्यम से बहुत से ग़ज़लकारों को मैंने जाना .
अपने प्रशंसकों को जानते हैं नीरज जी , पर इसका अभिमान नहीं उनमें ( एक बात स्पष्ट कर दूँ कि जिन्हें मैंने अपनी कलम से लिखने की कोशिश की है और करुँगी - वे सब अहम् से कोसों दूर हैं और यही
उनकी विशेषता है !), वे बड़ी सहजता से खुद के बारे में बताते हैं -

अपने बारे में कुछ लिखने को ऐसा कुछ उल्लेखनीय है ही नहीं. एक आम इंसान के जीवन में ऐसा कुछ खास नहीं होता जिस पर गर्व किया जा सके. पार्टीशन के समय अपना भरा पूरा घर छोड़ कर जब दादाजी भारत आये तब पिता शायद बीस बाईस वर्ष के थे. तभी से उनकी जद्दोजहद भरी ज़िन्दगी की शुरुआत हुई. अनजान जगह पर फिर से अपने पाँव जमा कर खड़े होना हंसी खेल नहीं होता. ऐसी विकट परिस्थितियों में साधारण इंसान टूट जाता है. लेकिन उन्होंने न खुद को स्थापित किया बल्कि पूरे परिवार की जिम्मेवारी भी उठाई. उनकी शादी के एक साल बाद याने सन उन्नीस सौ पचास की चौदह अगस्त को मेरा जन्म हुआ. शादी के समय माता जी दसवीं पास थीं .परिवार को सँभालने की खातिर पिताजी के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलने के ज़ज्बे ने उन्हें और पढने को प्रेरित किया. अपनी लगन और मेहनत से पढ़ते हुए उन्होंने इतिहास में एम् ऐ के बाद बी एड भी किया और सरकारी स्कूल में सेवा निवृति तक पढ़ाती रहीं. परिवार में सबको साहित्य से प्रेम था. मेरी दादी अस्सी वर्ष की अवस्था में भी बिना कोई पुस्तक पढ़े सोने नहीं जाया करती थीं. हमारे घर में पुस्तकों का अद्भुत भण्डार था. पिताजी को संगीत में भी रूचि थी जिसके चलते उन्होंने अनेकों वाद्य यंत्र शौकिया सीखे और फिर बाद में सितार वादन में विधिवत शिक्षा ले कर स्नातक की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की. माताजी का रुझान गायन की तरफ अधिक रहा जो आज भी वैसा का वैसा है. अपनी गायकी से वो आज भी सुनने वाले को अपना दीवाना बना लेती हैं. शास्त्रीय संगीत हो,लोक गीत हों या फिर आज के तेज फ़िल्मी गीत सभी को गाने में उन्हें मजा आता है. येही कारण है के आजकी युवा पीढ़ी भी उनकी उतनी ही दीवानी है जिनती के हमारे बच्चों की पीढ़ी थी. साहित्य, संगीत और सिनेमा से रचे बचे घर परिवार में मुझमें इन विधाओं से स्वतः ही अनुराग हो गया.

मैं सिर्फ पांच साल का था जब हमारा परिवार जयपुर आ कर बस गया. अब पिछले पचपन सालों से जयपुर में रहने के कारण हम जयपुर के ही हो गए हैं. प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर इंजिनीयरिंग की पढाई जयपुर में की. इसी दौरान जयपुर के रंग मंच से जुड़ गए और नाटकों से प्रेम दीवानगी की हद तक बढ़ गया. घरवालों को चिंता हुई के इंजीनियरिंग करने के बाद लड़का बजाय नौकरी करने के नाटकों में दिलचस्पी ले रहा है. नाटकों से ध्यान हटाने के लिए मेरी नौकरी की व्यवस्था जालंधर कर दी गयी जहाँ मैंने तीन सालों तक काम किया और फिर जयपुर की एक प्रसिद्द फैक्ट्री में काम मिलने पर जयपुर आ गया. अब पिछले दस सालों से मुंबई के पास खोपोली में स्थित भूषण स्टील में कार्यरत हूँ. नौकरी के साथ साथ पढने और सिनेमा देखने का शौक भी चलता रहा. पढने और सिनेमा देखने में समय की कमी कभी महसूस नहीं की. मेरा ये मानना है के अगर आपकी किसी चीज़ में रूचि है तो उसके लिए समय अपने आप निकल आता है.जो लोग कोई काम न कर पाने के लिए समय की कमी की शिकायत करते हैं वो शायद उस काम को करना ही नहीं चाहते.

शायरी से लगाव भी बरसों पुराना है. मुझे याद है पिताजी अक्सर जयपुर में होने वाले अखिल भारतीय मुशायरों और कवि सम्मेलनों में मुझे अपने साथ लेजाया करते थे जहाँ मैं रात रात भर बैठ कर बड़े बड़े शायरों कवियों को सुना करता था. शायरी की समझ तो खैर क्या आती होगी लेकिन तब शायरों के शायरी सुनाने का ढंग और फिर दाद पर लोगों की वाह वाह रोमांचित किया करती थी. पिछले चार पांच सालों से याने जब से ब्लॉग खुला तब से लिखने का कर्म शुरू हुआ. ग़ज़ल लिखने को प्रोत्साहित मेरी धर्म पत्नी ने किया जो पत्नी कम और मित्र अधिक है. तब शायरी कैसे की जाती है और ग़ज़ल कैसे कही जाती है इसका मुझे बिलकुल इल्म नहीं था. ग़ज़ल की टेढ़ी बांकी पगडंडियों पर बिना किसी सहारे के चलना मुश्किल काम है. ग़ज़ल का ये सफ़र बिना गुरु जनों की मदद से तय करना असंभव था . मैं तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ और रहूँगा अपने गुरु पंकज सुबीर जी और प्राण साहब का जिन्होंने मुझे ऊँगली पकड़ कर इन दुरूह रास्तों पर चलना सिखाया. अभी भी मैं बिना इनकी मदद के एक मिसरा भी नहीं लिख पाता हूँ. मुझे अपने पाठकों से अब तक जितना भी प्यार मिला है वो सब इन्हीं की बदौलत है.

पाठकों का असीम प्यार ही मेरी एक मात्र उपलब्धि है. इन्टरनेट के माध्यम से लोगों से इतना प्यार मिला है के "आँचल में न समाय" वाली स्तिथि है. ग़ज़लें हिंदी की अधिकांश वेब साइट्स पर मौजूद हैं एक आध राष्ट्रिय स्तर और स्थानीय अखबारों में भी ग़ज़लें छपी हैं. कभी अपनी ग़ज़लों को किसी अखबार या पत्रिका में छपवाने का भागीरथी प्रयास किया भी नहीं. अलबत्ता मुंबई और जयपुर की साहित्यिक गोष्ठियों में कोई बुलाता है तो चला जाता हूँ. किसी मान सम्मान की चाह भी नहीं है जो लिखता हूँ सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए लिखता हूँ.

ब्लॉग और ग़ज़ल लेखन का सबसे बड़ा फायदा हुआ ये हुआ कि मेरा सम्बन्ध कुछ ऐसे लोगों से हुआ जो विलक्षण हैं. सोचता हूँ के अगर उनसे न मिला होता तो जीवन में बहुत कुछ अधूरा रह जाता. सम्बन्ध बिना किसी पूर्व परिचय के भी बनते हैं और प्रगाढ़ हो जाते हैं ये मैंने ब्लॉग लेखन के दौरान मिले लोगों से ही जाना. जब तक ऊर्जा रहेगी लिखता रहूँगा, अभी तक तो ये ही सोचा है आगे भगवान् जाने.
इन्हें और जानना हो तो आप इन्हें यहाँ शाहिद मिर्ज़ा जी और कुश की कॉफी के साथ जान सकते हैं .......
और ताऊ के संग यहाँ -

नीरज जी का ब्लॉग है - http://ngoswami.blogspot.com अब आप अपने शौक के साथ यहाँ भ्रमण करें और जानें कि क्या मेरी कलम ने कुछ गलत कहा !!!

25 टिप्‍पणियां:

  1. नीरज जी के बारे में अच्छी जानकारी मिली! बढ़िया प्रस्तुती !

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  2. नीरज जी के बारे के काफी कुछ जानने को मिला ... आपका बहुत बहुत आभार !

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  3. नीरज जी को शुरु से पढती आई हूँ और उनके लेखन की कायल हूँ।
    आज उनका विस्तृत परिचय पाकर अपार प्रसन्नता हुई।

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  4. वाह , पहले तो एक नज़र डाली सरसरी सी, फिर लगा "पढ़ लूँ तो चलूँ"... बढियां प्रस्तुति ..!

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  5. नीरज जी की गज़लें पढ़ते रहते हैं ...उन्हीं के माध्यम से अन्य शायरों को भी पढ़ते रहते हैं ...आज उनके बारे में जान कर अच्छा लगा ...नीरज जी आपको शुभकामनायें और रश्मि दी आपका आभार ...!!

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  6. नीरज जी को जितना जानो उतना कम है। हर बार उनके बारे में नई नई जानकारी मिलती है। वे हैं ही ऐसे। यहां जो है उसके अलावा उनके बहुत सुंदर पहलू के बारे में जानने के लिए आपको मेरे ब्‍लाग यायावरी पर आना पड़ेगा। हां लिंक तो मैं ही दे ही सकता हूं- http://apnigullak.blogspot.com/2010/12/blog-post.html मेरी इस पोस्‍ट का नाम है जयपुर की स्‍वादिष्‍ट यात्राएं।

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  7. नीरज जी का ग़ज़ल , कविता , शायर और पुस्तकों का शौक बेमिसाल है । उनके द्वारा हमें भी नए नए शायरों और ग़ज़लकारों से परिचय होता रहता है ।
    हालाँकि इस क्षेत्र में हम तो नौसिखिये हैं , लेकिन उनकी पोस्ट पढ़कर काफी प्रोत्साहन मिलता है , लिखने का ।

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  8. नीरज जी के बारे में जानकार उनके पूरे व्यक्तिव के बारे में पता चला...बहुत सुन्दर परिचय

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  9. नीरज जी के बारे के काफी कुछ जानने को मिला .उनके बारे में जान कर अच्छा लगा ...नीरज जी आपको शुभकामनायें और रश्मि जी को बहुत बहुत धन्यवाद...

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  10. arey waah..mujhe bhi pata chala ek nayi shakhsiyat ke baare mein..
    inke blog par to ab se jana hi hoga..hamara happy birthday jo same hai..

    :)

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  11. नीरज जी की ग़ज़लों और किताब की दुनिया दोनों से ही प्रभावित हूँ .... उनका परिचय अच्छा लगा .

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  12. नीरज जी को पढ़ती रही हूँ.....उनका विस्तृत परिचय पाकर अच्छा लगा...

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  13. नीरज जी बहुआयामी रचनाकार हैं.

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  14. नीरज जी का यह परिचय उनके बारे में बहुत कुछ कहता हुआ ...उनकी गजलों और किताबों की दुनिया की प्रस्‍तुति हमेशा ही अनुपम रहती है ..उनके बारे में विस्‍तार से दी गई जानकारी पढ़कर अच्‍छा लगा, उनके लिये लिये शुभकामनाएं ..और आपका बहुत-बहुत आभार ।

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  15. कितना श्रम साधक कार्य है न आपका ... सबकी रूचियां, सबकी खूबियां और फिर उन्‍हें विस्‍तार देती आपकी कलम आज आपने नीरज जी परिचय कराया अच्‍छा लगा उनके बारे में जानकार ...आभार के साथ शुभकामनाएं ।

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  16. आप अपने बारे में किस दिन बताएंगी ... यह तो बताइए ... मैं इसी इंतजार में हूं आज आपको पढूंगी विस्‍तार से पर आप तो अपने बारे में कुछ कहती ही नहीं हैं ...कहिये न किसी दिन ...।

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  17. पढ़ने का शौक ना हो तो लिखना बहुत सफल नहीं होता , सही लेखक पढ़ने की आदमी लालसा से भरा होता है और यही लालसा उसके पंखों की ताकत बनती है
    अगर आपकी किसी चीज़ में रूचि है तो उसके लिए समय अपने आप निकल आता है.जो लोग कोई काम न कर पाने के लिए समय की कमी की शिकायत करते हैं वो शायद उस काम को करना ही नहीं चाहते.

    ye do bate bahut kuch sikha gai aur bahut achchi lagi..aapse milke khushi hui nirajji...

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  18. नीरज जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा उनका लिखा हमेशा ही बेहतरीन लगता है ज़िन्दगी के सच को वह अपनी कलम से लिखते हैं

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  19. neeraj ji ke blog par aaj hi pehli bar gayi aapke blog ke dwara.... bahut achcha lag. dhanyawad.....

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  20. आज इधर आने का मौका मिला तो नीरजजी के परिचय को आपकी कलम से जानना अच्छा लगा...पता चला कि शायरी और किताबों से दीवानगी विरासत में मिली है..उनके लेखन में सचमुच मोगरे की खुशबू महसूस होती है.

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  21. अप अपनी खुशी के लिए लिखते हैं यही आपकी सबसे बड़ी खासियत है |

    सादर

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