बुधवार, 15 जून 2011

समीक्षा कहूँ या प्यार या सम्मान ...(सरस्वती प्रसाद )



मेरी कलम और मेरी माँ , समीक्षा कहूँ या प्यार या सम्मान .... बिना उन्हें कलम में पिरोये मेरी साहित्यिक यात्रा अधूरी है . भावनाओं का धागा हमारे पैरों में
बाँधने का अलौकिक उत्तरदायित्व उन्होंने पूरा किया . 'पन्त की बेटी' का मान लेकर मुझे रश्मि बना दिया , नामकरण का तोहफा कवि पन्त के हाथों दिलवाकर .
मेरी अम्मा - 11 वर्ष की उम्र में दुल्हन बन गईं , 6 ठी तक की पढ़ाई हुई थी उस वक़्त तक ...... हम सारे भाई-बहनों के हो जाने के बाद अम्मा
ने पढ़ने की इच्छा जताई . प्रकृति कवि पन्त की मानस पुत्री का सम्मान यूँ हीं नहीं मिला उनको . प्रकृति के हर कणों से उनकी बातें होती थीं और कुछ पल चुराकर वे लिखतीं
- 'कौन झंकृत करके मन के तार मुझसे बोलता है
मैं तुम्हारा हूँ तुम्हारा हूँ तुम्हारा हूँ ............'
ऊँचे आकाश में ऊँची उड़ान भरते पक्षियों से पूछतीं -
'जा रहा किस ओर तू कुछ बोल पंछी
किस पिपासा को लिए ओ बावरा
दर्द जब इन्सान हर पाता नहीं
क्या हरेंगे फिर ये चंचल धवल बादल !'
नाम के अनुरूप वे खुद रहीं , साथ ही - हमें , हमारे बच्चों को सब दिया ! हमने कितना लिया , ना लिया ... ये हमारी चाह या हमारी किस्मत !
उम्र की थकान होने के बावजूद उन्होंने नाविक होने
के कर्तव्य को नज़रअंदाज नहीं किया है , आज भी वे शब्दों की पतवार से भावनाओं की नाव को एक दिशा देती हैं .

सरस्वती प्रसाद
जन्म - आरा
शिक्षा - हिंदी स्नातक
सबसे बड़ी उपलब्धि - 'पन्त की बेटी'
प्रकाशित- 'कादम्बिनी' और कुछ अन्य जानी मानी पत्र - पत्रिकाओं में
काव्य संग्रह - नदी पुकारे सागर , अनमोल संचयन , अनुगूँज , प्रकाशनार्थ कहानियों का संग्रह 'बोलते एहसास '
सारस्वत सम्मान से सम्मानित
http://kalpvriksha-amma.blogspot.com/




कविता-संग्रह : नदी पुकारे सागर - सरस्वती प्रसाद

कवयित्री सरस्वती प्रसाद दीर्घकाल से रचनाकर्म में संलग्न है। वर्ष 2001 में इनका एक काव्य-संकलन 'नदी पुकारे सागर' प्रकाशित हुआ, जो काव्यप्रेमियों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ। इसकी भूमिका लिखते हुए सरस्वती जी लिखती हैं-

शून्य भिति पर गई उकेरी
काल की चारु कृतियाँ थीं,
नहीं थी वे इतिहास शिल्प
सहचरी मेरी स्मृतियाँ थीं.
मति चल न सकी बटमारों की
वे मेरे साथ यूँ बनी रही
हुई धूप प्रचंड स्थितियों की
तो कादम्बिनी सी तनी रहीं
इतना सामर्थ्य कहाँ होगा
जो उनके दिए का दाम भरूँ
कर सकती हूँ तो मात्रा यही
जो-भावभूमि उन्होंने दी
उस पर अंकित ये शब्द-चित्र
मैं नत हो उनके नाम करूँ

सरस्वती प्रसाद के इस संग्रह में सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखित वह कविता भी शामिल है जिसे पंत ने बेटी सरस्वती के प्रयाग आगमन पर लिखा था । इस संकलन में पंत की हस्तलिपि में वह कविता अंकित है-

चन्द्रकिरण किरीटिनी
तुम, कौन आती ?
मौन स्वप्नों के चरण धर!
ह्रदय के एकांत शांत
स्फटिक क्षणों को
स्वर्ग के संगीत से भर!
मचल उठता ज्वार,
शोभा सिन्धु में जग,
नाचता आनंद पागल
शिखर लहरों पर
थिरकते प्रेरणा पग!
सप्त हीरक रश्मि दीपित
मर्म में चैतन्य का
खुलता गवाक्ष रहस्य भर कर!
अमर वीणाए निरंतर
गूंज उठती , गूंज उठती
भाव निह्स्वर ---
तारको का हो खुला स्वप्नाभ अम्बर!
वैश्व लय में बाँध जीवन को
छिपाता मुख पराशर,
मर्त्य से उठ स्वर्ग तक
प्रसाद जीवन का अनश्वर
रूप के भरता दिगंतर!
चन्द्रकिरण किरीटिनी
तुम, कौन आती ?
मौन स्वप्नों के चरण धर!

(संग्रह में सम्मिलित पंत की हस्तलिपि में लिखी कविता की चित्रात्मक झलक)



20 टिप्‍पणियां:

  1. प्रत्‍येक शब्‍द में गहराई ..और भावों का अनूठा संगम है आपकी लेखनी का..यह समीक्षा से बढ़कर है ..जहां सिर्फ स्‍नेह है और सिर्फ स्‍नेह इस प्रस्‍तुति के लिये आपका आभार ...।

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  2. "मेरी कलम और मेरी माँ , समीक्षा कहूँ या प्यार या सम्मान .... बिना उन्हें कलम में पिरोये मेरी साहित्यिक यात्रा अधूरी है ..."

    आपके शब्दों को नमन... प्यार और सम्मान सब कुछ है यहाँ... इस प्रस्‍तुति के लिये आपका आभार ...

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  3. मेरी कलम और मेरी माँ , समीक्षा कहूँ या प्यार या सम्मान .... बिना उन्हें कलम में पिरोये मेरी साहित्यिक यात्रा अधूरी है .
    यह तो निश्चय ही प्यार और सम्मान है .. माँ की कृति की समीक्षा भी कैसे हो ?

    भूमिका में माँ की ये पंक्तियाँ --
    शून्य भिति पर गई उकेरी
    काल की चारु कृतियाँ थीं,

    पन्त जी की हस्त लिखित रचना इस पुस्तक को विशेष बाना देती है ... आभार
    नहीं थी वे इतिहास शिल्प
    सहचरी मेरी स्मृतियाँ थीं.

    लगा जैसे शायद सबके हृदय की बात कह दी हो ..

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  4. आपके बारे में इतना विस्तार से जान कर बहुत अच्छा लगा.

    सादर

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  5. समीक्षा के माध्यम से सम्मान .. अच्छा लगा

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  6. रश्मि आंटी..क्या कहूँ...बहुत ही सुंदर ढ़ंग से समीक्षा के माध्यम से माँ को प्रेममयी आदर भाव दिया है आपने।आदरणीय माँ सरस्वती प्रसाद के बारे में विस्तार से जानना अच्छा लगा और साथ ही उनकी काव्यमोतियों ने तो मन मोहीत कर दिया.....आभार।

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  7. बहुत सोचती रही ...पर शब्द ही नहीं जुटा पा रही हूँ आपकी इस भावना पर कुछ लिखने के लिए ...
    उतना सामर्थ्य है ही नहीं मेरा ..
    किन्तु भावनाएं इतनी प्रबल हैं कि..
    कछु लिखे बिन मोहे अब चैन कहाँ ....?
    बस आपकी इसी दिव्यता में ...एक छोटी सी ज्योत ...कम्पित सी लौ ..मेरी भी ...
    कुछ टूटे टूटे से शब्द हैं मेरे ..
    आशा है आप माला पिरो सकेंगी ...
    कुछ बिखरे बिखरे से भाव हैं मेरे ..
    आशा है आप समेट सकेंगी ...
    इस अद्भुत प्रयास के लिए बधाई ...एवं भविष्य के लिए अनंत शुभकामनाएं ....

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  8. बहुत सुन्दर...ह्रदय गदगद हो गया..आभार

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  9. दी,क्या कहूँ ..... बस माँ को नमन ....सादर !

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  10. आपकी प्रोफाइल में भी पढ़ा था उनका परिचय यूँ तो आपके व्यक्तित्व ने ही बता दी थी उनकी पहचान ...
    ईश्वर उन्हें स्वस्थ और दीर्घ जीवन प्रदान करे ...नमन !

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  11. निशब्द कर दिया आपके लिखे ने .बहुत बढ़िया प्रभावशाली व्यक्तित्व

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  12. बहुत बढ़िया और सार्थक परिचय....व्यक्तित्व के विभिन्न पहलूओं से परिचय प्राप्त हुआ ...आभार !
    ईश्वर उन्हें स्वस्थ और दीर्घ जीवन प्रदान करे ...नमन !

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  13. आपकी सादगी और मुस्कुराहट ने हमेशा प्रभावित किया...आज के परिचय ने उसके पीछे के रहस्य को खोल दिया.. आभार

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  14. बहुत बढ़िया और सार्थक परिचय..

    "मेरी कलम और मेरी माँ , समीक्षा कहूँ या प्यार या सम्मान .... बिना उन्हें कलम में पिरोये मेरी साहित्यिक यात्रा अधूरी है .
    यह तो निश्चय ही प्यार और सम्मान है................

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  15. पढ़ने के बाद कुछ कहने में अपने आप को असमर्थ पा रहा हूँ ...आपको जानता तो हूँ .. पर कगता है आज से कुछ कुछ पहचानने भी लगा हूँ ...

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  16. "मेरी कलम और मेरी माँ , समीक्षा कहूँ या प्यार या सम्मान .... बिना उन्हें कलम में पिरोये मेरी साहित्यिक यात्रा अधूरी है"

    "भावनाओं का धागा हमारे पैरों में बाँधने का अलौकिक उत्तरदायित्व उन्होंने पूरा किया"

    शुरू की ये दो पंक्तियाँ ही बेटी से जुडी हुई एक माँ की आत्मीयता व ममत्व से परिपूर्ण एक तार झंकृत कर जाता है, पुरे मन में फिर वही गूंज उठने लगती है..... माँ.............

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  17. Pant ji ki hastlipi dekhkar bahut khushi hui. adarniya Sarswati ji jo aapki amma hain ka vistrit parichay jaankar bahut achha laga. shubhkaamnaayen.

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  18. 'पन्त की बेटी' , निसंदेह यह सम्मान अन्य किसी भी सम्मान से बड़ा है | दी गयी कवितायें बहुत ही सुन्दर हैं |
    और उन्हीं के संस्कार हैं जो आपने अपने इस ब्लॉग की शुरुआत अपनी माता जी पर लिखी हुई पोस्ट से की |
    दोनों का हार्दिक अभिनन्दन |

    सादर

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