मंगलवार, 12 जुलाई 2011

संतुलित व्यवहार के धनी (कैलाश सी शर्मा)



आज बैठे हैं मौन
कुछ चेहरे
अपनी झुर्रियों में
कितने दर्द की परतें चढाये,
ताकते उस सड़क को
जिससे अब कोई नहीं आता,
क्योंकि
युवा और बच्चे
खो गये हैं दूर
कंक्रीट के जंगल में
और भूल गये हैं रस्ता
बरगद तक वापिस आने का...

इस सोच , इस अनुभव ने कैलाश सी शर्मा जी के ब्लॉग से मेरी पहचान करवाई . संतुलित व्यवहार के धनी लगे मुझे कैलाश जी .... ब्लॉग http://sharmakailashc.blogspot.com/ के साथ इनका एक ब्लॉग बच्चों के लिए भी है - http://bachhonkakona.blogspot.com/ क्योंकि इनका मानना है कि , अगर चाहते हो तुम खुशियाँ, ढूँढो इसको बचपन में . अपनी उम्र के साथ जो बचपन की मासूमियत साथ लिए चलते हैं उनकी सोच, उनकी परख एक अलग विशेषता रखती है .... उनके कम शब्दों में भी जीवन के सार मिलते हैं , कुछ ऐसे ही सार जीवन के कैलाश जी के ब्लॉग से मिलते हैं .
अपनी कलम से कैलाश जी अपने लिए कहते हैं -

मेरा जन्म 20 दिसम्बर, 1949 को मथुरा (उ.प्र.) के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ. मेरा बचपन मेरी नानी, जो उसी शहर में रहतीं थी, के साथ गुजरा. यह मेरे जीवन का स्वर्णिम समय था और नानी से मुझे जो प्यार मिला वह मेरे लिये आज भी अविस्मरणीय है . मैं जब १५ साल का था, वे इस दुनियां को छोड़ कर चली गयीं, लेकिन मुझे आज भी महसूस होता है कि वे सदैव मेरे आसपास हैं और उनके आशीर्वाद का साया हमेशा मेरे सिर पर है. माता पिता के प्यार के साथ बचपन और कॉलेज जीवन बहुत खुशहाल रहा.

अंग्रेजी साहित्य और अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षा के उपरांत संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा केन्द्रीय सचिवालय सेवा में चयन के बाद, 1970 में संघ लोक सेवा आयोग, नयी दिल्ली में नियुक्ति होने पर विभिन्न राजपत्रित पदों पर कार्य किया. 1985 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के सतर्कता विभाग में विशेषज्ञ श्रेणी में ज्वाइन किया और पूर्व, उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत मुख्य रूप से मेरा कार्य क्षेत्र रहा. सम्प्रति मैं सेवानिवृत के पश्चात दिल्ली में रह रहा हूँ.

मेरा सम्पूर्ण कार्यकाल मुख्य रूप से सतर्कता (Vigilance), भ्रष्टाचार-निरोध (Anti-corruption) और फ्रॉड अन्वेषण (Fraud Investigation) के क्षेत्र में रहा. कार्य काल में देश के सुदूर जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण के दौरान असीम गरीबी, शोषण, भ्रष्टाचार और मानवीय संबंधों की विसंगतियों से निकट का सामना हुआ. जब बस्तर के घने जंगलों में औरतों को बिना चप्पल पहने जंगल से लकड़ी लाते या राजस्थान के रेगिस्तान में भीषण गरीबी को देखा तो मन बहुत उद्वेलित हो गया. जब समाज के निम्नतर वर्ग को भी भ्रष्टाचार का शिकार बनते देखता तो यह सहनशीलता की सीमा से परे हो जाता था. गरीबी का निम्नतम स्तर और दूसरी तरफ धन का फूहड़ प्रदर्शन बहुत नजदीकी से देखा, जिसने मेरे जीवन और लेखन पर अमिट छाप छोड़ी.

एक आम सरकारी कर्मचारी की तरह प्रारंभिक जीवन में कुछ कठिनाइयां भी आयीं, पर वह समय भी निकल गया. जीवन में सच्चाई और ईमानदारी के राह से भटकाने के लिये बहुत प्रलोभन भी आये, पर उनका सफलता से मुकाबला कर पाया और इसमें मेरी पत्नी का पूरा सहयोग रहा. जीवन में आवश्यकताओं को अपनी क्षमता के अंदर सीमित रखा और जो कुछ ईमानदारी से कमाया उसी में संतुष्ट रहा. आज बेटे और बेटी अपने अपने जीवन में अच्छी तरह सुव्यवस्थित हैं. आत्म संतुष्टी मेरे जीवन का मूल मन्त्र रहा जिसके कारण आज भी व्यक्तिगत जीवन शांतिपूर्ण बीत रहा है, जिसमें मुझे पत्नी का पूरा सहयोग मिला. रिश्तों की कडवाहट को आज के समय का रिवाज़ या अपनी नियति समझ कर भुलाने की कोशिश करता हूँ.

लिखने का शौक कॉलेज जीवन से ही था, लेकिन कार्य व्यस्तता की वज़ह से समय नहीं निकाल पाता था. फिर भी जब समय मिलता लिखता रहता था. मेरा सब से सुखद पल संघ लोक सेवा आयोग में हिंदी दिवस के अवसर आयोजित प्रतियोगिता में मेरी कविता ताज महल और एक कब्र के लिये आदरणीय बालकवि बैरागी के कर कमलों से प्रथम पुरुष्कार पाना था. लेखन मेरे लिये केवल एक स्वान्तः सुखाय अभिव्यक्ति और आत्म-संतुष्टी का माध्यम है.

2010 में ब्लॉग जगत से परिचित हुआ और अपना पहला ब्लॉग ‘Kashish-My Poetry’ जुलाई 2010 में शुरू किया जिसे प्रबुद्ध पाठकों ने अपना स्नेह और प्रोत्साहन दिया. बच्चों से मुझे बहुत लगाव है क्यों कि उनका साथ जीवन को एक सात्विकता और निस्वार्थ प्रेम देता है. बच्चों के लिये लिख कर मन को बहुत सुकून मिलता है और एक अद्भुत शान्ति का अनुभव होता है, इसलिये 2011 में मैंने बच्चों के लिये ब्लॉग ‘बच्चों का कोना’ शुरू किया.

मेरे ब्लोग्स हैं Kashish-My Poetry और बच्चों का कोना

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कलम से कैलाश जी के बारे में विस्‍तृत परिचय पढ़कर अच्‍छा लगा उनके ब्‍लॉग एक अलग पहचान कायम किये हुये हैं ..प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आज कैलाश जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा |यकीनन उनकी टिपण्णी और उनके लेखन से उनके व्यक्तित्व का पता चलता है आज आपके द्वारा ये परिचय पढ़कर और अच्छा लगा ..कैलाश जी को शुभकामनायें ...!!

    जवाब देंहटाएं
  3. दी ,
    कैलाश जी के लेखन को पढ़कर जैसा सोचा था आपके परिचय ने उस पर सहमति जता दी .... मनशील लेखन है कैलाश जी का
    ......सादर !

    जवाब देंहटाएं
  4. कैलाश सर के जीवन के इन पहलुओं को जानकार बहुत अच्छा लगा.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. कैलाश जी से और उनकी सादगी से परिचय कराने का शुक्रिया ..

    उनकी रचनाओं में रिश्तों का दर्द अक्सर उभर कर आता है

    जवाब देंहटाएं
  6. sir ke bare mein jankari mili bahut hi sunder likhte hai.....

    जवाब देंहटाएं
  7. कैलाश जी के सादगी भरे जीवन को जाना ...
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  8. आपकी कलम से कैलाश जी को जानना बहुत सुखद लगा..कैलाश जी से अभी हाल मैं ही परिचय हुआ हैं .. ..बाल कवि बैरागी जी मेरे गाँव (मनासा -एम. पी.) के ही है उनका साथ मुझे बचपन मैं बहुत मिला ..जब भी वो दिल्ली से आते हम बच्चे उन्हें घेर कर बैठ जाते थे
    .और कवितापाठ सुनते थे.. सुनहरी यादे ..बचपन की ..

    जवाब देंहटाएं
  9. कैलाश जी से और उनकी सादगी से परिचय कराने का शुक्रिया ..उनकी रचनाए पढ़्ती हूँ जो मन को छू लेती है...

    जवाब देंहटाएं
  10. बचपन सचमुच वो लम्हा है जो कभी जाता नहीं , बस हमारे दिल के किसी कोने में छिपकर बैठ जाता है , बस उसके ऊपर चढ़ी धुल की पर्त साफ़ की और बचपन हाजिर |
    लेकिन वो धुल साफ़ करना ही सबसे कठिन काम है |

    अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी
    तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता |

    सादर

    जवाब देंहटाएं