रविवार, 19 जून 2011

कभी अमृता कभी इमरोज़ कभी बादल (रंजू भाटिया )






ब्लॉग की दुनिया में मेरी पहली आकर्षण `रंजू भाटिया रहीं और उनको पढ़ते हुए मैं उनकी ऑरकुट मित्र भी बन गई . 'प्यार के एक पल ने जन्नत दिखा दिया , प्यार के उसी पल ने मुझे ता -उमर रुला दिया - एक नूर की बूँद की तरह पीया हमने उस पल को ,एक उसी पल ने हमे खुदा के क़रीब ला दिया !!' इन पंक्तियों में मुझे अमृता मिलीं ,जिसकी कलम में इमरोज़ से रंग थे . कैनवस अमृता के थे , पन्ने पर नाम अमृता का था पर अक्षर अक्षर रंजना जी के थे . एहसासों पर किसी की मल्कियत नहीं होती , हाँ पिरोये शब्दों पर उस ख़ास का नाम होता है, जो पिरोता है , पर पिरोये गए फूलों की ताजगी जो बरकरार रखता है , फूल उसके हो जाते हैं .
उनकी एक रचना ...

'
कविता में उतरे
यह एहसास
ज़िन्दगी की टूटी हुई
कांच की किरचें हैं
जिन्हें महसूस करके
मैं लफ्जों में ढाल देती हूँ
फ़िर सहजती हूँ
इन्ही दर्द के एहसासों को
सुबह अलसाई
ओस की बूंदों की तरह
अपनी बंद पलकों में
और अपने अस्तित्व को तलाशती हूँ
पर हर सुबह ...........
यह तलाश वही थम जाती है
सूरज की जगमगाती सी
एक उम्मीद की किरण
जब बिंदी सी ......
माथे पर चमक जाती है
एक आस ,जो खो गई है कहीं
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है... ....

.' जिसके करीब आकर मैंने सोचा , क्यूँ पूर्णता में भी तलाश रह जाती है शेष ! मेरी सोच कहती है कि अपूर्ण वह व्यक्ति है जो झुककर नहीं मिलता . अहम् के कीड़े उसे इस तरह ख जाते हैं कि शक्ल नहीं पहचान में आती . रंजना जी में मैंने बिना किसी तर्क कुतर्क के सहजता देखी और निःसंदेह यह सहजता उनकी विरासत है, उनकी पहचान है , उनकी लेखनी है , उनकी मुस्कुराहट है !

मेरी कलम के बाद उनके शब्दों से रूबरू होने का वक़्त है , जो मेरी कलम को प्रमाणित करेगा ....

'नाम --रंजना (रंजू )भाटिया

जन्म--- १४ अप्रैल १९६३
शिक्षा-- बी .ऐ .बी .एड
पत्रकारिता में डिप्लोमा

अनुभव ---१२ साल तक प्राइमरी स्कूल में अध्यापन
दो वर्ष तक दिल्ली के मधुबन पब्लिशर में काम जहाँ प्रेमचन्द के उपन्यासों और प्राइमरी हिंदी की पुस्तकों पर काम किया सम्राट प्रेमचंद के उपन्यासों की प्रूफ़-रीडिंग और एडीटिंग का अनुभव प्राप्त हुआ।

प्रकाशन -- प्रथम काव्य संग्रह "साया" सन २००८ में प्रकाशित
दैनिक जागरण ,अमर उजाला ,नवभारत टाइम्स ऑनलाइन भाटिया प्रकाश मासिक पत्रिका, हरी भूमि ,जन्संदेश लखनऊ आदि में लेख कविताओं का प्रकाशन ,हिंदी मिडिया ऑनलाइन ब्लॉग समीक्षा

लेखन --कविता नारी ,सामाज विषयक लेखन के साथ बाल साहित्य लिखने में विशेष रूचि वह नियिमत रूप से लेखन जारी है इन्टरनेट के माध्यम से हिंदी से लोगों को जोड़ने तथा हिंदी में लिखने के लिए प्रोत्सहित करने में विशेष रूचि फिलहाल कई ब्लॉग पर नियमित लेखन अपना ब्लॉग कुछ मेरी कलम से बहुत लोकप्रिय है इस ब्लॉग को अहमदाबाद टाइम्स और इकनोमिक टाइम्स ने विशेष रूप से कवर किया है| दीदी की पाती बाल उद्यान में बहुत लोकप्रिय रहा है और जन्संदेश लखनऊ में यह नियमित रूप से पब्लिश हो रहा है | इ पत्रिका साहित्य कुञ्ज पर लेखन और वर्ड पोएटिक सोसायटी की सदस्य

उपलब्धियां :
2007 तरकश स्वर्ण कलम विजेता
२००९ में वर्ष की सर्व श्रेष्ठ ब्लागर

२००९ में बेस्ट साइंस ब्लागर एसोसेशन अवार्ड

२०११ में हिंद युग्म शमशेर अहमद खान बाल साहित्यकार सम्मान


रियाणा के एक कस्बे कलानौर जिला रोहतक .पहली संतान के रूप मे मेरा जन्म हुआ १४ अप्रैल १९६३ माँ पापा ने नाम दिया रंजू | पहली संतान होने के कारण मम्मी पापा की बहुत लाडली थी | और बहुत शैतान भी |र मे पढ़ाई का बहुत सख्त माहौल था | होना ही था जहाँ नाना , नानी प्रिंसिपल दादा जी गणित के सख्त अध्यापक हो वहां गर्मी की छुट्टियों मे भी पढ़ाई से मोहलत नही मिलती थी| साथ ही दोनों तरफ़ आर्य समाज माहोल होने के कारण उठते ही हवन और गायत्री मन्त्र बोलना हर बच्चे के लिए जरुरी था |

जब माँ थी तो वह कई बार हमें "हरिवंश राय बच्चन "की कविता का वह अंश लोरी के रूप मे सुनाती थी "जो बीत गई वह बात गई ..जीवन मे एक सितारा था ..माना वह बेहद प्यारा था " ..वह कविता दिलो दिमाग में ऐसी बसी कि अब तक प्रेरणा देती है | शिवानी और अमृता प्रीतम की किताबों से पढने का शौक बारह साल की उम्र से ही पैदा हुआ और फ़िर अमृता को पढने का जो नशा उस वक़्त चढ़ा वह अब तक नही उतरा ..तभी से ही निरंतर लिखने का सिलसिला भी चल पड़ा |अभी कालेज कि पढाई भी पूरी नहीं हुई थी कि विवाह हो गया शादी के बाद बी एड किया और एक स्कूल में पढ़ाने का काम शुरू किया कुछ साल बाद लेखन का काम अधिक रुचने लगा तो वही कम अब तक निरंतर जारी है

19 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस श्रंखला से ब्लोगरों को जानना बहुत अच्छा लग रहा है.

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  2. रंजना जी से मुलाकात यादगार है...साया भी पढ़ी और निरन्तर उनका ब्लॉग भी पढ़ते है...बहुत अच्छा लगा यहाँ मिल कर.

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  3. हर रोज़ एक नयी शक्सियत से रू ब-रु हो रहे हैं ..!!उनकी ज़िन्दगी की खुली किताब पढ़ रहे हैं ...!!कितनी प्रेरणा मिल रही है हम सबको ...
    बहुत अच्छा लग रहा है सबके बारे में जानना ..!!
    रंजू जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा .
    रश्मि जी आपका आभार और रंजू जी को ढेर सारी शुभकामनाएं ...!!

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  4. रंजू जी का विभिन्न पहलूओं से बहुत बढ़िया और सार्थक परिचय प्राप्त हुआ....आपका आभार और रंजू जी को ढेर सारी शुभकामनाएं ...!!

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  6. 'रंजू' जी की काव्ययात्रा का सुन्दर परिचय और व्यक्तित्व कृतित्व का परिचय प्राप्त हुआ .. अच्छा लगा
    सूरज की जगमगाती सी
    एक उम्मीद की किरण

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  7. रंजू जी के बारे में विस्तृत रूप से जान कर बहुत अच्छा लगा..

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  8. आपके माध्यम से रंजू जी का परिचय और उनकी काव्य यात्रा जानना रुचिकर लगा ... आभार

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  9. रंजू जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा ....
    रश्मि जी आपका आभार और रंजू जी को ढेर सारी शुभकामनाएं ...

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  10. रंजना जी के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा| इतना अच्छा परिचय देने के लिए आपका हार्दिक साधुवाद|

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  11. रंजनाजी की कलम से अमृता के लिए पढना हमेशा ही अच्छा लगता रहा है ...
    आभार !

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  12. रंजना जी के बारे में आपने जो भी कहा है बहुत ही सही है उनकी कलम से अमृता जी के बारे में ..उन्‍हें पढ़ने का अवसर मुझे भी प्राप्‍त हुआ.. पर इतने विस्‍तार से नहीं जाना उनके बारे में जितना आपकी कलम ने कहा ...आपका यह प्रयास यूं ही चलता रहे बस यही शुभकामनाएं हैं ..।

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  13. रंजना जी की कविताएँ किसी दूसरी दुनिया में ले जाती हैं ..उनका विस्तार से परिचय अच्छा लगा...

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  14. रंजनाजी से एक बार रूबरू मिल चुके हैं लेकिन उनकी कविता में उनसे बार बार मिलना एक अलग ही आनन्द देता है...आज यहाँ आपके द्वारा कुछ नया भी जानने को मिला...आभार

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  15. rashmi ji , sach much sangrah karne yougya sharnkhla hai ye

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  16. अमृता प्रीतम को समझने के लिए कभी कभी मुझे लगता है रंजू जी को पढ़ना बहुत जरूरी है ... कविताओं के साथ साथ उनका व्यक्तित्व भी प्रभावित करता है ... शुक्रिया इस परिचय के लिए ...

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  17. लाजवाब कविता , सबसे खास बात बहुत छोटे-छोटे शब्दों का प्रयोग करके , बहुत बड़ी बात| (असल में मुझे ज्यादा कठिन शब्द समझ ही नहीं आते) :)

    सादर

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