राजेश उत्साही , एक सहज व्यक्तित्व के मालिक . सत्य, शालीनता , विस्तृत दृष्टिकोण - इनकी रचनाओं, इनकी बातों में स्वतः दिख जाती है. इनकी 'गुल्लक' जिसे वाकई इन्होंने बहुत कुछ गंवाकर हासिल किया , उसमें यादों वादों और संवादों को इन्होंने संग्रहित किया है.
मैंने इन्हें जाना जब ये मेरे ब्लॉग पर आए और बड़ी सहजता, शालीनता से इन्होंने मेरी मात्र अशुद्धि को इन्गित किया .... सच मानिये , मुझे बड़ी ख़ुशी हुई . लिखने में, जल्दबाजी में, और कई बार अज्ञानता में गलतियां होती हैं . इसे इन्गित करना सबके लिए आसान नहीं होता, वही करता है , जो आपके प्राप्य से उस कमी को दूर करना चाहता है , वही सही वक्ता , श्रोता और पाठक होता है . वरना पीठ पीछे निंदा .... व्यक्ति के बीमार मन का द्योतक है.
राजेश जी के साथ बातें करते हुए घरेलु से भाव पनपे ... जो आजकल सर्वथा दुर्लभ है , क्योंकि घर सा कोई दिखना नहीं चाहता ! हो या न हो - हर कोई पेज-3 के गेटअप में खड़ा रहता है. सहजता को तो आदमी खुद ही दीमक बन चट कर गया है . और मैंने राजेश जी को बहुत सहज पाया .... इन्होंने अपनी लेखनी में जिस तरह अपनी पत्नी 'नीमा' को उतारा है, http://gullakapni.blogspot.com/2010/07/blog-post.html वह राजेश जी के सूक्ष्म दृष्टिकोण की गहनता का कैनवस है , जिस पर उभरे हर रंग नीमा जी के हैं !
अपनी माँ श्रीमती सरस्वती प्रसाद जी की पंक्तियाँ उद्धृत करना चाहूँगी राजेश जी की छवि को उभारने के लिए - 'जीवन की राह को सहयात्री बन काट लेंगे, दर्द को हम बाँट लेंगे ....' जी हाँ , जीवन के उतार-चढ़ाव में सहयात्री का ज़िक्र करना लोग भूल जाते हैं या भूल जाने में शान समझते हैं , पर राजेश जी ने पलों को नीमामय कर दिया है . मैंने जब उनके बेटे को अपना आशीर्वाद दिया तो राजेश जी ने उसके हाथों मुझे मेल करवाया , संस्कारयुक्त सहजता उनमें ही नहीं , उनके बेटे में भी मुझे मिली .
अब हम राजेश जी के शब्दों से राजेश जी को जानेंगे , तो ये हैं राजेश उत्साही =
1958 के 13 नवम्बर की एक सर्द रात में भोपाल के पास मिसरोद रेल्वे- स्टेशन के घुड़सालनुमा रेल्वे क्वार्टर में एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम दिया गया मुन्ना। पिता रेल्वे में स्टेशन मास्टर थे। पिता का स्वभाव कुछ ऐसा था कि वे अन्याय और गलत बात बिलकुल सहन नहीं करते थे यानी उनकी अपने अफसरों से नहीं बनती थी। नतीजा यह कि हर दूसरे साल उनका तबादला हो जाता।
मुन्ना चार साल का था पिता का तबादला बीना हो गया। रेल्वे स्टाफ का एक छोटा सा विद्यालय था। मुन्ना को उसमें भेजा गया। पहले ही दिन कुछ ऐसा हुआ कि मुन्ना के पिता और शिक्षक में झड़प हो गई। नतीजा मुन्ना घर वापस। हां मुन्ना को इस घटना से इतनी उपलब्धि तो हो ही गई कि उसका नामकरण हो गया-राजेश यानी राजेश पटेल।
*
राजेश छह साल का हुआ तो इटारसी के पास पवारखेड़ा में था। स्कल जाने की बारी आई तो
जैसे तैसे धक्का देकर राजेश को गांव की पाठशाला में ले जाया गया। मास्साब ने पूछा,’ तुम्हारे पिताजी पढ़ लिखकर स्टेशन मास्टर बन गए,तुम क्या भैंस चराओगे।‘ राजेश ने सोचा,शायद हां कहने से स्कूल से छुटकारा मिल जाएगा। तो बोल दिया, ‘हां।‘ पर ऐसा कभी हुआ है क्या जो उस दिन होता। फिर होशंगाबाद, इकडोरी, सबलगढ़ और इटारसी के विभिन्न विद्यालयों में पढ़ते हुए जैसे तैसे 1975 में ग्यारहवीं पास किया थर्ड डिवीजन में।
*
इस बीच राजेश के अंदर कहीं एक भावना जन्म लेने लगी थी। शायद यह चंबल के पानी का असर था। राजेश ने तय किया कि या तो कुख्यात होना या फिर प्रख्यात । सबसे पहले एक नया नाम सोचा वह था उत्सा ही । इस तरह अब नाम हो गया राजेश कुमार पटेल उत्साही। (बाद में इसमें से कुमार और पटेल को विदा कर दिया।) फिर धीरे धीरे कुछ लिखना पढ़ना शुरू किया। आठवीं तक आते आते सौ-डेढ़ सौ उपन्यास पढ़ डाले थे। पत्रिकाएं,अखबार पढ़ना भी शगल था।
*
ग्यारहवीं पास करके खंडवा के नीलकंठेश्वर महाविद्यालय में बीएससी में प्रवेश लिया। और प्रथमवर्ष ही कुछ इतना पसंद आया कि उसी में दो साल गुजारे। लेकिन महाविद्यालय को राजेश जी पसंद नहीं आए सो उसने उनसे क्षमा मांग ली। बीएससी का दूसरा साल होशंगाबाद के नर्मदा महाविद्यालय के प्रांगण में गुजरा। लेकिन फिर तीसरा साल कुछ ऐसा भाया कि उसी में दो साल गुजर गए। नर्मदा महाविद्यालय ने इसे अपना अपमान समझा और बिना पास किए ही राजेश जी को महाविद्यालय से बाहर कर दिया।
इस बीच राजेश जी पत्र संपादक से लेकर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में बकायदा लिक्खाड़ के रूप में स्थापित हो चुके थे। होशंगाबाद में उन्हें लोग इसी तरह जानते थे। दस बाइ दस के कमरे में रात के दो दो बजे तक चलने वाली काव्य गोष्ठियों में वे सादर आमंत्रित किए जाते थे। जहां लोग बस एक दूसरे की रचनाओं को वाह वाह कहकर सराहने के अलावा कुछ और कहना ही नहीं चाहते थे।
*
लेकिन राजेश को स्नातक की डिग्री का इस तरह ठुकराया जाना कुछ जमा नहीं। पहले तो उसने सोचा कि इहलीला समाप्त ही कर ली जाए। तरीके भी थे। घर के सामने पल पल गुजरती रेल। या फिर नर्मदा की अतल गहराई। लेकिन इसके लिए भी हिम्मत चाहिए। वह नहीं जुटा पाया। लेकिन हिम्मत तो जिंदा रहने के लिए भी चाहिए।
*
खंडवा कॉलेज के एक परिचित शिक्षक श्याम बोहरे होशंगाबाद में नेहरू युवक केन्द्र के समन्वयक बनकर आए थे। राजेश उन्हें श्याम भाई कहता था। वह उनसे मिला। राजेश का आत्मवविश्वास टूट चुका था। उसे वह अपने अंदर पैदा करना था। राजेश ने उनसे कहा उसे काम चाहिए। पैसा मिले या न मिले। लेकिन वह कुछ कर सकता है, यह आत्म विश्वास अपने में पैदा करना चाहता है। नेहरू युवक केन्द्र में एक ही पद खाली था चौकीदार कम फर्रास(सफाईवाला) का। राजेश ने वह पद स्वीकार कर लिया। इस पद की जो जिम्मेफदारियां थीं, वे उसने पूरी कीं। लेकिन श्याम भाई उससे कुछ और भी करवाना चाहते थे। पहले ही दिन से उसे दिशा नामक एक सायक्लोशस्टामयल पत्रिका की पूरी जिम्मेदारी सौंप दी। यह पत्रिका ग्रामीण युवाओं के लिए थी। राजेश को जैसे अपने मन माफिक काम मिल गया। राजेश ने तीन साल नेहरू युवक केन्द्रर में काम किया। इस बीच उसने टायपिस्ट, लिपिक और लेखापाल का न केवल काम सीखा बल्कि इन पदों पर वहां काम भी किया। साथ ही साथ स्वासध्याहयी छात्र के रूप में बीए की परीक्षा भी पास की। बाद में समाजशास्त्र में एमए भी किया। आत्मविश्वास और आत्मसम्मान जैसे लौट आया था।
*
उन दिनों मप्र के होशंगाबाद जिले में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण प्रयोग हो रहा था। इसे आज होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम के नाम से याद किया जाता है। इसे किशोरभारती नामक संस्था ने शुरू किया था, जिसके प्रमुख कर्ताधर्ता थे डा.अनिल सद्गोपाल । नेहरू युवक केन्द्रा में ही इस कार्यक्रम को आगे ले जाने के लिए रणनीति बन रही थी। वहीं योजना बनी एकलव्यल संस्था के गठन की। श्याम भाई ने बहुत सहज तरीके से पूछा एक संस्था बन रही है, काम करोगे। हां कहने में राजेश ने एक पल की भी देर नहीं की। इधर 1982 की 30 जून को नेहरू युवक केन्द्र छोड़ा और 1 जुलाई को एकलव्य में प्रवेश किया। फिर 1985 में भोपाल से चकमक बालविज्ञान पत्रिका के प्रकाशन की योजना बनी तो राजेश जो अब तक राजेश उत्सांही के रूप में स्थापित हो चुके थे चकमक की टीम में थे। और फिर वे 1985 से 2002 तक लगातार सत्रह साल तक चकमक की टीम में रहे सह-संपादक से लेकर कार्यकारी संपादक की भूमिका में। इस बीच एकलव्यी में विभिन्न जिम्मेदारियां उठाते रहे। 27 साल तक एकलव्य में काम करने के बाद 2009 में बंगलौर चले गए और वहां अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा संचालित टीचर्स आफ इंडिया पोर्टल में हिन्दी संपादक की हैसियत से कार्यरत हैं।
उन्होने इस बीच जो उपलब्धियां हासिल कीं उनके बारे में इस लिंक पर विस्तार से देखा जा सकता है http://utsahi.blogspot.com/p/blog-page_12.html
* कविता,कहानी,लघुकथा व्यंग्य आदि में कलम चलाई। बच्चों के लिए लिखे जाने वाले साहित्य में गहरी रूचि रही है। किसी भी रचना को आलोचक की निगाह से देखना खासा भाता है। उस पर अपनी राय देने से नहीं चूकने की आदत है। पिछले लगभग दो साल से ब्लागिंग की दुनिया में हैं और तीन ब्लागों के मार्फत सबसे मुखातिब हैं। उनके ब्लाग की लिंक ये रहीं- गुल्लकhttp://utsahi.blogspot.com/
यायावरी http://apnigullak.blogspot.com/
गुलमोहर http://gullakapni.blogspot.com/
राजेश जी से मेरा भी परिचय कुछ इसी तरह हुआ था कि उन्होने किसी गलती पर मेरा ध्यान दिलाया था और कहा था आप नाराज तो नही है ना और मेरे नही कहने पर उनके साथ एक अच्छे दोस्त का रिश्ता जुड गया……………आपने सही कहा वो किसी भी रचना को एक आलोचक की दृष्टि से देखते है और ये ही उनकी खासियत है…………काफ़ी बातें तो पता थी मगर जो पता नही थीं आज आपने उनसे परिचित करा दिया…………जीवन एक संघर्ष है ये उक्ति उन पर पूरी तरह चरितार्थ होती है।
जवाब देंहटाएंमेरे बारे मे जब आपने लिखा था तब राजेश जी ने जो मेरी कविताओ के बारे मे अपने विचार वहाँ प्रस्तुत किये है उनके लिय मै उनकी तहेदिल से आभारी हूँ जानती है वो मुझे अपने लिये चाहिये था कहीं भेजनी थीं किसी साहित्यकार की दृष्टि मे मेरी कविताये कैसी हैं और उस वक्त वो बहुत बिज़ी थे मगर फिर भी अपने बिज़ी समय मे से मेरे लिये वक्त निकाल कर जो उन्होने इतना गहन चिन्तन और विश्लेषण किया उसकी मै आजन्म शुक्रगुज़ार रहूँगी अगर वो चाहते तो खानापूर्ति करते हुये चन्द शब्द भी लिखकर भेज सकते थे मगर उन्होने ऐसा नही किया ये उनके सह्रदय और विनम्र स्वभाव की एक मिसाल है और उसके लिये मै उनकी हार्दिक आभारी हूं।
Rajesh bhaiya...:)
जवाब देंहटाएंinke liye bas ye smile kaafi hai!!
राजेश जी की टिप्पणियों में बिना किसी झिझक के अपनी बात कह देने के अंदाज़ से सभी परिचित हैं.
जवाब देंहटाएंउनके जीवन की कुछ झलकियाँ उनके पोस्ट के माध्यम से देखने को मिलती रहती हैं.
यहाँ बहुत ही ईमानदारी और साफगोई से उन्होंने अपना परिचय दिया है...
आभार उनसे मिलवाने का.
काफी आत्मीयता भरा परिचय दिया है राजेश जी का ।
जवाब देंहटाएंसरल व्यक्तित्व लेकिन लेखनी ऊंचे दर्जे की है ।
राजेश जी का परिचय करवाने के लिए आपका आभार .....आपने इतने विस्तार से बताया कि हम सब कुछ जान सके ...!
जवाब देंहटाएंइन्हें तो औरो के ब्लॉग पर देखा था अब तक..... अब तो आपने इतना विस्तृत परिचय भी दे दिया कि मैं इनके ब्लॉग पर भी घूम कर आ गयी . और अब बार-बार जाती रहूंगी , जब भी समय मिले....
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो 'शख्स -मेरी कलम से 'ब्लॉग को मेरी ओर से बहुत -बहुत बधाई कि उसके योगदानकर्ता राजेश उत्साही व रश्मि प्रभा हैं। जिनके संयुक्त प्रयत्न से कितनी ही छिपी प्रतिभायें प्रकाश में आयेंगी और ब्लॉग जगत परिवार के रूप में बदल जायेगा ।
जवाब देंहटाएंराजेश जी के कार्य तंत्र व उनकी सज्जनता से भली-भांति परिचित हूं।उनकी आलोचना दृष्टि बहुत सूक्ष्म ,स्वस्थ और समान है।कहा जाता है सबसे बड़ा मित्र आलोचक होता है।गलत दिशा में मुड़ते ही उसका एलार्म बजने लगता है। उनसे संपर्क होने के बाद मेरा भी कुछ ऐसा ही अनुभव ह। उनका विषद परिचय पाकर पहचान और आत्मीयता की परिधि बढ़ी इसके साथ ही अन्य साहित्यक स्तंभों के प्रति जिज्ञासा है।
सुधा भार्गव
राजेश उत्साही जी से यहाँ विस्तृत परिचय मिला ... आभार
जवाब देंहटाएंराजेश जी जैसे सुलझे विचारों वाले शख्स से मिलवाने का आभार!
जवाब देंहटाएंउत्साही जी की शख्सियत सच बिल्कुल वैसी ही है जैसा आपने उनका परिचय दिया, प्रत्येक ब्लॉग पर निष्पक्ष रूप से सच को सच और स्पष्ट तरीके से कहना उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा है..जीवन के कई पहलुओं के साथ उनके परिवार और उनका विस्तृत परिचय आपकी लेखनी ने कराया उसके लिये आपका आभार उत्साही जी के लिये शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंराजेश जी का परिचय करवाने के लिए आपका आभार .....
जवाब देंहटाएंराजेशजी के बारे में जाना बहुत अच्छा लगा और खासकर खंडवा का जिक्र आने पर खंडवा की यादे तजा हो गई |
जवाब देंहटाएंराजेश जी के शालीन व्यक्तित्व को आपकी कलम से जाना ...
जवाब देंहटाएंआभार !
राजेश जी , आपका अपना परिचय देने का तरीका सबसे बेहतरीन है |
जवाब देंहटाएंऔर सबसे खास बात , आपने अपने संघर्ष को भी जिस हलके - फुल्के हास्यात्मक लहजे में लिखा , बहुत ही अच्छा |
सादर