सुधा भार्गव जी के ब्लॉग से मैं परिचित थी , पढ़ती भी रही .... पर वे मेरे मानस पटल पर अंकित हुईं श्री राजेश उत्साही द्वारा लिखित उनसे मिलने के वृतांत पे ...
जीवन में सीखने के लिए हमेशा कुछ होता है हमारे पास - सुधा जी से मैंने संस्कारों की शांत निर्बाध चलनेवाली ज़िन्दगी के ढंग लिए . उनकी लघुकथा बहुत कुछ
कहेगी ... पात्र काल्पनिक होते हैं , सोच अनुभवों के रास्ते से निकलते हैं , कल्पना भी मौन के गृह से निकलते अपने ख्वाब होते हैं - http://sudhashilp.blogspot.com/2011/05/blog-post.html
बच्चों के लिए इनका जो ब्लॉग है, उसका आरम्भ उनके उस रूप को रेखांकित करता है , जिससे बचपन की झलक मीठे अंदाज में मिलती है . "कल सपने में देखा मैं एक छोटी सी बच्ची
बन गई हूँ ....... तुम सब मेरा जन्मदिन मना रहे हो, चारों तरफ खुशियाँ बिखरी हैं , टौफियों की बरसात हो रही है ....." , एक नन्हीं बच्ची उनके चेहरे से झांकती है . छोटी सुधा और आज की सुधा के बीच को मैंने पढ़ा , कैसे ? यह बताना मुमकिन नहीं , पर पढ़ा और अपनी यादों के एल्बम में संजो लिया , फुर्सत के क्षणों में देखने की आदत जो है .
दूर दूर , अजनबी से होकर भी हम अजनबी नहीं , अभिव्यक्ति ने हमें अपने तरीके से किसी को समझने का मौका दिया है और साथ होकर भी वर्षों हम कितनी बातों से अनजान रहते हैं तो ज़रूरी है कुछ बातें उसकी जुबानी सुनना ..... तो चलिए एक विस्तृत परिचय सुधा जी का उनके द्वारा !
बचपन से अब तक का जीवन सफर
कहा जाता है बचपन जीवन का सबसे छोटा मौसम होता है.। पर मैं तो कहूँगी यह सबसे लम्बा होता है । तभी तो जीवन के इस मोड़ पर भी वह मेरी हथेलियों पर पसरे बैठा है और मैंने --मैंने मुट्ठियाँ कसकर बाँध रखी हैं । यदि उसका एक कण फिसल भी गया तो धरती हँसने लगती है ।
मेरा जन्म अनूपशहर (जिला -बुलंदशहर )के एक ऐसे धनाढ्य ,प्रतिष्ठित सयुंक्त परिवार में हुआ जहाँ वात्सल्य का कलश छलका पड़ता था । बाबा डा. श्यो सहाय भार्गव मेरे लिए देवतुल्य थे ,मेरा कवच थे । पिता डा.जगदीश्वर सहाय के क्रोध से हमेशा बचाते थे । औषधि निर्माण का कार्य उन्हीं के समय शुरू हो गया था जो निरंतर प्रगति पर है । बायोकैमिक -होम्योपैथिक चिकित्सा से सम्बंधित हिन्दी ,उर्दू .अंग्रेजी में पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ ।
बचपन में पढ़ाईमें मन नहीं लगता था इसलिए हमेशा मास्टरों के घेरे में रहती। हाई स्कूल में आते -आते हिन्दी साहित्य के प्रति रूचि जाग उठी। शरतचंद्र .बंकिम चंद ,रवीन्द्र नाथ टेगोर के उपन्यास पहले ही ख़त्म कर चुकी थ। सूर .कबीर साहित्य भी छोटी सी लाइब्रेरी में जुड़ गया।.महादेवी वर्मा की छायावादी कविताओं में कहीं खो जाती और हूक सी उठती --मैं भी उनकी तरह लिखूँ ।
उनको मैंने एक पत्र भी लिखा ,जबाब भी आया पर दुर्भाग्यवश वह कहीं खो गया ।उन्होंने मेरे अक्षरों को मोती समान बताया था ।
मेरा आरम्भ से ही 'LAUGHING THEORY'में विश्वास है। इसी कारण हास्य जगत के शिरोमिणी काका हाथरसी की कविताओं व काका -काकी के प्रहसनों ने मुझे गुदगुदाया । उनको भी मैंने पत्र लिखा था -उत्तर मेरे पास सुरक्षित है । उन्होंने ढेर सा आशीर्वाद दिया था --जहाँ भी रहो अमृत की वर्षा करो । दूसरों को खुश करती रहो।
इंट्ररमीडियेट करते -करते हिन्दी की विशेष परीक्षाएं जैसे सिद्धांत सरोज ,प्रवेशिका .विद्द्या विनोदिनी पास कर लीं ।
बी,ए,-टीका राम गर्ल्स कालिज अलीगढ़
से छात्रावास में रहकर किया॥यहाँ सांस्कृतिक व खेलकूद की गतिविधियाँ कुछ ज्यादा ही हो गईं । वैसे भी पिताजी किताबी कीड़ा नहीं बनाना चाहते थे ना ही उन्होंने लड़के लडकी के पालन -पोषण में कोई भेदभाव किया ।
छात्र संघ से जुड़ने के कारण वक्तव्य कला में निखार आया। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर डा.कर्नल जैदी ,अरुणा आसफ अली .श्री जगजीवन राम आदि को देखने का अवसर मिला ।
बी.टी.उरई वैदिक कालिज से की॥.योगा का प्रथम पाठ यहीं सीखा जो बाद में जीवन का अनिवार्य अंग बन गया।
अन्य योग्यता -रेकी चिकित्सक
विवाहोपरांत कलकत्ते चली गई। प्रतिभा के धनी हरि कृष्ण भार्गव उषा फैक्टरी व फैन फैक्टरी में एक कर्तव्यनिष्ठ इंजीनयर रहे। वे बड़े सरल और सौम्य प्रकृति के थे ।
बड़े बेटे ने रांची B.I.T.से इंजीनियरिंग की जो आजकल लन्दन में है । छोटे बेटे ने खड़गपुर I.I.T.से इंजीनियरिंग की जो कनाडा से अभी हाल में भारत लौटा है॥ बेटी ने कलकत्ते से ही M.B.B.S.किया। शादी बाद से वह कानपुर हैं ।दामाद भी सर्जन हैं।दोनों बहुओं ने डाक्ट्रेट की है।
अक्टूबर -२०११ में मेरी पोती और नाती (2 grandchildren)कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी लन्दन में इंजीनियरिंग करने जा रहे हैं।इस तरह से सरस्वती की बहुत मेहरबानी है।
मुझे बच्चों के संसर्ग में हमेशा प्राकृतिक सुख मिल। जैसे ही अपने बच्चे बड़े हुए ,मौका मिलते ही बिरला हाई स्कूल कलकत्ता से जुड़ गई ।करीब २२ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया ।
लेखन संसार कविता से शुरू हुआ था । मुक्तक,यात्रा संस्मरण .कहानी ,लघुकथा तथा बालसाहित्य जैसी अनेक विधाओं पर लेखनी चलती रहती है। जनसत्ता ,विश्वामित्र ,सरिता अहल्या ,अनुराग .नंदन ,साहित्यकी आदि अनेक पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ छपती रही हैं।
बिभिन्न कवि गोष्ठियों में सक्रिय रही । दिल्ली आकाशवाणी से कहानी व कविताओं का प्रसारण हुआ।
प्रकाशित पुस्तकें
रोशनी की तलाश में --काव्य संग्रह
बालकथा पुस्तकें---
१ अंगूठा चूस
२ अहंकारी राजा
३ जितनी चादर उतने पैर पसार
सम्मान
डा.कमला रत्नम सम्मान
सम्मानित कृति--रोशनी की तलाश में(कविता संग्रह )
राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान
सम्मानित कृति
जितनी चादर उतने पैर पसार
पुरस्कार --राष्ट्र निर्माता पुरस्कार (प. बंगाल -१९९६)
अभिरुचि -पेंटिंग और भ्रमण
विदेश भ्रमण --अमेरिका ,इंग्लैंड ,कनाडा ,यूरोप ,नेपाल ,भूटान ,सिंगापुर,मलेशिया आदि ।
रिटायर्मेंट के बाद दिल्ली सरिता विहार में बस गये। चिंता में थे महानगरी में कैसे पैर जमेंगे। इस सन्दर्भ में डा.शेरजंग गर्ग और इंदु जैन को कभी नहीं भूल सकत। मैं जानती थी लेखन के मामले में---- मैं कितने पानी में हूँ ।पर .गर्ग जी ने कभी हतोत्साहित नहीं किया। बस एक बात कहते थे --खूब लिखो-- फिर उसे बार -बार पढ़ो और माँजो ।
इंदुजी अब हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी कृतियाँ ,उनका सद्व्यवहार अमिट छाप छोड़ गया है।उदासीनता के बादल जब मुझ पर छाते , उनके शब्द मीठी फुआर बन बरस पड़ते --कभी अपने को कम न समझो ।जैसे एक माँ अपने बच्चे को जन्म देती है उसी प्रकार कविता का जन्मदाता एक कवि होता है।
सोचा था दिल्ली में स्थाई रूप से रहेंगे ।परन्तु भार्गव जी की अस्वस्थ्यता के कारण बैंगलोर आना पड़ा | गतिविधियाँ ज्यादातर घर तक सीमित हो गईं|
डा. कुमारेन्द्र सिंह सैंगर जी के द्वारा ब्लॉगकी दुनिया से परिचित हुई।उनसे ही प्रोत्साहन पाकर तूलिकासदन ब्लॉग का आरम्भ किया । अन्य मित्रों की सहायता से क-ख-ग सीखकर सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ती गई ।परिणाम आपके सामने है । लेकिन अभी बहुत कुछ सीखना है और सीखने की कोई उम्र नहीं होती।
मेरे ब्लॉग--
१--तूलिका सदन (लिंक ;sudhashilp.blogspot.com)
२--बालकुंज (baalkunj.blogspot.com)
3--बचपन के गलियारे (baalshilp.blogspot .com)
२०११-जनवरी -फरवरी--मेरी जीवन परीक्षा के कठिनतम दिन थे । मैं उस परीक्षा में पास न हो सकी।अपने जीवन साथी को रोकने की बहुत कोशिश की पर वे १३फरवरी को प्रात:ही हमें अकेला छोड़कर चले गये । हाँ इतना अवश्य है कि जाने से पहले बहुत मजबूत बना गये ताकि पाँव कभी रुकें नहीं ।आगे के सफर में चलना तो है--- चलना ही जीवन है ।
सुधा भार्गव जी के ब्लॉग में उन्हें पढ़ कर आई ..बहुत सशक्त लेखनकी धनी है..परिचय करवाने के लिये धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंbhut hi saskt parichaye....
जवाब देंहटाएंpahlee baar jana sayad ...sudha jee ko...!!
जवाब देंहटाएंdhanyawad!!
सुधा जी से हाल में ही लन्दन में फोन से बात हुई. बहुत सौम्य और शांत लगीं.उनकी रचनाएं भी पढ़ी हैं कुछ.परन्तु आज उनके परिचय से जाना कि बहुत से लिंक हैं उनसे
जवाब देंहटाएंआभार रश्मि जी सुधा जी के विस्तृत परिचय का.
सुधा जी जैसे महान व्यक्तित्व का परिचय पाकर हम तो धन्य हो गये…………वैसे एक बात है सुधाजी अनूपशहर की है और मेरा ननिहाल भी अनूपशहर का ही है …………आपके बारे मे राजेश जी के ब्लोग पर पढा था और अब पूरा परिचय प्राप्त हो गया………आभार्।
जवाब देंहटाएंसुधा जी को पढना सौभाग्य की बात रही .......आभार
जवाब देंहटाएंसुधा जी के व्यक्तित्व से परिचय कराने के लिये आभार..
जवाब देंहटाएंसुधाजी धनी व्यक्तित्व की मालिक हैं ... इनके बारे में विस्तार से जानना ही एक अनुभव है ... आभार
जवाब देंहटाएंसुधा जी संभवत: इन दिनों लंदन में हैं। लंदन जाने के एक दिन पहले मैं उनसे दुबारा बंगलौर में मिला था। बहुत सी बातें हुईं थीं, उनमें से कई का उल्लेख ऊपर भी है। पर कुछ ऐसी भी हैं जिनके बारे में यहां पता चला।
जवाब देंहटाएं*
लेकिन सुधा जी ने एक बात का बिलकुल भी जिक्र नहीं किया। वे बहुत अच्छी पेंटर हैं। उनकी बनाई कलाकृतियां उनके घर की दीवारों पर मैंने देखी हैं। जब मैं उनसे मिलने गया तो वे लंदन यात्रा पर जाने के लिए तैयारी कर रही थीं। उनके सामान के आसपास रंग और ब्रश आदि बिखरे हुए थे। मुस्कराते हुए उन्होंने कहा,मन करेगा तो कुछ पेंट भी करूंगी।
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रश्मि जी एक बात कहना चाहूंगा। मेरा मानना है कि सुधा जी की कहानियों या कविताओं के पात्र काल्पनिक नहीं हैं। वे उन्हें यथार्थ से ही उठाती हैं और कहीं कहीं तो वे बिलकुल निकट के ही होते हैं। इसीलिए वे मन को छूते भी हैं।
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सुधा जी का व्यक्तित्व ऐसा है कि उनसे बार बार मिलने को मन करता है।
क्षमा करें। सुधा जी ने अपनी अभिरूचि में पेंटिंग का जिक्र किया है। लेकिन बस एक शब्द में।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन परिचय कराया सुधा जी से ।
जवाब देंहटाएंहर हाल में खुश रहना --बस यही मन्त्र है जिंदगी का ।
उत्साही जी
जवाब देंहटाएंमैं दो शब्दों में ही पेंटिग का जिक्रा करके रुक गई।ज्यादा लिखने में अपने को असमर्थ पा रही थी ।जब जिंदगी के रंग बिखरे होते हैं तो उन्हें समेट्ने में समय लगता है।
आपकी सूक्ष्म नजर से कुछ ्छिपता नहीं। अपने ठीक ही सोचा--मैं यथार्थता की धरा पर खड़े होकर कल्पना के रेशमी धागे पकड़ने का प्रयत्न करती हूं।कल्पना लेखन का कोरा आधार नहीं।
सुधा भार्गव
सुधा जी के शांत, साम्य व्यक्तित्व को पढना अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंआभार !
सुझा जी से परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा आपने शांत, सौम्य, निर्बाध सुधा जी उनका विस्तृत परिचय पढ़ते हुये आपके लिये मन में एक बार फिर श्रद्धा उभर आई कितनी बारीकी से आप श्रेष्ठ सृजन कर रही हैं ..कितने ही ऐसे लोग हैं जिन्हें जानकर मन जाने-अंजाने प्रसन्न चित्त हो जाता है उनके व्यक्तित्व से क्योंकि ये सब ब्लॉग जगत के स्थाई स्तंभ हैं और हम उनसे अंजान तो परिचय की इस कड़ी में सुधा जी का परिचय बहुत अच्छा लगा उनके लिये शुभकामनाएं आपका आभार ।
जवाब देंहटाएंसुधा जी का सौम्य व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली लगा...वे एक कर्म योगिनी हैं...सही अर्थों में जीवन जिया है,उन्होंने.
जवाब देंहटाएंउनके विस्तृत परिचय का बहुत-बहुत आभार
सुधा जी ने कितनी आसान भाषा में अपना अद्भुत जीवन परिचय दिया , अतुल्य |
जवाब देंहटाएंसादर