सोमवार, 27 जून 2011

गंभीर व्यक्तित्व (डॉ दराल)



http://tsdaral.blogspot.com/ इस लिंक तक मैं पहुंची किसी और के ब्लॉग की टिप्पणी के माध्यम से ... गंभीर व्यक्तित्व और कुछ अलग सा लेखन , सोचा एक टिप्पणी डाल दूँ , ... सच कहूँ , कुछ अजनबी से एहसास हुए . पर मैंने पाया कि डॉ साहब ने मेरे ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज की और एक गंभीर टिप्पणी दी . वो होता है न कि कोई बच्चा अगले दिन फिर खेलने जाता है पार्क में धीरे धीरे , ठीक वैसे ही मैं डॉ दराल के ब्लॉग पर गई - इधर-उधर देखते हुए झट से उनके लेखन के बगीचे में पहुँच गई बिना किसी आहट के ....... और शान से ऊटी यात्रा की , क्योंकि यूँ तो सोचती ही रही .... अगर आपने ना घुमा हो तो चलिए हम घुमा आएँ - http://tsdaral.blogspot.com/2011/06/blog-post_23.html
बहुत लम्बा परिचय नहीं , पर खासियत है इनके प्रस्तुतीकरण में , तो इनसे आपको मिलवाना मेरा कर्तव्य है .
डॉ दराल के शब्दों में उनकी जीवनी के कुछ अंश - जो आपसे बहुत कुछ कह जाएँ , बहुत कुछ सीखा जाएँ ---
दिल्ली के एक गाँव के एक साधारण से किसान परिवार में ११ अगस्त १९५६ को जन्म हुआ था । सौभाग्य था कि किसान परिवार होते हुए भी घर में शिक्षा को बहुत महत्त्व दिया जाता था । दादाजी गाँव के पहले व्यक्ति थे जिन्हें पढना लिखना आता था , पिताजी दिल्ली के हिन्दू कॉलिज से इको ( ऑनर्स ) करके पहले ग्रेजुएट और हम दराल गोत्र के पहले मेडिकल ग्रेजुएट बने । प्रारंभिक शिक्षा जहाँ गाँव में ही हुई , छठी कक्षा में दिल्ली शहर के स्कूल में दाखिला लिया । शायद यह काम पिताजी ने अपने जीवन का सबसे बेहतरीन काम किया था । वर्ना मैं भी यूँ ही कहीं दर दर की ठोकरें खा रहा होता , अन्य बालकों की तरह ।

कुछ तो पारिवारिक संस्कार थे , कुछ ऊपर वाले की दया से उत्तम आई क्यु और कुछ अपनी मेहनत का फल --स्कूल में हमेशा प्रथम या द्वितीय ही आता था । जहाँ बाकि बच्चे पास होने की ख़ुशी मनाते थे , वहीँ अपने लिए तो पास होने का मतलब होता था --प्रथम आना ।

उस समय सभी टॉपर्स स्कूल में बायोलोजी लेते थे । बस इसी तरह हम भी मेडिकल कॉलिज में पहुँच गए ।

लिओ होने के नाते , हर काम में आगे रहने की आदत थी । इसलिए कॉलिज में सभी कार्यक्रमों में हिस्सा लेने की आदत सी पड़ गई थी ।

कॉलिज में निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय पुरुस्कार , गायन में भी द्वितीय , लेकिन फोटोग्राफी में प्रथम रहा । अंतिम वर्ष में गाय्नेकोलोजी में भी द्वितीय स्थान लेकर शिक्षा पूर्ण हुई ।


मेडिकल करियर के प्रथम वर्षों में मेडिकल रिसर्च में रूचि लेते हुए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में बाल रोग विभाग में काम करते हुए ओ आर एस पर किया शोध कार्य आज भी डायरिया पर होने वाले सेमिनार्स और पेपर्स में कोट किया जाता है । इसके लिए १९८३ में नेशनल कौन्फेरेंस में रिसर्च में गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ ।


तद्पश्चात १९९० से दिल्ली के जी टी बी अस्पताल में कार्यरत हूँ ।वहां भी एपिडेमिक ड्रोप्सी पर किया शोध कार्य एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रहा ।

१३ अप्रैल १८८४ में शादी हुई । अपनी तो एक ही शर्त थी कि शादी डॉक्टर से करनी है । शगुन का एक रुपया लेकर हमने शादी की । पत्नी भी डॉक्टर है । दोनों बच्चे इंजिनियर हैं ।


एक दिन अचानक ख्याल आया कि हम तो २० साल तक हनीमून मनाते रहे और बच्चे तो पैदा किये ही नहीं । यानि पोस्ट ग्रेजुएशन तो की ही नहीं । उसके बिना अधूरा सा लगा तो कमर कस ली और अपने से आधे उम्र के बच्चों के साथ कम्पीट करके कॉम्पिटिशन में सफल हुए और सन २००० में न्यूक्लियर मेडिसिन में दिल्ली के इनमास में दाखिला लेकर यह मुकाम भी पूरा किया ।


एक्स्ट्रा क्यूरिकुलर : बचपन से ही घर में बड़ों से हंसी मजाक के किस्से सुनते आए थे । हरियाणवी खून होने के नाते हास्य रग रग में बसा हुआ है । लेकिन सबसे पहला प्रभाव पड़ा , कॉलिज के दिनों में --हास्य कवि काका हाथरसी का । उनकी हास्य कवितायेँ सुनकर हमने भी लिखना शुरू किया और सबसे पहले डॉक्टर बनने के अनुभवों पर हास्य कवितायेँ लिखी जिन्हें सुनकर हमारे साथी दिल खोलकर हँसे ।

फिर दौर आया टी वी पर लाफ्टर चैम्पियंस का । मुंबई के डॉ तुषार शाह को देखकर अपनी भी दबी हुई टेलेंट अंगडाई लेने लगी । दिसंबर २००७ में हुए दिल्ली आज तक पर दिल्ली हंसोड़ दंगल के ऑडिशन में पहुँच गए । डेढ़ करोड़ आबादी में से १५० लोग ऑडिशन के लिए आए थे । उनमे से १० लोगों का चुनाव किया गया । और अंत में ५ फाइनल में गए जिनमे प्रथम पुरुस्कार हमें ही मिला । हंसी का डाक्टर , दिल्ली का हंसी का बादशाह और ऑडियंस ने हमें ख़िताब दिया --हरियाणे का ताऊ । इस प्रोग्राम में ज़ज़ थे -कविराज अशोक चक्रधर ।

अक्तूबर २००८ में अशोक चक्रधर जी ने ही वार्षिक हैल्थ मेले में एक प्रतियोगिता का प्रबंध किया --नव कवियों की कुश्ती । वहां भी ५० पार कर चुके लेकिन नवोदित कवि के रूप में हमने भाग लिया और बुजुर्ग कवि ज़जों द्वारा प्रथम पुरुस्कार प्रदान किया जाने पर हमें स्वयं पर विश्वास सा होने लगा ।

और इस तरह काव्य जगत में प्रवेश हुआ । अब कविसंगम डोट कॉम में कवियों की लिस्ट में हमारा भी नाम है ।
मासिक काव्य गोष्ठियां , काव्य विशेष कार्यक्रम और अनेकों तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए निरंतर आमंत्रण आते रहते हैं ।

१ जनवरी २००९ को हमने अपना ब्लॉग आरंभ किया --श्री अशोक चक्रधर जी के ही आह्वान पर । ब्लॉग पर मैं मुख्यतया हास्य- व्यंग कवितायेँ , चिकित्सा लेख , फोटोग्राफी और सामाजिक मुद्दों पर लिखता हूँ ।



अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि एक डॉक्टर को इन सब कामों के लिए वक्त कैसे मिलता है ।
ऐसे में मेरा एक ही ज़वाब होता है --मेरी पत्नी को मुझसे एक ही शिकायत रहती है कि मैं अस्पताल जाकर घर को बिल्कुल भूल जाता हूँ । कम से कम इस मामले में वो बिल्कुल सही कहती है । यह सच है कि ९ से ४ तक मैं जब अस्पताल में होता हूँ तो सिर्फ और सिर्फ अपने काम के बारे में सोचता हूँ । लेकिन उसके बाद जो १७ घंटे बचते हैं उनमे से २-३ घंटे अपने शौक के लिए न बचें , यह कैसे हो सकता है ।

दूसरे डॉक्टर्स घर जाकर भी मरीजों में उलझे रहते हैं । किसी सेवा भावना से प्रेरित होकर नहीं बल्कि कमाई के लालच में ।
हमें तो जो मिल रहा है , उसी में संतुष्ट हैं । वैसे भी ख़ुशी पैसे से नहीं खरीदी जा सकती ।

घूमने फिरने , ट्रेकिंग और पहाड़ों में विचरण करने का बड़ा शौक है । प्राकृतिक द्रश्यों को कैमरे में कैद करना बड़ा अच्छा लगता है । दोस्तों के साथ महफिलें सजाना हमेशा शौक रहा है ।

कभी कभी सोचता हूँ दुनिया में हमारे जैसे सीधे सादे बन्दे का गुजारा कैसे हो सकता है । लेकिन सच यही है कि अभी तक अच्छा गुजारा हुआ है ।


डॉ टी एस दराल
मो: ९८६८३९९५२०
इ-मेल: tsdaral@yahoo.com
ब्लॉग: अंतर्मंथन ( tsdaral.blogspot.com)

15 टिप्‍पणियां:

  1. डाक्टर दलाल मेरे प्रिय ब्लोगर्स में से एक हैं आज उनके बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. मुझे नहीं मालूम था के वो इतने हंसोड़ भी हैं और इस क्षेत्र में कई प्रतियोगिताएं भी जीत चुके हैं...ब्लॉग जगत को उनकी उपलब्धियों पर गर्व है और रहेगा. वो भी लियो हैं इसलिए उनके गुणों को मैं जान सकता हूँ...उनके ये गुण यूँ तो सभी लियो में होते हैं लेकिन उन्हें विकसित कोई कोई ही कर पाता है (जैसे डाक्टर साहब) .वो हमेशा हँसते खिलखिलाते रहें बस येही इश्वर से कामना करता हूँ.

    नीरज

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  2. डॉ दराल के दर्शन हुए थे हिंदी भवन में लेकिन परिचय नहीं हो सका. उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जानकर बहुत ख़ुशी हुई.
    उनकी ये पंक्तियाँ कि पैसे से ख़ुशी नहीं खरीदी जा सकती है ' इससे मैं भी सहमत हूँ. जिन्दगी गर mili है तो खुश हो लें और लोगों को भी खुश करसकें इसमें ही सार्थकता है.

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  3. गंभीर व्‍यक्तित्‍व की दिलचस्‍प जीवनी पढ़कर कितना कुछ जाना डॉक्‍टर साहब के बारे में। सचमुच प्रेरणास्‍पद है।

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  4. डॉ टी एस दराल जी के व्यक्तित्व और कुछ अलग सा लेखन के विषय में जानकारी मिली । बहुत अच्छा लगा ....धन्यवाद...

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  5. डाक्टर साहिब को आज एक नई द्रष्टि से देखा ,बेहद जुझारू लगे ...दृढ इक्छा शक्ति के साथ ..धन्यवाद

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  6. काश हर व्यक्ति डा. दराल जैसी ही सोच का हो ......

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  7. डा.दराल के व्यक्तित्व के एक दूसरे पहलू से परिचय हुआ...
    उनके जीवन...उनकी उपलब्धियों को विस्तार से जानने का अवसर देने का शुक्रिया

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  8. किसी भी अंजान शख्‍स से आप यूं मिलवा देती हैं जैसे कब का परिचय हो उनसे ... परिचय तो परिचय लगे हांथ ऊंटी की सैर भी करा दी ..वाह बहुत खूब डा. दराल यूं ही अपने हास्‍य रस की कविताओं से सबको हंसाते रहें यही शुभकामनाएं और आपका बहुत-बहुत आभार ।

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  9. डा.दराल के व्यक्तित्व को पढ़ कर अच्छा लगा .............आभार

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  10. गंभीर व्यक्तित्व के पीछे एक हास्य व्यंगकार भी छिपा हुआ है ... इस श्रृंखला के माध्यम से सबसे परिचित होना अच्छा लग रहा है .. डाक्टर दराल के बारे में जानना अच्छा लगा .. इनके लेखन से पहले से ही प्रभावित हूँ ..आभार

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  11. आभार आप सब का ।
    और रश्मि प्रभा जी का भी ।

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  12. डॉ साहब तो बहुआयामी प्रतिभा के मालिक निकले.एक जुझारू प्रवर्ति के स्वामी.
    बहुत आभार डॉ दराल के इस विस्तृत परिचय का.

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  13. निसंदेह एक बहुत बड़ी विलक्षण हस्ती को जानने का मौका मिला |

    सादर

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