
गुरुवार, 30 जून 2011
बरगद सी विशालता (अशोक आंद्रे )

बुधवार, 29 जून 2011
सत्य, शालीनता , विस्तृत दृष्टिकोण (राजेश उत्साही )
मंगलवार, 28 जून 2011
शांत, सौम्य, निर्बाध (सुधा भार्गव )

सोमवार, 27 जून 2011
गंभीर व्यक्तित्व (डॉ दराल)

रविवार, 26 जून 2011
एक खिलखिलाती हवा (वंदना गुप्ता )

शनिवार, 25 जून 2011
'होनहार बिरवान के होत चिकने पात' (अनुपमा सुकृति )

शुक्रवार, 24 जून 2011
देख लूँ तो चलूँ' (नीरज गोस्वामी )

गुरुवार, 23 जून 2011
होनहार , चुलबुली ...'बाप रे , कितना जानती है ये लड़की ' (शिखा वार्ष्णेय )


बुधवार, 22 जून 2011
आकाश को पाना है , फिर सूरज मुट्ठी में (संगीता स्वरुप )

मंगलवार, 21 जून 2011
मासूमियत में मासूम आक्रोश और मासूम दृढ़ता (वाणी शर्मा )
रुचियाँ ...पढना , पर्यटन , संगीत , बागवानी आदि
प्रकाशित ... हिंदी ब्लॉगिंग से शुरू हुआ लेखन का सफ़र अब पत्र -पत्रिकाओं तक पहुँचने लगा है ...डेली न्यूज़ , हिंदी ब्लॉगिंग "अभिव्यक्ति की नई क्रांति" , वटवृक्ष , अनुगूँज आदि ..
इनके ब्लॉग ... ज्ञानवाणी
सामूहिक ब्लॉग्स " कबीरा खड़ा बाज़ार में
वाणी के शब्दों में -
वाणी ...प्रकृति द्वारा रचित अनूठे वृहद् संसार में अकिंचन बूँद -सी जिसे जीने को , कुछ नया सीखने को एक जन्म कम ही लगता है ...अपने अस्तित्व को तलाशते शब्दों के अथाह संसार से कुछ शब्द चुन कर उन्हें करीने से लगाने का प्रयास करते हुए साधारण में असाधारण होने की सम्भावना रखती एक गृहिणी .... जब तक जीवन है, हौसलों की उन्मुक्त उड़ान है और मैं हूँ ...
बचपन से अब तक का सफ़र
जन्म सितम्बर 1965, हैदराबाद में हुआ .....शिक्षा बिहार और राजस्थान में हुई .....ज्ञानवान जिम्मेदार पति से विवाह के पश्चात गृहिणी और दो बहुत प्यारी बेटियों की माँ होने का उत्तरदायित्व निभाते हुए परास्नातक की डिग्री प्राप्त कर स्कूल में पढ़ाने , कंप्यूटर सिखाने , अपनी पत्रिका का लेखन व संपादन से लेकर गिफ्ट शॉप तक सँभालने का हर कार्य किया ...अब तक सफलता और असफलता का चोली -दामन सा साथ जीवन भर रहा है ...
पारंपरिक परिवार की बेटी और बहू होने तथा परम्पराओं का पालन करते हुए भी रूढ़ियों को जस का तस नहीं मानती हूँ ... प्यार ,सम्मान और नफरत, उपेक्षा समान प्रतिशत में झेली है ... जीवन के सफ़र में हर तरह के लोगों से वास्ता पड़ा ...बेवजह ईर्ष्या, द्वेष पालने वाले भी मिले तो बेइंतहा प्यार और सम्मान देने वाले भी ...अपने आस- पास उस ईश्वर की उपस्थिति को हमेशा महसूस करती हूँ ...उसकी असीम कृपा रही है , हर असफलता के बाद भी हार नहीं मानने के अवसर प्रदान कर देता है ....
सोमवार, 20 जून 2011
निर्भीक , निडर , संतुलित (रश्मि रविजा )

रविवार, 19 जून 2011
कभी अमृता कभी इमरोज़ कभी बादल (रंजू भाटिया )


ब्लॉग की दुनिया में मेरी पहली आकर्षण `रंजू भाटिया रहीं और उनको पढ़ते हुए मैं उनकी ऑरकुट मित्र भी बन गई . 'प्यार के एक पल ने जन्नत दिखा दिया , प्यार के उसी पल ने मुझे ता -उमर रुला दिया - एक नूर की बूँद की तरह पीया हमने उस पल को ,एक उसी पल ने हमे खुदा के क़रीब ला दिया !!' इन पंक्तियों में मुझे अमृता मिलीं ,जिसकी कलम में इमरोज़ से रंग थे . कैनवस अमृता के थे , पन्ने पर नाम अमृता का था पर अक्षर अक्षर रंजना जी के थे . एहसासों पर किसी की मल्कियत नहीं होती , हाँ पिरोये शब्दों पर उस ख़ास का नाम होता है, जो पिरोता है , पर पिरोये गए फूलों की ताजगी जो बरकरार रखता है , फूल उसके हो जाते हैं . |
कविता में उतरे
यह एहसास
ज़िन्दगी की टूटी हुई
कांच की किरचें हैं
जिन्हें महसूस करके
मैं लफ्जों में ढाल देती हूँ
फ़िर सहजती हूँ
इन्ही दर्द के एहसासों को
सुबह अलसाई
ओस की बूंदों की तरह
अपनी बंद पलकों में
और अपने अस्तित्व को तलाशती हूँ
पर हर सुबह ...........
यह तलाश वही थम जाती है
सूरज की जगमगाती सी
एक उम्मीद की किरण
जब बिंदी सी ......
माथे पर चमक जाती है
एक आस ,जो खो गई है कहीं
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है... ....
'नाम --रंजना (रंजू )भाटिया
जन्म--- १४ अप्रैल १९६३
शिक्षा-- बी .ऐ .बी .एड
पत्रकारिता में डिप्लोमा
अनुभव ---१२ साल तक प्राइमरी स्कूल में अध्यापन
दो वर्ष तक दिल्ली के मधुबन पब्लिशर में काम जहाँ प्रेमचन्द के उपन्यासों और प्राइमरी हिंदी की पुस्तकों पर काम किया सम्राट प्रेमचंद के उपन्यासों की प्रूफ़-रीडिंग और एडीटिंग का अनुभव प्राप्त हुआ।
प्रकाशन -- प्रथम काव्य संग्रह "साया" सन २००८ में प्रकाशित
दैनिक जागरण ,अमर उजाला ,नवभारत टाइम्स ऑनलाइन भाटिया प्रकाश मासिक पत्रिका, हरी भूमि ,जन्संदेश लखनऊ आदि में लेख कविताओं का प्रकाशन ,हिंदी मिडिया ऑनलाइन ब्लॉग समीक्षा
लेखन --कविता नारी ,सामाज विषयक लेखन के साथ बाल साहित्य लिखने में विशेष रूचि वह नियिमत रूप से लेखन जारी है इन्टरनेट के माध्यम से हिंदी से लोगों को जोड़ने तथा हिंदी में लिखने के लिए प्रोत्सहित करने में विशेष रूचि फिलहाल कई ब्लॉग पर नियमित लेखन अपना ब्लॉग कुछ मेरी कलम से बहुत लोकप्रिय है इस ब्लॉग को अहमदाबाद टाइम्स और इकनोमिक टाइम्स ने विशेष रूप से कवर किया है| दीदी की पाती बाल उद्यान में बहुत लोकप्रिय रहा है और जन्संदेश लखनऊ में यह नियमित रूप से पब्लिश हो रहा है | इ पत्रिका साहित्य कुञ्ज पर लेखन और वर्ड पोएटिक सोसायटी की सदस्य
उपलब्धियां :
2007 तरकश स्वर्ण कलम विजेता
२००९ में वर्ष की सर्व श्रेष्ठ ब्लागर
२००९ में बेस्ट साइंस ब्लागर एसोसेशन अवार्ड
२०११ में हिंद युग्म शमशेर अहमद खान बाल साहित्यकार सम्मान
हरियाणा के एक कस्बे कलानौर जिला रोहतक .पहली संतान के रूप मे मेरा जन्म हुआ १४ अप्रैल १९६३ माँ पापा ने नाम दिया रंजू | पहली संतान होने के कारण मम्मी पापा की बहुत लाडली थी | और बहुत शैतान भी |घर मे पढ़ाई का बहुत सख्त माहौल था | होना ही था जहाँ नाना , नानी प्रिंसिपल दादा जी गणित के सख्त अध्यापक हो वहां गर्मी की छुट्टियों मे भी पढ़ाई से मोहलत नही मिलती थी| साथ ही दोनों तरफ़ आर्य समाज माहोल होने के कारण उठते ही हवन और गायत्री मन्त्र बोलना हर बच्चे के लिए जरुरी था |
जब माँ थी तो वह कई बार हमें "हरिवंश राय बच्चन "की कविता का वह अंश लोरी के रूप मे सुनाती थी "जो बीत गई वह बात गई ..जीवन मे एक सितारा था ..माना वह बेहद प्यारा था " ..वह कविता दिलो दिमाग में ऐसी बसी कि अब तक प्रेरणा देती है | शिवानी और अमृता प्रीतम की किताबों से पढने का शौक बारह साल की उम्र से ही पैदा हुआ और फ़िर अमृता को पढने का जो नशा उस वक़्त चढ़ा वह अब तक नही उतरा ..तभी से ही निरंतर लिखने का सिलसिला भी चल पड़ा |अभी कालेज कि पढाई भी पूरी नहीं हुई थी कि विवाह हो गया शादी के बाद बी एड किया और एक स्कूल में पढ़ाने का काम शुरू किया कुछ साल बाद लेखन का काम अधिक रुचने लगा तो वही कम अब तक निरंतर जारी है
शुक्रवार, 17 जून 2011
समय की नायाब पकड़ (रवीन्द्र प्रभात )
